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इंसानियत

  • डॉ.सुधा चौहान
  • 18 जन॰ 2018
  • 2 मिनट पठन

एक बूढ़ा मदारी था उसके पास संपत्ति के नाम पर केवल एक बंदर था जिसे नचा कर मिलने वाले पैसों से वह अपना पेट पालता था। वह मदारी उस बंदर को अपने बेटे की तरह प्यार करता था। उसके खाने पीने और सुविधा का पूरा खयाल रखता था। वह उससे अपने सुख दुख की बातें भी करता था, जब कभी मदारी की आंखों से आंसू बहते तो वह बंदर उसकी गोद में बैठ कर अपने हाथों से उसके आंसू पोंछता था और फिर कला बाजी दिखा कर उसे हंसाने की कोशिश करता था। एक बार मदारी को बुखार आ गया और वह तीन चार दिन से बुखार में पड़ा तड़प रहा था, पर उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। बंदर का तमाशा ना दिखा पाने के कारण उसके पास खाने को भी कुछ नहीं था। वह दोनों ही तीन दिन से भूखे थे। मदारी ने सोचा बुखार में मैं तो बाहर आ जा नहीं सकता और मेरे साथ यह बानर भी भूखा प्यासा मर रहा है। मुझे इसके साथ ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं इसे छोड़ दूं तो यह जंगल में चला जायेगा और अपना पेट भर कर आराम से जीवित रह सकेगा। यही सब सोच कर उसने उसे जंजीर से खोल दिया और उसके सिर पर हाथ रखा कर कहा-- जा आज से तू आजाद है। इस शहर से बहुत दूर जंगल में चले जाना और अपनी बानर जाति के साथ मिल कर रहना । बंदर उछलता हुआ खुश हो कर बाहर चला गया और कुछ ही देर में छलांग भरता हुआ एक पेड़ पर जा बैठा। कुछ ही देर में उस पेड़ के नीचे से एक केला बेचने वाले का ठेला निकला। बंदर ने उसे कुछ देर तक देखा फिर कुछ सोचा और छट से पेड़ के नीचे आकर केले के ठेले पर कूदा और एक बड़ा सा केले का गुच्छा उठा कर फिर पेड़ पर चढ़ गया। केले वाला जब तक कुछ समझता तब तक बंदर जा चुका था वह कुछ भी ना कर सका और जल्दी ही वहां से अपना ठेला लेकर चला गया। बंदर कुछ देर बाद छलांग लगाता हुआ वापस मदारी के पास आया और उसकी गोद में उसने वह सारे केले रख दिये। बंदर और केला को देखकर मदारी सब समझ गया और आंखों में आंसू भर कर बोला -- तू फिर वापस इस बंधन में आ गया रे! इतनी इंसानियत तो इंसानों में भी नहीं है, अच्छा हुआ तू इंसान नहीं है।

परिचय

नाम- डाॅ. सुधा चौहान ‘राज’ पति- श्री राजेन्द्र सिंह चैहान

शिक्षा- मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र व शिक्षाशास्त्र से स्नातक, इतिहास में डबल एम. ए. व संस्कृत से एम.ए., योगाचार्य, वेदाचार, सनातन कर्मशास्त्र में डिप्लोमा व बाल मनोविज्ञान काउंसलर।

यात्रा-इंग्लैण्ड, अमेरिका, चाइना, जापान, नेपाल, व तिब्बत।

संपादन- जय महाकाल / सिंहस्थ, बुंदेली संस्कृति, छाया।

संग्रह - मेरे पापा, माॅं, कहानी संग्रह, कविता संगह, हम पांच

प्रकाशित - नौ पुस्तकें प्रकाशित, दो का इंगलिश अनुवाद अमेरिका में

अब तक पच्चीस सम्मान अलंकरण उपाधि, प्रशस्ति पत्र व नगद राशि सहित पुरूस्कार प्रादेशिक, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त।

पता- आर-44 महालक्ष्मी नगर इंदौर

मोबा. 98260-30993, फोन- 0731-4068242

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