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कामगार औरतें

  • सुशांत सुप्रिय
  • 8 अग॰ 2019
  • 1 मिनट पठन

कामगार औरतों के

स्तनों में

पर्याप्त दूध नहीं उतरता

मुरझाए फूल-से

मिट्टी में लोटते रहते हैं

उनके नंगे बच्चे

उनके पूनम का चाँद

झुलसी रोटी-सा होता है

उनकी दिशाओं में

भरा होता है

एक मूक हाहाकार

उनके सभी भगवान

पत्थर हो गए होते हैं

ख़ामोश दीये-सा जलता है

उनका प्रवासी तन-मन

फ़्लाइ-ओवरों से लेकर

गगनचुम्बी इमारतों तक के

बनने में लगा होता है

उनकी मेहनत का

हरा अंकुर

उपले-सा दमकती हैं वे

स्वयं विस्थापित हो कर

हालाँकि टी.वी. चैनलों पर

सीधा प्रसारण होता है

केवल ' विश्व-सुंदरियों ' की

' कैट-वाक ' का

पर उससे भी

कहीं ज़्यादा सुंदर होती है

कामगार औरतों की

थकी चाल

 

A-5001 ,

गौड़ ग्रीन सिटी ,

वैभव खंड ,

इंदिरापुरम ,

ग़ाज़ियाबाद - 201014

( उ.प्र. )

मो: 8512070086

ई-मेल: sushant1968@gmail.com

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