यूँ ही कभी अकेले मे, तनहाइयों के सहारे से, यादों के गलियारों मे, में थोड़ा टहल आता हूँ, बंद पड़े पुराने से किसी हिस्से मे, दो पल और बिता आता हूँ, दबी पड़ी किसी मटमैली फीकी किताब से
जिंदगी के हस्नुमा दो चार पन्ने, वापस दोहरा आता हूँ, यूँ ही कभी अकेले मे, तनहाइयों के सहारे से, यादों के गलियारों मे, में थोड़ा टहल आता हूँ |
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