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जमाने भर का दर्द

  • मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
  • 18 अक्तू॰ 2019
  • 1 मिनट पठन

जमाने भर का दर्द

समेटे हुए हूँ अपने भीतर

बेहिसाब शिकायतें हैं उनसे

पर कह कुछ नहीं रहा उनसे

कर रहा हूँ शिकायत

सिर्फ अपनी ही परछाई से...

मैं नहीं चाहता कोई बरबाद हो ?

मैं हमेशा से ही आबाद का समर्थक रहा हूँ

तो भला कैसे, किसी को गिरा सकता हूँ ?

मैं आस्तीन में छुपा कोई सांप नहीं ?

मैं हूँ एक खुली किताब

मेरे अन्दर समाया है

जमाने भर का दर्द |

भले ही स्वप्न सारे हो गये चकनाचूर

पर मैंने नहीं छोड़ी अपनी अच्छाई,

हृदयभरी सच्चाई |

पी रहा हूँ जमाने भर का विष

नहीं गिरने दे रहा एक भी अश्रु-कण

सिर्फ तुम्हें दिखाने के लिए गा रहा हूँ मधुगीत

मगर मैं चाहता हूँ

तुम महसूस करो मेरे अन्दर समाया

जमाने भर का दर्द...

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

ग्राम रिहावली, डाक तारौली,

फतेहाबाद,आगरा 283111

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