ज़िंदगी की
प्रत्येक अनचाही घटनाओं के
साँचे में वो खुद को
ढाल रहा था...
लोग भी चाहते थे -
वो हमेशा उन्हीं साँचों में
फँसा रहे...
कभी अपनी मर्ज़ी से
खुद को ढालने न पाएं
उनकी कोई निजी पहचान
कभी न बना पाएं...
क्योंकि -
उनके पास न सत्ता थी,
न धन था और न थी खरीदी हुई
शोहरत !
उनका कुसूर था -
वो संस्कारी था, नॉन करप्ट था
सरल था, सहनशील था और
संवेदनशील था !
शायद
यही एक कसूर ..हर बात पर भारी था ||
*
|| पंकज त्रिवेदी ||
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