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अनवर सुहैल की तीसरी कविता

अनवर सुहैल

तुमने पूछा तो यूँ पाँव थम से गए

हम तो चलते रहे मगर अब थक गए

पहले भी करते थे कितना सफ़र

राह में मुश्किलें आ ही जाती थीं

पांव ज़ख्मी हुए, धूप भी लग रही

प्यास भी लग रही, भूख भी लग रही

हाँफते-हाँफते, फिर भी चलते रहे

ये सफ़र खत्म हो या कि हम न रहें

हम जिन्हें अब किसी को ज़रूरत नहीं

कितना बेकार सा है हमारा वजूद

ज़िन्दगी की है चाहत मगर क्या करें

कोई है जो हमारी भी रह तक रहा

और हम भी पहुंचने की कोशिश में हैं

कितना मुश्किल सफ़र, अंतहीन राह है

मंज़िलों तक पहुंचने की बस चाह है

कोई हमदर्द नहीं कोई रहबर नहीं

सिर्फ़ हिम्मत है जो तोड़ देती थकन

एक उम्मीद है, एक अरमान है

किसी तरह पहुंच जाएं अपने वतन।

 

अनवर सुहैल

09 अक्टूबर 1964 /जांजगीर छग/

प्रकाशित कृतियां:

कविता संग्रह:

गुमशुदा चेहरे

जड़़ें फिर भी सलामत हैं

कठिन समय में

संतों काहे की बेचैनी

और थोड़ी सी शर्म दे मौला

कुछ भी नहीं बदला

कहानी संग्रह

कुजड़ कसाई

ग्यारह सितम्बर के बाद

गहरी जड़ें

उपन्यास

पहचान

मेरे दुख की दवा करे कोई

सम्पादन

असुविधा साहित्यिक त्रैमासिकी

संकेत /कविता केंद्रित अनियतकालीन

सम्मान / पुरूस्कार

वर्तमान साहित्य कहानी प्रतियोगिता में ‘तिलचट्टे’ कहानी पुरूस्कृत

कथादेश कहानी प्रतियोगिता में ‘चहल्लुम’ कहानी पुरूस्कृत

गहरी जड़ें कथा संग्रह को 2014 का वागीश्वरी सम्मान / मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा

सम्प्रति:

कोल इंडिया लिमिटेड की अनुसंगी कम्पनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स के हसदेव क्षेत्र /छग/ में वरिष्ठ प्रबंधक खनन के पद पर कार्यरत

सम्पर्क:

टाईप 4/3, आफीसर्स काॅलोनी, पो बिजुरी जिला अनूपपुर मप्र 484440

99097978108

संपर्क : 7000628806

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