एक चारपाई पर पड़े बिस्तर को इस तरह सहेज कर रखा है किसी ने जैसे बना दिया हो कमरे में ही स्मारक कोई |
बिछी चादर पर पड़ी सिलवटें सुना रहीं थी दास्ताँ
किसी गुजरी सुनहरी चांदनी रात की |
दो आँखें ऐसी कातर नज़रों से एकटक निहार रही हैं तकिये पर लगी लार की कुछ बूंदों के निशान !
जैसे अमृत की बूंदे गिर गयी हों छलक कर रेत में और प्यासा रह गया हो कोई नश्वर देवता...
© नितिन चौरसिया
मेरा नाम नितिन चौरसिया है और मैं चित्रकूट जनपद जो कि उत्तर प्रदेश में है का निवासी हूँ ।
स्नातक स्तर की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से करने के उपरान्त उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय से प्रबंधन स्नातक हूँ । शिक्षणऔर लेखन में मेरी विशेष रूचि है । वर्तमान समय में लखनऊ विश्वविद्यालय में शोध छात्र के रूप में अध्ययनरत हूँ ।
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