रोशन करो तुम इस जग को इतना
कोई दर तिमिर से ढका रह न पाए
दीपों की माला सजे द्वार सबके
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
स्नेह से पूरित हो जीवन की बाती
द्वेषों की आँधी बुझाने न पाए
सुरीली हो सरगम सुप्रीत इतनी
वितृष्णा के स्वर इसमें मिलने न पाएं
निर्मल हो यह मन नदिया के जैसे
सागर सा ख़ारा यह होने न पाए
सरसे सुधा रस इतना ज़मीं पर
कि प्यासा कोई फ़िर कहीं रह न जाए
कोठी, ये बँगले, बहुत हैं सजाए
निर्धन की बस्ती भी जगमग बनाएँ
तृप्ति से पूरित हो हर जन हमेशा
विकल मन किसी का कहीं रह न पाए
हो स्वच्छ और समृद्ध भारत हमारा
धरती यह शोषित होने न पाए
संचित करें जल की हर बूँद को अब
कि प्यासा धरा पर कोई रह न जाए
खुशियों की आभा बिखेरें जगत में
कहीं ग़म की रेखा उभरने न पाए
दीपों की माला सजे द्वार सबके
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
कुसुम वीर
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