कुछ गुस्सा, कुछ निराशा और हताशा मन में लिए मेन गेट खुला ही छोड़ कर रोहित अपनी मोटर साइकिल पर बैठ उसे स्टार्ट कर ही रहा था कि भीतर से रमेश जी और उनकी पत्नी नीना जी की तेज़ आवाज़ उस तक पहुँची।
"मैं कहती हूँ कि तुम ऐसे लोगों को घर बुला बुला कर चाय पिलाते रहे तो मैं किचन को ताला लगाकर बाहर चली जाया करुँगी।"
"अरे! ये घर क्या सिर्फ तुम्हारा ही है? मेरा भी है और मेरी जो मर्ज़ी आएगी करुँगा!"
"तो चाय पिलाने की इच्छा के साथ ही चाय बनाना और बरतन माँजना भी सीख लो … मैं कुछ नहीं करुँगी!"
"अरे ये कोई बात है?" रमेश जी का लहजा नर्म पड़ गया।
"हाँ यही बात है ..." भड़ाक से ड्रॉइंग रूम का दरवाज़ा बंद होने के साथ ही आवाज़ों का आना भी इतना धीमा हो गया था कि स्पष्ट सुना नहीं जा सकता था।
रोहित ने मोटर साइकिल स्टार्ट की और चल पड़ा। कहाँ जाना है? कुछ ठीक से पता नहीं था। पर कहीं न कहीं तो जाना ही होगा। ठहर गया तो जैसे ज़िन्दगी भी ठहर ही जाएगी। उसने गियर बदल कर गति बढ़ाई। गाड़ी हवा से बातें करने लगी।
हवा … वहाँ हवा में रोहित को कुछ जाना पहचाना नज़र आने लगा…
अरे! ये तो मेरे सपने हैं! हवा में तैर रहे हैं … हाथ भर की दूरी पर ही हैं। पकड़ लेता हूँ ...अरे! ये हाथ क्यों नहीं आ रहे हैं?
गति और बढ़ाई गई। सपने उससे भी अधिक गति से आगे खिसक गये। अपने सपनों का पीछा करते-करते अचानक सामने से आते किसी तेज़ वाहन से बचने के लिए रोहित ने तेज़ी से ब्रेक लगाया। चूँ की एक तेज़ आवाज़ के साथ ही मोटरसाइकिल एक झटके में रुक गई। तभी रोहित को कुछ और दिखाई दिया!
उधर? उधर क्या है? ओह्!
उसका कलेजा उछलकर मुँह को आ गया।
ये तो सुनीता के सपने हैं ... कितने घायल और लहुलुहान लग रहे हैं! ओह् मेरी प्यारी सुनीता …
रोहित का मन भारी हो गया … पीं पीं पीं की लगातार आने वाली तेज़ आवाज़ें सुनकर उसका ध्यान भंग हुआ। उसने देखा कि ट्रेफिक लाइट लाल से हरी हो चुकी थी और वो मोटरसाइकिल बंद करके सड़क किनारे लगे हुए शहर के एक नामी बिल्डर की किसी नई टाउनशिप के विज्ञापन के क्षत-विक्षत बैनर को घूरता हुआ सबसे आगे खड़ा था! रोहित सम्भला और सॉरी-सॉरी बोलते हुए मोटरसाइकिल स्टार्ट कर आगे बढ़ गया! जीवन में आगे बढ़ना, सड़क पर आगे बढ़ने जैसा सरल क्यों नहीं है? ऊँची-नीची सड़कें, गड्ढे वाली सड़कें, ढेर सारी ट्रेफिक लाइट वाली सड़कें जिनमें ठहरने का समय सत्तर सैकेंड और चलने का समय बीस सैकेंड का होता है, चलने की रफ़्तार कम भले ही कर देती हैं पर रोकती नहीं हैं! धीमी गति से ही सही, सब आगे बढ़ते ही हैं, अपने गंतव्य की ओर ... पर जीवन की गाड़ी आजकल घिसट रही है! कितनी भी चलाओ आगे बढ़ ही नहीं रही है! जबकि ईंधन हर पल घट रहा है!
***
कुकुरमुत्ते की तरह उग आए महाविद्यालय नौजवान पीढ़ी की आँखों में सपने बोते हैं! और विश्वास दिलाते हैं कि उनके सपने यहीं, इसी कॉलेज में पढ़कर ही पूरे होंगे। पर सच्चाई ये है कि सपनों की फसल जब पक जाती है तो उनकी कटाई करने कोई नहीं आता! कहीं कहीं कटाई हो भी, तो कटी हुई फसल की किस्म देखकर खरीदार नहीं मिलते। खेतों में पड़ी हुई फसलों का जो हश्र होता है,वही इस नौजवान पीढ़ी का भी होता है! औने-पौने दामों में कहीं भी खपा दी जाती है ऐसी फसल!
रोहित भी ऐसे ही एक कॉलेज की फसल था जो एम बी ए करने के बाद दो साल तक ऊँची नौकरी का सपना आँखों में लेकर भटकने के बाद अंततः एक सेल्समैन की नौकरी कर रहा था! जो कि 'मैनेजमेंट ट्रेनी' के छद्म नाम से शुरू हुई थी।
नौकरी के पहले सप्ताह में आयोजित ट्रेनिंग में ही उसका सामना इस सच से हो गया था कि मैनेजमेंट ट्रेनी एक तरह से सेल्समैनशिप ही है और उसका जीवन हर पल एक नई अनिश्चितता से भरा रहने वाला है!
ट्रेनिंग में एक वरिष्ठ अधिकारी मंच से अपने संबोधन में बता रहे थे "विकल्पों के अथाह समन्दर में से कौन-सी बूँद किसकी प्यास बुझाएगी ये आपको समझना बहुत जरूरी होता है और उसी के अनुसार आप संभावित ग्राहक से बातचीत करेंगे।"
एक नज़र उपस्थित ट्रेनीज़ पर डाल कर उन्होंने बात आगे बढ़ाई।
"ये ज़रूरी समझ विकसित करने में आपको बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। बाज़ार की पूरी जानकारी रखनी पड़ेगी। ये भी ध्यान रखना होगा कि कंपनी की कौनसी योजना सबसे लोकप्रिय हो रही है, सफल हो रही है और कौनसी पिछड़ रही है और क्यों? साथ ही लोगों की इन्वेस्टमेंट कैपेसिटी पर भी शोध करना पड़ेगा। भविष्य की सँभावनाओं पर भी विचार करना होगा। और सरकारी रीति-नीतियों की जानकारी और उनके प्रभाव पर भी नज़र रखनी होगी। तभी आप अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएँगे और वेतन के साथ अच्छा कमीशन उठा सकेंगे।"
उसी की तरह उलझन में पड़े एक ट्रेनी ने अपना संशय ज़ाहिर किया
"आज के ज़माने में लोग कंपनीज़ की कॉल्स को अटैंड ही नहीं करते। और अधिकतर लोग तो नंबर ब्लॉक कर देते हैं!"
"इसी के लिए तो हमारी ट्रेनिंग है!" वरिष्ठ अधिकारी ने भरोसा दिलाते हुए मुस्कान बिखेरी।
"ये आपको कंपनी बताएगी कि किस ऑफर पर काम करना है। पर आपकी सुविधा के लिए बता दूँ कि अधिकतर ऐसा होता है कि जब किसी कंपनी की कोई योजना या सामान सफल हो जाते हैं, तो बाजार में उस कंपनी की साख बन जाती है और तब लोग अपने आप ग्राहक बनने के लिए तत्पर रहते हैं।ऐसी सफल योजना या सामान के साथ कंपनी बाज़ार में अपनी साख भुनाती है और तब आपको नई या कम लोकप्रिय योजनाओं या सामान के प्रमोशन के लिए काम करने के लिए कहती है। अब ये आपकी योग्यता पर निर्भर करता है कि आप ऐसी नई और कम लोकप्रिय योजनाओं या सामान के लिए कैसे और कितने ग्राहक ला पाते हैं!" अधिकारी ने स्पष्ट कर दिया।
हॉल की हवा में संशय तैर रहे थे। जिसका पूरा-पूरा अनुमान अधिकारियों को पहले से ही था। उन्होंने आगे बात बढ़ाई।
"मैनेजमेंट ट्रेनी की नौकरी बँधे-बँधाए वेतन की नहीं होती है। जितनी बिक्री उतना ही कमीशन! इसलिए हर महिने नये ग्राहक बनाना और पुराने ग्राहकों को जोड़े रखना बहुत आवश्यक है। कंपनी के हर नये-पुराने सामान की जानकारी, उनसे होने वाले फायदे और साथ में चलती नई-नई बचत योजनाओं की जानकारी देने के लिए दिन भर फोन घुमाते रहिए और लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलते-जुलते रहिए। सफलता आपके साथ होगी।" शुभकामनाएँ देकर सत्र समाप्त हुआ। मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में भीतर गए नौजवान सेल्समैन के रूप में हॉल से बाहर आए।
उन्हीं में से कुछ सीनियर और अनुभवी कर्मचारियों की चाय पर चर्चा हो रही थी। सुदेश बोला, "जब से सूचनाएँ ऑनलाइन उपलब्ध होने लगी हैं, लोग जानकारी रखने लगे हैं और न केवल दस तरह के सवालात करते हैं बल्कि हमें मिलने वाले कमीशन की पूछ-परख भी करते हैं और कुछ डेढ़ श्याणे लोग तो उसमें से भी हिस्सा माँग बैठते हैं।"
"सच यार! अब उनसे कौन बहस करे! कौन उन्हें समझाए कि घर-घर घूमकर और सैकड़ों फोन कॉल्स करने के बाद कोई सफलता मिलती है! उसमें से हिस्सा कैसे बँटाया जा सकता है?" अर्पित ने अपने मन की बात कही।
"कुछ मत पूछो यार! दिन भर फोन घुमाने के बाद कुछ लोग तो फोन पर ही समझ जाते थे। कुछ लोग बात शुरू करते ही बुरी तरह लताड़ कर खटाक से फोन काट देते हैं! कभी कभी तो लोग बात शुरू करते ही पहला सवाल करते हैं कि आपको हमारा फोन नंबर कहाँ से मिला? शुरू शुरू में तो मैं ऐसे हमले के लिए तैयार नहीं था तो खुद ही फोन काट देता था!" रोहित ने कहा
"भाई! जब भी कोई फोन पर जानकारी लेने के बाद घर बुला कर विस्तृत जानकारी देने को कहे तो समझ जाओ कि बड़ी डील होने वाली है!" सुदेश ने हँसकर कहा।
चाय के साथ अनुभव साझा किए जा सकते हैं, उनसे उपजा दर्द नहीं! सब अपना-अपना दर्द लेकर फील्ड में निकल गए।
***
हमारे समाज में नौकरी का और विवाह का अटूट बंधन है! सो नौकरी लगने के दो साल के भीतर ही आँखों में ढेर सारे सपने संजोए सुनीता रोहित के जीवन में आ गई।
सपने तो सपने होते हैं! यथार्थ के धरातल पर कितने टूटते हैं कितने बचते हैं ये पहले से कोई नहीं जानता।
दो साल में सुनीता का 'अपने घर' का सपना चूर-चूर तो नहीं हुआ था पर तड़क ज़रूर गया था। एक दिन रात को खाना खाते हुए सुनीता ने बात शुरू की "सुनो! आज दिन में हिना भाभी का फोन आया था...कह रही थीं कि उनकी कंपनी ने नये किचन प्रोडक्ट लॉन्च किए हैं एजेंट बनकर अतिरिक्त आमदनी की जा सकती है।"
"तो? समय है मेरे पास?"
"अरे आप नहीं… मैं सोच रही थी कि मैं कर लूँ!"
"तुम से नहीं होगा! घर-घर भटकना और लोगों का मुँह पर दरवाज़े बंद करना तुम सह नहीं पाओगी!" उसने प्यार से एक कौर पत्नी के मुँह में डालते हुए कहा। रोहित का मन ग्लानि से भर उठा था।
सुनीता ने पति का हाथ थाम लिया और चूम लिया। "आप तो पता नहीं क्या का क्या सोचने लगे! आसपास और रिश्तेदारों में तो कोशिश कर ही सकती हूँ ना!"
"नहीं... मैं तुम्हें बहुत सुख तो दे नहीं सका पर दुख भी नहीं दे सकता…" उसने प्यार से पत्नी के कंधे पर हाथ रखा और अपने करीब खींचकर माथे पर एक चुम्बन रख दिया।
"मैं ही देखता हूँ और कुछ…"
सुनीता उसके सीने से लगी सुनती रही।
***
सुनीता की बात ने रोहित को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने एक बीमा कंपनी का पार्ट टाइम काम भी शुरू कर दिया। कंपनी के काम से कहीं जाता था तो साथ में एक-दो बीमा योजना की जानकारी और लुभावने ऑफर ऐसी चतुराई से देकर आता कि कुछ दिन बाद वहाँ से फोन आ ही जाता था।
ऐसा ही एक फोन आज सुबह रमेश जी का आया था जहाँ से वो इस समय लौट रहा था।
पहले दिन जब कंपनी के काम से गया था तब उसने एक घंटे तक बीमा योजना की जानकारी दी थी। सेवानिवृत्ति के पश्चात् की कुछ अच्छी योजनाओं में उन्होंने रुचि दिखाई थी और बाद में बताता हूँ कहा था।
सुबह जब फोन आया तो रोहित बहुत उत्साहित था।
"हलो सुनीता! आज एक बड़ी डील होने वाली है! शाम को खाना मत बनाना बाहर खाएँगे। एक अर्सा हुआ तुम्हें बाहर घुमाया नहीं है!"
"बहुत बढ़िया!"सुनीता की खनकती हुई आवाज़ ने नया उत्साह भर दिया था।
***
मोबाइल पर लगातार बजती घंटी से रोहित ने मोटरसाइकिल एक तरफ लगाकर मोबाइल जेब से निकाला।
रमेश जी का मैसेज था "सॉरी"
पढ़ते ही उनके घर पर घटी पूरी घटना उसके सामने चलचित्र की भाँति चलने लगी...
सुबह जब वो उनके घर पहुँचा तो रमेश जी उसका इंतज़ार ही कर रहे थे। उन्होंने दो-ढाई घंटे तक अलग-अलग योजनाओं की विस्तार से जानकारी ली।
उनकी पत्नी बीच-बीच में कुछ नाराज़गी जताती रहीं।अंत में वो झुंझला उठीं, "बंद करिए अब! और कितना समय बर्बाद करेंगे?"
"अरे आंटी! आप नाराज़ मत होइए। मैं बस दो मिनट में अपनी बात खत्म कर रहा हूँ। फिर तो..."
"अरे फिर भी कुछ नहीं होगा बेटा! घर में नहीं हैं दाने और अम्मा चली भुनाने!" उनकी आवाज़ में दुख और खीज थी। उन्होंने मुड़ कर रमेश जी को घूरा। "किसी को आस दिलाकर निराश करना बहुत बड़ा पाप है! इतना टाइम ये बिचारा कहीं और लगाता तो कुछ काम बनता इसका!"
रोहित को असमंजस में देख उन्होंने दोनों हाथ जोड़े। "बेटा हमें माफ़ करो! ये तो रिटायरमेंट के बाद से खाली बैठे ऐसे ही किसी को भी घर बुला कर टाइम पास करते हैं। खपती हो गए हैं ठाली बैठे! हम कहीं कुछ भी इन्वेस्टमेंट कर ही नहीं सकते हैं अभी! तुम जाओ अब! सॉरी!"
मोबाइल फिर बजने लगा। इस बार सुनीता का फोन आ रहा था ... रोहित की हिम्मत नहीं हुई कि उससे कहे खाना बना लो। कहीं नहीं जाना है…
लालबत्ती के निकट फुटपाथ पर एक फकीर अपनी धुन में मगन गा रहा था...
"कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर ।
जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर!"
शिवानी जयपुर - परिचय
राजस्थान के विभिन्न शहरों में पली-बढ़ी हूँ और इंदौर में ब्याही गई हूँ। शैक्षणिक योग्यता बी कॉम, एम बी ए , मॉन्टेसरी डिप्लोमा, जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा है।
पिछले लगभग सात वर्षों से 'शिवानी जयपुर' के नाम से लेखन में सक्रिय हूँ। कविताएँ, कहानियाँ, लघुकथा और समसामयिक विषयों पर लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में न केवल प्रकाशित होते रहते हैं बल्कि राष्ट्रीय स्तर की अनेक प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत भी हुए हैं।
मंच संयोजन एवं संचालन का बीस वर्षों का अनुभव और ये मेरा प्रिय काम भी है।
रेडियो जॉकी के रूप में पिछले बत्तीस वर्षों से सक्रिय हूँ और अब आठ साल से दूरदर्शन से भी जुड़ी हुई हूँ।
इस बीच सन् 2007-18 तक दस वर्ष का प्री प्रायमरी शिक्षण का अनुभव भी लिया है।
शिवानी जयपुर
9509105005
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