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एक विवाह ऐसा भी

रश्मि सिन्हा

तान्या आज बहुत खुश थी, उसके इंजीनियर बेटे को एक मल्टी नेशनल कंपनी में आकर्षक पैकेज पर जॉब जो मिल गई थी।

"मां," तभी उसे शलभ की आवाज सुनाई दी। वो तेजी से आवाज की दिशा में बढ़ी, और इससे पहले कि शलभ उसके पांवों में झुके उसने उसे ह्रदय से लगा लिया, हौले से उसका माथा चूमते हुए उसकी आंखें छलछला उठी।

"हमेशा ही प्रसन्न रहो----," एक मां के दिल से निकली हुई एक सच्चे आशीर्वाद की पंक्ति।

"मां, मम्मी," दुलार दिखाते हुए शलभ बोला।

"आज आप गैस को हाथ भी नही लगाएंगी। पहले पीजिए अपने बेटे के हाथों की बनी हुई स्वादिष्ट कॉफ़ी और पौष्टिक सैंडविच, फिर आगे का कार्यक्रम तय करते हैं।"

एक शेफ के अंदाज से झुकते हुए शलभ बोला, "सहमत मैम?"

और दोनो ही हंस दिए। फिर उस दिन और अगले दिन भी सचमुच शलभ ने उसे रसोई में घुसने ही न दिया। चाय नाश्ता करके दोनो माँ बेटे शहर के किन किन दर्शनीय स्थलों में घूमने निकल देते और रात का खाना खाकर ही घर लौटते ----

प्रसन्न और संतुष्ट। और आज शलभ के जाने का दिन था।

"आर यू श्योर, आप मेरे जाने के बाद रोयेंगी नही," शलभ ने उसकी तरफ देखते हुए आंख दबाते हुए पूछा।

"अरे जा! रोयें तेरे दुश्मन," तान्या ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "और जब तू इंजीनियरिंग करने गया था, तब क्या मैं रोती रहती थी? महाविद्यालय की प्रिंसिपल हूँ, क्या समझा है तूने मुझे?" तान्या ने कॉलर खड़े करने का झूठा अभिनय करते हुए मुस्कुरा कर पूछा।

आज शलभ जा चुका था, तान्या का मन कॉलेज जाने को बिल्कुल भी न था सो छुट्टी को अप्लाई कर के चाय का कप हाथों में लेकर खिड़की पर अपनी पसंदीदा जगह जा बैठी।

सामने खिला हुआ गुलमोहर था। और गुलमोहर की तरह ही खूबसूरत यादें----

यादें अपने और निशांत के प्रेम की, हदों को लांघते प्रेम की, सब चलचित्र की तरह उसकी आँखों के आगे से गुजर रहे थे।

सब घर मे उसके विवाह की बात करते, सुंदर थी तो रिश्ते भी आते ही जा रहे थे। और वो इनकार कर कर के परेशान थी। यू तो उसके घरवाले प्रगतिशील विचारों के थे

पर निशांत के पिछड़ी जाति का होने के कारण वो ये बात अच्छी तरह जानती थी कि इस विवाह को उसके घरवाले कभी स्वीकृति नही देंगे, उच्च कुलीन राजपूत, ---, असंभव ही था।

और निशांत की सर्विस लगते ही दोनो ने ही पहले रजिस्टर्ड शादी का निर्णय लिया, बाद में अपने अपने घरों में बता देंगे।

तभी तान्या को पता चला था, वो मां बनने वाली थी। समझ नही पा रही थी कि खुश हो या रोये, इसी ऊहापोह में निशांत को फ़ोन मिलाया।

निशांत खुश था।

"अरे तो उदास होकर क्यों खबर दे रही हो। हम लोग आज ही कोर्ट चलते हैं। तुम अपने साथ एक गवाह लेती आना मैभी एक लेकर आता हूँ। अभी थोड़ी देर में फ़ोन करता हूँ।"

पर जो हुआ उसके लिए तान्या अप्रस्तुत थी।

फ़ोन अस्पताल से आया था, निशांत के एक्सीडेंट का----

भागती हुई ही अस्पताल पहुंची थी। निशांत आई,सी,यू. में था। देखते ही हाथ पकड़ लिया था और कुछ कहने का अस्फुट प्रयास---

पर तभी निशांत के चाचा मैरिज रजिस्ट्रार के साथ आ गए, भीगी आंखों के साथ ही बताया कि निशांत की इच्छा पूरी करने ही वो रजिस्ट्रार को लेकर अविलंब आ रहे है।

अस्पताल में ही हुई थी वो करुण शादी। गवाही और माला पहना कर सिंदूर दान, उठ नही सकता था तो सप्तपदी उसकी फोटो के साथ।

सभी की आंखे भीगी थी, और तस्वीर के साथ फेरे लेती तान्या भी रोती ही जा रही थी।

वर्तमान में आ चुकी तान्या का पूरा चेहरा आंसुओं से तर था।

किस मुश्किल से उसने शलभ को पाला और आज एक और जीता जागता निशांत सामने था।

ज्यों निशा का अंत हो चुका हो और फैल गया हो एक अद्भुत प्रकाश।

ये प्रकाश उसके विचारों का भी था, जो उसको कह रहा था कि वो शलभ की शादी जाति देख हरगिज नही करेगी

 

रश्मि सिन्हा

rashmisahai.sinha@gmail.com

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