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यादों के गवाह

  • - नितिन चौरसिया
  • 13 दिस॰ 2017
  • 1 मिनट पठन

एक चारपाई पर पड़े बिस्तर को इस तरह सहेज कर रखा है किसी ने जैसे बना दिया हो कमरे में ही स्मारक कोई |

बिछी चादर पर पड़ी सिलवटें सुना रहीं थी दास्ताँ

किसी गुजरी सुनहरी चांदनी रात की |

दो आँखें ऐसी कातर नज़रों से एकटक निहार रही हैं तकिये पर लगी लार की कुछ बूंदों के निशान !

जैसे अमृत की बूंदे गिर गयी हों छलक कर रेत में और प्यासा रह गया हो कोई नश्वर देवता...

© नितिन चौरसिया

मेरा नाम नितिन चौरसिया है और मैं चित्रकूट जनपद जो कि उत्तर प्रदेश में है का निवासी हूँ ।

स्नातक स्तर की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से करने के उपरान्त उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय से प्रबंधन स्नातक हूँ । शिक्षणऔर लेखन में मेरी विशेष रूचि है । वर्तमान समय में लखनऊ विश्वविद्यालय में शोध छात्र के रूप में अध्ययनरत हूँ ।

फ़ोन -09453152897

ई-मेल - niks2011d@gmail.com

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