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मील का पत्थर

  • सुधीर कुमार शर्मा
  • 29 नव॰ 2017
  • 1 मिनट पठन

मैं हूँ एक मील का पत्थर

जीवन-पथ का अटल साक्षी, मैं हूँ एक मील का पत्थर

देख रहा जीवन-धारा को, जाने कब से बैठा तट पर

मैं हूँ एक मील का पत्थर

रात और दिन के पंखों से, उड़ते हुए समय को देखा

जाने क्या-क्या बदला पर ना बदली कुछ हाथों की रेखा

कडवे सच से आँख मूँदकर, सिर्फ ऊपरी चमक-दमक को

जाने क्यूँ समझे विकास के, पथ का एक मील का पत्थर

मैं हूँ एक मील का पत्थर

कुछ दावे कुछ वादे देखे, डाँवाडोल इरादे देखे

समृद्धि की आशाओं के, दीप कई बुझ जाते देखे

अन्धकार में खोकर कुछ, लाचार अधूरे सपनों को

आँसू बनकर छलक-छलक कर, बहते देखा मैंने अक्सर

मैं हूँ एक मील का पत्थर

फौलादी सीने दिखलाकर, खाकर झूठी-मूठी कसमें

भाषण से ही निभ जाती हैं, लोकतंत्र की सब कसमें

सूखी फसलें भूखी नस्लें, देख रहा जाने कबसे

बेबस सूनी सी आँखों से, इसे नियति का खेल समझकर

मैं हूँ एक मील का पत्थर

मुँह पर ताला लग जाता है, जब भी मुँह खोलता हूँ

चक्रव्यूह में फँस जाता हूँ, जब भी सत्य बोलता हूँ

शतरंजी बिसात बिछती है, कुछ ऐसे षड्यंत्रों की

रह जाता हूँ मोहरा बनकर, कुछ शातिर हाथों में फँसकर

मैं हूँ एक मील का पत्थर

द्वारा: सुधीर कुमार शर्मा

C-4/1, A.P.P.M. COLONY

RAJAHMUNDRY- 533105 [A.P.]

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