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मै मासूमा आफरीदी
उम्र 22 साल/
मुझे देखने या तलाश करने की ज़रूरत
नहीं है/
इन वादियों में/
अब मैं नहीं मिलूंगी/
अब मैं यहां कहीं नहीं मिलूंगी/
दूर तक फैले पहाड़ों/ सरसब्ज़ वादियों/
सड़कों/बाज़ारों/
या स्कूलों में/
कहीं-नहीं मिलूंगी मैं/
तोप और टैंकर मिलेंगे सड़कों पर/
दूर तक एक कतार से जाते हुए/
असलहों से लैस वे जादूगर मिल जाएंगे/
जिनकी घनी दाढ़ियों, चेहरे की सख्ती और
खुरदरे हाथों में
हमें गायब करने का हुनर बचपन से सिखाया
गया है/
ठीक उस जादूगर की तरह
जो एक दिन गांव के तमाम चूहों को/
बांसुरी बजाता हुआ/
पहाड़ी की तलहट्टी में लेकर उतर गया था।
मैं मासूमा आफरीदी
उम्र 22 साल/
अब कहीं नहीं मिलूंगी/ मैं इन वादियों में/
कहतें हैं उस मदरसे को भी तोड़ दिया गया
जहां एक बार भूले से तालीम के लिए
ले गई थी मेरी मां/
और इसके एवज़/ उसकी पीठ पर कैक्टस
बो दिये गये थे/
खुशकिस्मत थी मेरी मां/
वो मुस्कुराती हुई, पीठ पर उगे हुए कैक्टस को/
लेकर उ़ड़ गई थी/
हमेशा के लिए
मैं मासूमा आफरीदी
काले कफन में लिपटी/ सर से पांव तक
अपने ही घर की चहारदीवारी में चुन दी गई
यहां बारूदी टैंक और मिजाइलों की धमक में
अज़ानों की आवाज़ें भी कानों तक नहीं पहुंचतीं/
मेरे बेजान पांव घुटन भरे अंधेरे कमरे में
नमाज़ और सजदे के लिए जागते हैं/
तो दुआएं गड़गड़ाती गोलियों में जन्म लेने
से पहले ही/
मर जाती हैं/
मैं मासूमा आफरीदी
उम्र 22 साल/
मुद्दतों से अपने घर की चहारदीवारी में बंद/
उस छोटे से रोशनदान की तलाश में/
जो बाहरी दुनिया को, सूर्य की एक पतली
लकीर के साथ/
मेरी दुनिया से जोड़ सके/
एक अंधेरे से तुलुअ होती सुबह/
एक अंधेरे से खत्म होती शाम/
घने कोहरे में गुम होती हुई
मैं बे-नामो-निशान।
-तबस्सुम फ़ातिमा, डी-304 ताज एन्कलेव गीता कालोनी दिल्ली-110031मो० 9958583881
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