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कविता :प्रो. रमानाथ शर्मा की कविताएँ

  • प्रोफ़ेसर रमानाथ शर्मा
  • 7 सित॰ 2017
  • 2 मिनट पठन

खामियाजा

कल क्या होगा,जो होगा वही होगा,

ऐसी सोचवाले यद्भविष्यों को क्यों कोसें ।

वो तो ठूंठ हैं, जिनके कल्ले नहीं फूटते,

फूटते हैं तो पनपते नहीं ।

कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं,

समय आने दो, बीज बोएंगे ।

अभी बस चद्दरें तानेंगे, सोएंगे ।

ऐसे अनागत विधाताओं की प्रतिभा

संदेहों की गुंजलक में कैद रह जाती है ।

काल की छाती पर प्रतिभा की तराश तो

कुछ सूझ-बुद्धि ही करते हैं,

वही हैं जो सबका खामियाजा भरते हैं,

सोते हैं, जागते हैं, बोते हैं, काटते हैं ।

साफगोई

साफगोई का यह तकाजा है बात बोलेगी हम न बोलेंगे ।

रोशनी कैद है अंधेरों में आंख लग जाएगी तो सो लेंगे ।1।

यह तो एक टीस है जो दर्द सी सुलगती है ।

प्यार की बात तो कुछ और ही निकलती है ।2।

इसकी निस्बत न वक्त जाया कर ।

बैठ जा, बात करें, रास्ता कुछ आसां हो ।3।

वो जो बेखुदी में खुद को भुलाए बैठा, उसका कोई वजूद तो होगा ।

अगर वजूद भी न हो उसका, उसको देगा तो कोई क्या देगा ।4।

चांदनी चार दिन की होती है, चार रातों की क्यों नहीं होती ।

उसके जो चार चांद लगते हैं, चार रातों को वो नहीं लगते ।5।

दर्द का रिश्ता

स्वप्न झरते नहीं हैं फूलों से

मीत चुभते नहीं है शूलों से ।

कारवां होगा तो गुजरेगा ही,

शिद्दतों की गुबार क्यों देंखें ।

मुद्दतों बाद कोई आया था

साथ देने को सफर में अपना ।

उसको कैसे कहें कि ऎ हमदम

मेरे हमराज नहीं हो सकते ।

दर्द का रिश्ता ही कुछ और हुआ करता है,

उसका हर घाव चोट सहता है ।

उसके रिसने में कोई पीर नहीं

जख्म रिसता है और भरता है ।

रमानाथ शर्मा

rsharmaphd@gmail.com

प्रोफेसर रमानाथ शर्मा (एमेरिटस प्रोफेसर)

यूनिवर्सिटी आव हवाई एैट मनोआ

होनोनोलुलु (हवाई, यू. एस. ए.)

Ramanath Sharma

Emeritus Professor of Sanskrit

University of Hawai'i at Mānoa Honolulu, HI 96822 (U.S.A.)

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