top of page
सुशील यादव

आसमान से गिरे .....

आसमान से गिरते हुए मैंने बहुतों को देखा है ,मगर किसी मुहावरे माफिक खजूर में लटका किसी को नहीं पाया ....| एक तो अपने इलाके में दूर-दूर तक खजूर के पेड़ नहीं ,दूजा आसमान को छूने वाले आर्मस्ट्रांग नहीं | किसी काम को वाजिब अंजाम देने के लिए आर्म का स्ट्रांग होना बहुत जरूरी साधन है ऐसा हमारे गुरूजी ने दूसरी तीसरी क्लास में बता दिया था| जोश के लिए अखाड़ा पहलवानी की शर्तें भी रख दी थी | हम पहलवानी की तरफ तो नहीं गए ,केवल उनके सुझाये बादाम ने आकर्षित किया ,सो खाते रहे | फायदा ये हुआ की आर्म की बजाय हमारो खोपड़ी स्ट्रांग होते गई | खजूर में लटके हुओं का इंटरव्यू लेने की दबी इच्छा आज भी है | ज़ूम-कैमरे और लेटेस्ट तकनीक के मोबाइल माइक को ले के हम हमेशा तैयार रहते हैं | सुदूर जंगल से भी खबर ये आ जाए कि कोई लटका हुआ है तो हम पहुचने की शत प्रतिशत गेरंटी देने में अव्वल हैं | एक दिन जोरों से हांफता नत्थू आया ,सर जी जल्दी चलो ,आपकी इच्छा पूरी होगी | आप खजूर पर लटके हुए का इंटरव्यू लेना चाहते थे न .... ? मुझे अचंभित देख कहने लगा .... वो अपने गाव का है न मुच्छड़ किसान पलटू उसे गाव से बाहर 'छीन-खजूर' पेड़ तरफ रस्सी लेके जाते देखा है | वहां -कहाँ मरने जा रहा है ..... ? चलो देखते हैं ....ताड़ी -वाडी का चक्कर होगा ...| स्पॉट में जाने पर मामला भी बिलकुल वैसा ही पाया ....| पलटू ताड़ी उतार के खुद उतर रहा था ...| हमारे दोनों कंडीशन को फुल-फिल नहीं करता था न तो वो अंतरिक्ष गिरा मानव था ना आ के खजूर पे लटका था | फिर भी टाइम पास की गरज से उसी से कल्पित इंटरव्यू का रिहल्सल कर लिया | पलटू को पास बुलाया | वो ताड़ी छोड़ भागने की फिराक में था नत्थू ने पकड़ लिया | पुचकारते हुए कहा घबराओ नहीं हम ताड़ी अपराध रोकने वाले महकमे के नहीं हैं | साहब जो पूछे बता दो बस ...|पलटू सहमी नजर से देखने लगा |मैंने सवाल किया , पलटू, बताओ तुम्हे कोई आसमा से नीचे फेक दे ,तुम जमीन पर आने की बजाय खजूर पे लटक जाओ तो क्या करोगे ....? पलटू को प्रश्न सुनते ही ताड़ी -बोध ने फिर घेर लिया | क्या मुसीबत में फंसे स्टाइल में नत्थू तारणहार पर सवालिया निगाह फेर के कहा ,आप कह रहे थे कुछ नहीं होगा ,मगर साहेब हमें फेक रहे हैं | पलटू -नत्थू संवाद बाद वह पूरी तरह आश्वस्त होकर इंटरव्यू को राजी हो गया | पलटू उवाच .... साहेब जी , आप को उल-जलुल की बहुत सूझती है ,नेता चार दिन कुर्सी से चिपक क्या जाता है उसे चारों तरफ हरा -हरा नजर आता है | गधे की हालात हो जाती है ... अरे बाप रे ... अभी तो कुछ नहीं चरा .... बहुत ज्यादा चरना बाकी है ....? उसका दम फूलने लगता है,... साहेब हम लोग किसान हैं ,आपके सवाल के मरम तक पहुच गए हैं | किसान के सामने आसमान से गिरने जैसी नौबत तब आती है जब हम गाँठ के आखिरी बीज तक को खेत में बगरा के ऊपर आसमान को तकते हैं ,बरखा -मेघा . बरस भी जाओ | वे ठेंगा दिखा देते हैं | हम साहूकार -बिचुलिये के पास बीज कर्जा लेने जाते हैं | वे हमें खजूर में लटके हुए माफिक ट्रीट करते हैं ,देखो किसनवा ,तुम ऊँचे में फंसे हो ,तुम्हे उतारने की लंबी सीढ़ी चाहिए| इतनी लंबी सीढ़ी आर्डर पर जुगाड़ से बनती है | सबसे पहले इस एग्रीमेंट पर अंगूठा लगाओ | हम अंगूठा लगाते -लगते पूछ बैठते हैं | कोनो जतन करो हमें धकियाने ले अब की बार बचा लो साहू जी | -हाँ ,हाँ, हम लोग हैं इसी मर्ज की दवा | तुम्हे अच्छी से नीचे उतारने का इंतिजाम किये देते हैं | साहूकार कागज़ समेट कर तिजौरी के हवाले करते हुए,नॉट पकड़ा देता है | उसकी बनाई सहूलियत की सीढ़ी से हम उत्तर तो आते हैं, मगर लोचा फसल कटाई बाद शुरू होता है | अंगूठा लगा कागज़ दिखा वे खड़ी सीढ़ी को औंधा बिछा के कहते हैं या तो इसमें लेट या अगले साल की फसल बुवाई-कटाई के लिए हमसे कर्जा ले ....|ब्याज का हिसाब अभी किया ही नहीं है | -इन सब झमेलों से निपटने के लिए पलटू जी आप जैसी बिरादरी की क्या योजना है ...? --किसान की योजना सिर्फ खेत खलिहान तक पहले की भांति होती तो ठीक .थी साहेब .... अब कॉम्पीटीशन के जमाने में , बेटे- नातियों को स्टेंडर्ड की शिक्षा देनी है ,वे उधर गये तो इनके रहने-बसने पर खर्च होना है | जरूरत के खर्चों में आजकल नेट, टी वी, मोबाइल जुड़ गया है इनका इंतिजाम न हो तो उनको पढाई में खलल महसूस होता है | हमारे जमाने में एक टाकीज पर फ़िल्म रिलीज होती थी तो महीनों नहीं उतरती थी | अब चार दिन चली पिक्चर सौ करोड़ कमा लेती है, ऐसा गाव वाले बताते हैं | आप जान सकते हैं ,किसानों की कमाई का, कितना अहम भाग उनके लाडले, इधर इन्वेस्ट कर रहे हैं | सरकार ने तरक्की के नाम पर गाव को सड़क बना-बना के जोड़ दिया| देहातों में कोने-कोने तक बाइक लोन दिलवा-दिलवा के हर घर में मोटर सायकल भिजवा दी ,टी वी फ्रीज , कूलर लगवा दिए| नतीजा क्या रहा..... ? सब कमाऊ पूत शहरोन्मुखी निक्कमे हो गये | गाँव कोई महीनों-सालों झांकता नहीं | बेरोजगारों को कम पैसों में राशन ,पीने को सर्व सुलभ शराब है | सरकारी ऐलान मार्फत ये सब चीजें स्कूल-कालेज, मंदिर- देवालय के नजदीक उपलब्ध हैं ....? क्या ख़ाक खेतों में मजदूर जुटेंगे ...? आप देख रहे हो ये रस्सी, हर रोज ये इच्छा होती है इसे गले ने डाल के झूल जाऊं ...? हम जैसो का आसमान से गिरना और आप जैसों का खजूर में लटके लाशों पर राजनीति करना बहुत आसान है | भले ,आपने पूछने की भले हिमाकत न की हो, आसमान से गिरने वाले खजूर पर कैसे लटक जाते हैं ... मेरी बात को दुनिया तक पहुचाइए सब समझदार हैं खुद जान जाएंगे ....| माहौल में ,एक गहरी निश्तब्धता छा गई..... मुझे लगा एक बढ़िया इंटरव्यू वाला काम निपट गया .... मगर ये क्या ....? पलटू का संवाद तो केप्चर हुआ ही नहीं .... | पलटू के संवाद को केप्चर नहीं कर पाने का मुझे ताजिंदगी अफसोस रहेगा ,मोबाइल का स्विच गलती से आफ रह गया था | ऐसी चूक या गलतियां कभी-कभी सरकार से भी हो जाती है वे कहीं, ग़रीबों की योजनाओं को शुरू करने वाले बटन को आन करना सालों भूले रहती है | सुशील यादव न्यू आदर्श नगर दुर्ग @@@

0 टिप्पणी

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें

आपके पत्र-विवेचना-संदेश
 

bottom of page