“मेरे यहां स्त्री पर हावी पुरुष मानसिकता को ले कर एक आक्रोश है. यह आक्रोश विश्व-पटल पर फैलती स्त्री चेतना और मज़बूती का प्रतीक है.” तबस्सुम फ़ातिमा कहती हैं.
लेकिन वे यह भी तो कहती हैं कि “हम उसे हर बार सपने देखने से पहले ही मार देते हैं...” हाँ, तबस्सुम जी में गुस्सा है, लेकिन उससे भी ज़्यादा मात्रा में संवेदना भी है.अपने परिचय में इन्होंने कहा है -–
अनेकों अवार्डों से सम्मानित, पुरस्कृत, दूरदर्शन और प्राइवेट सेक्टर के लिए साहित्य पर आधारित कई बड़े प्रोग्रामों की निर्माता तबस्सुम फ़ातिमा के अनुसार - “बे - ज़ुबानी के साथ औरत का गहरा संबंध रहा है। इसलिए प्रत्येक औरत मुझे बेज़ुबाँ दास्ताँ की दर्द भरी फ़रियाद मालूम होती है। वह हर रूप में अपना सब कुछ लुटाने के बावजूद भी हर मोड़ हर क़दम पर अग्नि परीक्षा के लिए अब भी तैयार बैठी है। ऐसा क्यों है ? …
हम उसे हर बार सपने देखने से पहले ही मार देते हैं / वह जीवित होते हुए भी केवल एक नाटक भर है / जब तक जीवन शेष है ,नाटक चलता रहेगा / लेकिन कोई उसे ढूंढ के नहीं लाएगा / यह असफलता ही दरअसल मर्द की सफलता है
मेरा परिचय यही है। मेरे लेखन में यही औरत जागती रही है। मैं उसे हर बार जीवन के एक नए युद्ध के लिए तैयार करती हूँ। मैं उसे जीवन के हर मोर्चे पर सब से आगे देखना चाहती हूँ। यह लड़ाई समाज के साथ लेखन को भी लड़नी है। इस में मेरी भागीदारी केवल इतनी है कि मैं ने इस जंग के लिए लेखन को अपना हथियार बनाया है।