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गुड़ की डली

सुधा गोयल 'नवीन'

पूरे मोहल्ले में आज एक ही बात की चर्चा हो रही थी ...

मेहरुन्निसा और अनवर तलाक ले रहे हैं.

यह कैसे हो सकता है? हो भी रहा है तो क्यों? इस जोड़ी की तो दादियाँ-नानियाँ मिसाले देती थकती नहीं थी. नए जोड़े को आशीर्वाद देती तो कहतीं, "मेहरू जैसा भाग्य मिले और अनवर जैसा शौहर."

सुबह सबेरे आँख खुलती तो मेहरू देखती कि उसके लिए चाय बनकर बिस्तर के पास रखी है और अनवर कपड़े धो रहा है. ऑफिस जाने से पहले वह घर का छोटा बड़ा काम निपटा देता और ऑफिस जाने से पहले कहता जाता, "मैं ऑफिस में खा लूंगा, तुम अपने लिए हल्का खाना बना लेना और बस आराम करना. बर्तन वगैरह मैं आऊँगा तब कर लेंगे. "

बाज़ार का सारा काम वह ऑफिस से आते समय करता हुआ आता. यहाँ तक कि मेहरू के लिए एक से एक सुन्दर मंहगे कपड़े खुद खरीद कर लाता और रोज़ बदल-बदल कर घर पर ही पहनने का आग्रह करता क्योंकि मेहरू को लेकर कहीं भी बाहर जाना वह मुनासिब न समझता. एक तो धूप-धूल गंदगी से उसकी जान कहीं फीकी न पड़ जाए, दूसरे अश्लील दुनिया वालों की नज़र लगने का डर. आते-जाते-चलते किसी ने मेहरू का दामन भी छू लिया तो उसकी तो मिट्टी-पलीद हो जायेगी.

मेहरू पति की सेवा करना चाहती थी, पति के लिए एक से एक पकवान बनाकर रिझाना चाहती थी, घर के इतने काम करना चाहती जिससे वह थक जाए. थकने के बाद बिस्तर भी अच्छा लगता है, लेकिन अनवर की बड़ी ही प्यारी दलील थी कि मेहरू को भगवान ने सिर्फ और सिर्फ उसके लिए बनाया है तो वह केवल अनवर को तृप्त करेगी बाकी सारे काम अनवर करेगा. मेहरू को आजकल नींद भी नहीं आती. वह अवसाद में डूबने लगी.

एक दिन मेहरू उदास बैठी थी. अनवर के बहुत पूछने पर मेहरू ने अनवर से एक सिनेमा दिखाने ले चलने की ज़िद की. अनवर ने एकदम से चुप्पी साध ली और घर के कामों में व्यस्त हो गया. मेहरू को समझ ही नहीं आया कि उससे क्या और कहाँ गल्ती हो गई. दो दिन इसी तरह निकल गए. मेहरू के बहुत पूछने पर अनवर बिलख-बिलख कर रोने लगा. बोला,

"मैंने बहुत कोशिश की तुम्हें खुश रखने की, लेकिन तुम खुश नहीं हो. तुम्हें अब मेरा साथ अच्छा नहीं लगता. तुम्हें अब मेरी इज्ज़त की भी परवाह नहीं है. तुम वहाँ अँधेरे पिक्चर-हॉल में किसी गैर मर्द के बगल में बैठना चाहती हो. क्या पता किसी और स्पर्श के लिए तड़प रही हो."

मेहरू और अपमान न सह पाती, अतः उसने अनवर के मुंह पर हाथ रखा कि बस अब वह चुप जाए लेकिन अनवर हीनता, अपमान, अवसाद के गहन कुंड में समाता चला गया और झटके से एक चाकू लाकर अपने बाएँ हाथ की नस काट ली. फिर बोला, "देखो मेरा खून अभी खून है पानी नहीं हो गया."

अगले हफ्ते ही मोहल्ले में यह खबर आग की तरह फैल गई कि मेहरू अनवर से तलाक ले रही है. उसके माँ-बाप, भाई-बहन सब आये हुए है.

मेहरू से किसी ने शायद पूछा था, "पति की तरह नहीं प्रेमी की तरह प्यार करने वाले इंसान से तू तलाक चाहती है? ऐसा पति पाने के लिए तो लड़कियाँ कितने जन्म शिव जी पर जल चढ़ाती है फिर भी ऐसा पति नसीब नही होता. आखिर क्यों?"

मेहरू बोली थी, "तुम नहीं समझोगी ताई. मैं बता भी न सकूंगी. बस यह समझ लो कि उसका प्यार गुड़ की डली है. गुड़ चाहे जितना मीठा हो, लेकिन यदि डली को पूरा का पूरा निगलने की कोशिश करो तो गले में अटक जाएगा और जान पर बन आयेगी. वैसे ही उसके प्यार में मेरा दम घुटता है और मैं मरना नहीं चाहती."

------------- बस --------------

सुधा गोयल " नवीन"

9334040697

goelsudha@gmail.com

3533 सतमला विजया हेरिटेज फेस - 7

कदमा , जमशेदपुर - 831005

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से मास्टर्स (हिंदी )

'और बादल छंट गए " एवं "चूड़ी वाले हाथ" कहानी संग्रह प्रकाशित

आकाशवाणी से नियमित प्रसारण एवं कई पुरस्कारों से सम्मानित ...

झारखंड की चर्चित, एवं जमशेदपुर एंथम की लेखिका

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