भूल गये तुमको यूँ बातों ही बात में हम
इतने भीगे गम की बारिश-बरसात में हम
ज़ुल्म -सितम इतना सहना पड़ता क्या जानो
फिर छोटी कुटिया,फिर वो ही औकात में हम
जिस हाल में हम हैं रहने दो बिल्कुल ऐसे
बाद सही आधी के रो लें हालात में हम
एक कहर लगती आज सजा सौ-सालो की
काटे प्रति-पल कैदे-उमर हवालात में हम
बचपन नावें कागज़ की कब तैरा करती
उस पर भी बह जाते कोरे जज्बात में हम