आए हम जिस दिन से
मृत्यु तो तय है ही,
फिर करें न तैयारी,
जब चले ही जाएंगे.
कोशिश करें ,
थोड़ा-सा यहीं रह जाएं.
छोड़ जाएं अपनी आँखें
किसी और की रोशनी के लिए,
समय रहते कर लें प्रण
देहदान अंगदान का भी
थोड़ा-सा यहीं रह जाएं.
लिवर, चर्म,किडनी
मिले किसी को जिन्दगी.
हम तो जाएंगे ही
अच्छा हो किसी के काम आ जाएं
थोड़ा-सा यहीं रह जाएं .
पहली बारिश के बाद बची रही
सौंधी सुगन्ध की तरह ,
मानव का मानव के प्रति
स्नेह समर्पण के लिए,
थोड़ा-सा यहीं रह जाएं.
परिजन महसूस करेंगे
हमारे होने का एहसास,
जाने के बाद कोई आस्तित्व नहीं
थोड़ा-थोड़ा दूसरों में बस जाएं,
थोड़ा-सा यहीं रह जाएं.
सोच लें ,वाकई हम चले जाएंगे.
किसी की ज्योति में,
किसी की धड़कन में,
किसी के जीवन स्पंदन मेें
हमारा भी अंश होगा.
थोड़ा-सा यहीं रह जाएं.
थोड़ा-सा यहीं रह जाएं.
मंजुला भूतड़ा, अध्यक्ष, इन्दौर लेखिका संघ
लेखिका एवं सामाजिक कार्यकर्ता