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घरौंदा

उषा बंसल

घरोंदों में अभाव पकता है,

अभाव की चाशनी दिलों को जोड़ देती है ।

खून पसीना बहाकर घर बनता है,

पर फिर-

घर के कमरों सा दिल बंट जाता है।

घरोंदे का सुख

घर के किसी कोने में ,

अनचींहा,अनदेखा, अनजाना सा

रजकण बन रह जाता है

बिजूखा (Scare Crow ) बन

घर की ड्योड़ी पर चिपक जाता है,

किसी दिठौने की तरह।

2.6.06

urb1965@gmail.com

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