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योगबन्धन

डॉ. अनिल भदोरिया

आज मेरे ओर तुम्हारे गठबंधन को 25 वर्ष पूरे हुए।

7 जून को 25 वर्ष पूर्व ही हम एकमत, एकसूत्र और एकसार हुए थे।

समय बीतता है या समय उड़ता जाता है.... समय ही कहता है कि प्रीतिकर हो तो वह उड़ जाता है।

जब हम 7 जून को एकाकार हुए तब एक पूर्णता की अनुभूति मन, मानस और मनस्वी को हुई थी, एक तृप्ति भाव पैदा हुआ था और जब हमारे हस्ताक्षर हुए तब ये योगबन्धन परिपूर्ण हुआ।

घर परिवार के बड़े, बुजुर्गो का शुभाशीष भी रातरानी के पुष्पों की भांति बरसा ओर मन पुष्पों की तरह सुवासित हुआ।

बधाइयां, शुभकामनाएं, सदिच्छा, शुभेच्छा आने लगीं और मन प्रफुल्लित होता रहा साल भर।

घर , द्वार-चार, समाज और विप्रजन गर्व की अनुभूति करते और कराते रहे और में इस योगबन्धन में लीन रहा।

मित्र, विप्र, शत्रु, ज्येष्ठ, कनिष्ठ, धनी, दरिद्र सब सेवा की आस भी लगाते रहे कि अब यह बच्चा भी बड़ा हो गया है, आदमी हो गया है, इसकी सेवा भी मिल जाये योगबन्धन से तो ये बड़ा आदमी भी बन जाये।

आस ऐसी चिरैया का नाम है कि जिससे मिलने की अकांक्षा उम्र के बंधन से परे नवजात शिशु से लेकर मरणासन्न संत तक को लगी रहती है।

कभी छोटी आस है तो कभी बड़ी आस है जो हमारे इस सेवा बंधन से जन जन को लगी रही।

अन्याय भी नही है, किसी अपने या गैर से कुछ आस लगाए लेना।

इस देवभूमि का स्वभाव है कि.....मलिन हो या कुलीन, सहायता की आस और उसका प्रयास हर व्यक्ति कर लेता है।

साल बीतते रहे, आस भी अपने रूप बदल बदल सामने आती रही। दूसरों की तो सही अपनी आस भी धीरे धीरे पूर्ण होती रही लेकिन हमारा ये गठजोड़ दिनोंदिन मजबूत होता रहा, अटूट होता रहा।

इस दरमियान कभी निराशा आ जाती तो कभी असंतोष तो कभी आसन्न संकट का भय तो कभी कर्तव्य पालन का शुद्ध भाव।

तुम मेरे कंधों पर सवार, उत्तरदायित्व का भार डाले नैतिकता, निष्ठा, देशप्रेम ओर सेवा के अलौकिक भाव के साथ कदम से कदम मिलाकर चलतीं रही जैसे जवान सैनिकों की पास आउट परेड चल रही हो।

भय , लोभ, मोह औऱ अनैतिकता के बवंडर डोलते रहे, कभी मैं डगमगाता.... कभी तुम दबाव बनाती की यह तो कर ही लो.... तुम्हें यह करना ही पड़ेगा....ठीक न होगा नहीं तो.....मन कंपकपाता रहा परंतु विवेक का खंभा सिर ताने , आसमान के नीचे नैतिक संबल दिए रहा फिर तुम भी मान जाती, जैसे मेरी परीक्षा ले रही हो, कि ये मन..... ये मनुआ ......डोल जाएगा या एकाग्रता, सहनशीलता और समाधि कि बलिवेदी पर खरा उतरेगा।

लोग देखते, हंसते, परिहास करते, आलोचना करते......फिर विस्मय करते कि कैसे ये ..... इस आभासी गठबंधन में प्राकृतिक न्याय की छड़ी लिए अपने नौका को समुद्र के अस्थिर पानी मे स्थिर रख पायेगा।

25 वर्ष ...एक गठबंधन...कभी ऊंचा स्वर तो कभी नीचा स्वर........ कभी आगे बढ़कर तो कभी पीछे हटकर कभी रौद्र रूप में तो कभी हास्य रस में........ तो कभी संभावना में तो कभी कड़ी मेहनत में, गलबहियां किये ये समर साथ चलता रहा, चलता रहा है। सरकारें आती रहीं, जाती रहीं। शासन कुशासन या सुशासन होते रहे। संकट उत्पन्न होते रहे, आते रहे, हलाकान करते रहे, हम और हमारा गठजोड़ शादी के 7 फेरों के जोड़ की भांति अटूट बना रहा। भले तबादले होते रहे, मतभेद होते रहे, मनभेद भी होते रहे, मंत्री-संत्री भी प्रकट होते रहे, फिर निरंक होते रहे, फिर भी मेरा ये तुमसे जोड़ बना रहा।

तुम्हे, शत शत प्रणाम है....

हे मेरी पोषक, जीवनदायिनी, परिवारपालिनी,

लोप नदी सरस्वती के निर्मल जल की प्रवाह का अहसास कराने वाली,

राज्य शासन में मेरी अर्धांगिनी की भांति जन सेवा की यह मेरी..... शासकीय सेवा.... में तुम्हे हृदय से प्रणामम करता हूँ।

चिकित्सक के रूप में शासकीय सेवा जटिल कार्य है क्योंकि उपलब्ध सीमित संसाधनों में सेवा के साथ उत्तम परिणाम प्राप्त करना होते हैं।

फिर भी....

शासकीय सेवा तिस पर चिकित्सीय कर्म *सेवा में मेवा* का अनमोल मार्ग है।

25 वर्ष की शासन सेवा द्वारा जन सेवा, शासन सेवा, परिवार सेवा और स्वयं सेवा का मार्ग भी सिद्ध हुआ है......

हृदय से हे....सेवादायिनी....मैं तुम्हें नमन करता हूँ।

 

akbhadoria@yahoo.com

Dr AK Bhadoria

9826044193

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