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कुसुम वीर

आज़ादी साकार करें

प्रिय साथियों,

आज़ादी की सालगिरह पर

अपना यह गीत आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ।

सादर,

कुसुम वीर

 

​​

आज़ादी साकार करें

​​उन वीरों के नाम आज हम

धरती पर जाकर लिख दें जिनके शोणित से मिली हमें वह आज़ादी साकार करें

आज़ादी की सालगिरह पर मन मेरा यह सोच रहा सत्तर सालों की अवधि में क्या पाया, क्या बिसर गया

संस्कारों के पात झड़े मूल्यों की जड़ भी ठूँठी है संवेदन का घट रीत गया मानवता सिसकी लेती है

भ्रष्टाचारी आग लगी और दुराचार की फाँस चुभी मार-काट, निज स्वार्थ द्वेष में पैसों की बस होड़ मची

जात-पाँत के टुकड़ों में कब तक हम देश को बाँटेंगे मानवता के परम धर्म को कब फिर हम अपनाएंगे

यह मातृ भूमि है स्वर्ग धरा आओ इसका सम्मान करें देश बढ़े आगे अपना हम आज़ादी साकार करें

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