इस महीने लगातार एक थीम उभर कर आया - जुदाई! इस अंक की कई कहानियों में यही थीम पाया. जुदाई!
... जिगरा विच अगन लगा के – रब्बा, लकीराँ विच लिख दी ... जुदाई ...
आशा है आपको इस अंक की कहानियाँ पसंद आएँगी.
ई-कल्पना में हम खुद को सौभाग्यवान मानते हैं, इतनी सारी अच्छी कहानियाँ प्रकाशन हेतु आ रही हैं. ज़्यादातर लेखक स्थापित हैं, प्रतिष्ठित हैं, उच्च कोटि का लिखते हैं, उन्होंने अपनी रचनाएँ हम नवागंतुकों को सौंपीं, हम उन के अत्यंत आभारी हैं.
ई-कल्पना का एक ज़रूरी मकसद अस्थापित, नौजवान लेखक को मौका देना भी है.
नौजवान खुद को सैकड़ों टी.वी चैनलों, लाखों वैब-साईटों के विश्वजाल में फंसा पाता है. चारों तरफ़ से और हर दम. सूचना के युग का नौजवान सूचनाओं से घिरा है. छः अरब लोग जो उसे लगातार घेरे रहते हैं, उस पर अपनी छः अऱब अलग विचारधाराएँ थोपते रहते हैं, नौजवान मन संभ्रमित तो होगा. और लिखना तो दूर, कोई भी काम करने के लिये सही दृष्टिकोण ला पाना उसके लिये क्यों नहीं कठिन होगा? ये सब हम समझते हैं.
फिर भी, अगर आप लिखना पसंद करते हैं, तो प्रकाशन के मौके कम नहीं हैं, ये बताना चाहते हैं. फलों से लदे पेड़ आपके सामने खड़े हैं, हाथ बढ़ा कर अपने हिस्से के फल तोड़िये. सफल होना कठिन नहीं है. बस ये बात याद दिलाना चाहते हैं.