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दीपावलि - लघु कथा

हर्ष कुमार सेठ

सुबह के 9 बजे थे मेरी बीबी ने मुझे झंझोर कर उठाया में अचानक उठने से घबरा गया, जैसे कोई करन्‍ट लगा हो। वह बोली पाँच बार नौकर ऊपर आकर तुम्‍हें जगाने की नाकाम कोशिश करके गया है, इसलिए उसे खुद ऊपर आना पढा़, आखिर आज दिवाली है। और बहुत सा समान बाजार से खरीदना है वह जल्‍दी ही तैयार हो गई थी और मेरी चाय मेरे हाथे देती हुई बोली देखों भाभी के लिए एक सोने का सेट लेना है और बच्‍चों के लिए कुछ कपडे़, पचास हजार रूपये कम से कम चाहिए मैनें चाय के घूँट लेते हुए कहा बस पचास हजार, अलमारी से एक लाख रूपये निकाल लो और ये छोटी-छोटी चीजों के लिए मुझसे क्‍यों कहती हो तुम्‍हारे बैंक में लाखों रूपये पढे़ है वह किस काम आएंगे। अनिता बोली ये मेरा फर्ज मुझे यह कहने के लिए मजबूर कर देता है। अनिता एक पढे़-लिखे घर की लड़की थी ओर अपने करोड़पति पिता की आखिरी व इकलौती संतान थी मेरे और अनिता की लव-मरीज हुई थी।

वैसे तो मैं भी कम अमीर नही था कम से कम 100 करोड़ की जायदाद मेरी भी होगी पर माँ-बाप ने मुझे 40-50 करोड़ का हिस्‍सा देकर घर से निकाल दिया क्‍योंकि अनिता एक-दूसरे जाति की लड़की थी ओर मैं दूसरे जाति का।

आज मेरा बिजनेस बहुत अच्‍छा चल रहा था बडे़ से बडा़ बिजनेसमैन मुझे सलाम करता था और बडे़-बडे़ राजनीतिज्ञों से भी मेरे संबंध थे। मैं उठा और अपने महलनुमा घर की बॉलकोनी में खडा़ हो गया। सामने बहुत अच्‍छा गार्डन मैनें बनवाया था दिन-रात उसमें फॅब्‍बारा चलता रहता था और वहां से ठण्‍डी-ठण्डी हवा सीधे मेरी बॉलकोनी में आती तो मुझे बहुत अच्‍छा लगता वहाँ खडे़ होने में।

पूरे मकान पर करीब-करीब दस करोड़ रूपये खर्च किये थे हमारे कॉलोनी में और कोई ऐसी कोठी नही थी अपनी बॉलकोनी से तीन या चार मकानों पर पूरी नजर रखी जा सकती थी। थोडी़ देर कसरत करने के बाद मैं भी तैयार हो गया ओर नीचे ब्रेकफास्‍ट करने के लिए चला आया अनिता तैयार होकर अपने भईया के घर चली गई और मुझे शाम को पाँच बजे घर पर पहुँचने के लिए कह गई नाश्‍ता करके मैं ऑफिस निकल गया ओर आज ऑफिस में पूजा करनी थी और फिर अपने वर्कस को बोनस भी देना था।

शाम को पाँच बजे अनिता जब घर पर आई तो मुझे ....देखकर बोली आज फिर तुम शाम से ही पीना शुरू हो गये कम से कम सूरज ढलने का इन्‍तजार किया करो। मैं कुछ नही बोला जहाँ मेरे सामने बडे़-बडे़ चुहे हो जाते है वहाँ अनिता के सामने मैं, शायद यही मेरा प्‍यार था।

शाम ढलती गई अंधेरा घिरने लगा आस-पास से पटाखों की आवाज आने लगी। मैं हलका सा टी.वी. चलाकार पैग के मजे लेने लगा मेरा लड़का 12 साल का था और लड़की 10 साल की वह दोनों भी बाहर पटाखें चलाने में मस्‍त थे अनिता पूजा का समान जुटा रही थी वैसे तो करीब-करीब हमारे घर में 10-12 नौकर थे पर पूजा का सारा सामान अनिता खुद ही जुटाती थी और वह भगवान को बहुत मानती थी आज लक्ष्‍मी पूजन ठीक 8.30 बजे था।

7.00 बजे से 8.00 के बीच कम से कम पचास लोगों को मैं मना करवा चुका था फोन पर की मैं घर पर नही हूँ वरना यहाँ आकर वह मेला लगा देते दिवाली मुबारक कहने के लिए लेकिन मीनिस्टर साहब का जब फोन आया तो मुझे बात करनी पड़ी, उनसे बात करते-करते मैं अपना चौथा पेग भी पी गया। आरती का पूरा सामान आ गया और लक्ष्‍मी पूजन शुरू हो गया अब पटाखें भी कम बजने लगे क्‍योंकि अधिकतर लोग लक्ष्‍मी पूजन के लिए घर में चले गए। अनिता बोली आरती के समय माँ के आगे सर झुकाकर खडे़ हो जाना अभी जो चाहे करो उस समय हिलना नही ओर जितने नौकर है वह भी यह समझ लें कि उस समय कमरे से बाहर कोई नही जायेगा वरना अपशुगन होगा बच्‍चें माँ के साथ पहले ही पूजा के लिए बैठ गए।

मैं बॉलकॉनी में खडा़ होकर पैग लगाने लगा अचानक मैनें देखा सामने बाले मोड़ पर एक गरीब माँ बाप आपने छोटे से बच्‍चे को लेकर कभी इधर-कभी उधर देख रहे थे मैं कुछ देर उनको देखता रहा फिर देखा की वह शायद किसी कपडे़ या बोरी से बच्‍चे को ढक रहे है। मुझे ऐसा लगा कि यह गरीब है इसलिए इन महलनुमा कोठियों के पास चले आये है। शायद कुछ कपडा़ ओर पैसा उन्‍हें मिल जाए यह सोचकर मैं उठा ओर अलमारी से तीन चार कम्‍बल उठा लाया और सोचा की पूजा के बाद इन्‍हें वह कम्‍बल में खुद ही दे आऊंगा।

पैग पीते-पीते मेरी निगाह बार-बार उनपर चली जाती जब किसी गाडी़ की आवाज आती तो वह उत्‍तेजित हो जाते और उसे रोकने का प्रयत्‍न करते जब बार-बार ऐसा करते मैनें उन्‍हें देखा तो मुझसे रहा नही गया ओर में नीचे उतरकर कोठी से बाहर उनके पास पहुँच गया। मुझे देखकर वह मेरे पाँव में गिरकर रोने लगे और बोले साहब हम पास के गांव से चार-पांच दिन पहले यहा आए है हमने सोचा था कि शहर में रोजी-रोटी का कुछ प्रबन्‍ध जरूर हो जाएगा लेकिन यहाँ आते ही यह मेरे एक साल का बच्‍चा बीमार हो गया और अब तो बहुत ही बीमार है साहब-साहब हमारी मदद करों हमें तो कोई हस्‍पताल भी यहां नही मालूम साहब हमारी मदद करों और यह कहकर वह रोने लगे। मुझे लगा कि बहुत जल्‍दी उन्‍हें मेरी मदद की जरूरत है यह सोचकर मैं वापिस घर की तरफ मुडा़ और भागकर अपने नौकरों को बारी-बारी से बुलाने लगा पर किसी ने मेरी आवाज नही सुनी मुझे समझने में देर नही लगी कि सब पूजा वाले कमरे में है। मैं भाग कर उस कमरे तक पहुँचा पर मैं आरती वाले कमरे में नही गया बस मैं कोने पर खडा़ हो गया अनिता मुझे देख कर बोली कि तुम्‍हारा इन्‍तजार कर रहे थे आरती करनी है अब बिल्‍कुल चुप रहना और माँ की आरती शुरू हो गई। मैं क्‍या करता उधर वह अंजान परिवार इधर घर के असूल ओर तीसरी बात भगवान जिनकी यह पूजा या आरती सबसे महत्‍वपूर्ण है हमें और मैं कैसे इसे अधूरा छोड़ सकता था। शराब के पाँच पैग का नशा इतना चढा़ हुआ था कि कुछ सोच नही पा रहा था हाथ में कम्बल भी थे। आरती करते-करते अनीता ने निगाहोही-निगाहो में कम्‍बल के बारे में पूछ रही थी मैं कैसे उसे यह सब बताता की आखिर किसी अजनबी को हमारी सख्‍त जरूरत है जैसे ही आरती खत्‍म हुई। मैनें अपने नौकर को गाडी़ निकलवाने के लिए कहा और अनिता को भी अनदेखा कर कोठी से बाहर आया। अभी मैं बाहर पहुँचा ही था की देखा वह बच्‍चे के माँ-बाप बच्‍चे को बोरी में डाल रहे थे जब मैं उनके पास पहुँचा तो वह जोर से रोने लगे बोले साहब कोई मदद नही मिली ओर वह चल दिया।

पटाखों पर पटाखे चलने लगे आरती खत्‍म होने के बाद या पूजा के समय के बाद यह शुरू हो जाते है, पटाखों की आवाज से उस गरीब को रोना कही सुनाई नही दे रहा था जबकि वह दहाडे़ मार-मार कर रो रहे थे मेरे हाथों से कम्‍बल वही जमीन पर गिर गये और मैं हल्‍के-हल्‍के अपनी कोठी की तरफ चलने लगा अब तक ड्राईवर कार लेकर गेट से बाहर आ गया था। वह बोला साहब कहां चले मैनें उसे कुछ नहीं कहा ओर उसे इशारे से ही कही भी चलने के लिए मना कर दिया। अनिता भी बॉलकोनी से शायद सारा नजारा देख रही थी घर में आते ही उसने मुझसे पूछा ओर मैनें उसे सब कुछ बात दिया उसकी आंखे भर आई।

आस-पडो़स के लोग ओर मेरे बच्‍चे मजे से खूब पटाखें बजा रहे थे। मैं बहुत देर तक यह सोचता रहा कि किसी का कुछ नही गया सब खूब मजे ले रहे है और बगल में ही किसी का जहां लूट गया रात के 2 बजे तक खूब शराब पी ओर फिर शायद बेहोश हो गया ओर बॉलकॉनी में ही लेट गया शायद रात को अनिता मुझ पर कम्‍बल डाल गयी थी सुबह कम्‍बल उठाया तो पता चला मंत्री जी का फोन है, वह बोली, और फोन मेरे हाथ में पकडा़कर चली गई मंत्री जी बोले देखो अगर तुम्‍हें नई फैक्‍ट्री लगवानी है तो एक करोड़ का चन्‍दा हमारी पार्टी को देना होगा, और यह चन्‍दा तो हम गरीबों के लिए ही खर्च करेंगे जैसे उनके लिए दवाईयाँ, हस्‍पताल और घर सब चीजों पर, मंत्री जी बोलते रहें ओर मेरे आँखों से आँसू टप-टप टपकते रहे।

 

हर्ष सेठ

hks2528@rediffmail .com दूरभाष न. 9911277762,

seth@ttkhealthcare.com

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