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कहानी गीत व मुरली की

उषा बंसल

गीत एक महिला थी। बहुत भावुक थी। किसी को भी दुखी देख कर दुखी हो जाती और भरसक उसकी सहायता करने की कोशिश करती। यह उसकी बहुत बड़ी कमजोरी थी जिसके कारण उसके अपने उसके सामने अपना दुख बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कहते थे, वह द्रवित हो अपनी औक़ात से अधिक सहायता करने की कोशिश करती। उसमें उसके पति सदैव उसकी सहायता करते थे। वह खुद एक टीचर थी उसके पति भी टीचर थे। आर्थिक तौर पर बस जैसे-तैसे खर्च चल जाता था। पति जो भी हज़ार दो हज़ार कभी बचा पाते किसी शौर्ट-टर्म प्लान में निवेश कर दुर्दिन के लिये रुपये रखने की कोशिश करते थे।

एक बार की बात है वह अपनी मां के यहाँ गई। वहाँ उसकी बड़ी बहिन आई हुईं थीं। वह घर बनवा रही थी और उन्हें रुपयों की सख़्त आवश्यकता थी। वह अपने पिता से रुपये देने की याचना कर रही थीं। यह देख गीत का मन दुखी हो गया उसने अपने पति से कहा कि ‘जो दो हज़ार अभी आपने जमा किए हैं वह दीदी को दे सकते हैं।’ उन्होंने कहा ठीक है।

गीत ने बड़ी बहिन से बड़ी विनम्रतापूर्वक कहा कि अगर उनका कुछ काम निकल सकता हो तो वह २ हज़ार रुपये दे सकती है। दीदी ने बड़ी हिकारत से गीत को देखा और बोली बड़ी धनी सेठ हो गई है। फिर उन्होंने रुपये लेते में ब्याज न देनी की शर्त रखी।

उन्होंने बाद में रुपये लौटा दिये और हमेशा गीत को धन्ना सेठ कह कर चिढ़ाती रही। पर गीत ने भी नेकी कर दरिया में डाल, सोच अपनाई।

गीत के जीवन में ऐसे बहुत से अवसर आये और वह सहायता किए बग़ैर न रह सकी और हर बार सब की बुरी बनी, शायद व्यक्ति अपनी आदत से मजबूर होता है।

गीत की एक छोटी बहिन थी जिसका नाम था राशि। उसके दो बच्चे थे एक लड़की एक लड़का। लड़के ने इन्जीनियरिंग में प्रवेश के लिये कई परीक्षा दीं। पर उसे किसी कालिज में प्रवेश में नहीं मिला। केवल लाखों के डोनेशन देकर दाख़िला हो सकता था। गीत के बहनोई का बड़ा दुखी फोन आया, राशि ने भी फ़ोन कर सहायता करने को कहा। उसने कहा, “फिलहाल रुपये कहीं से दिलवा दें, उनका बेटा इन्जीनियरिंग करने पर नौकरी कर लौटा देगा।”

गीत पर उन दिनों यह धुन सवार थी कि एक लड़का पढ़ लिख कर कुछ बन जायेगा तो एक परिवार बन संवर जायेगा। देश का बड़ा हित होगा। रुपये लखनऊ पहुँचाने थे। हमेशा की तरह गीत ने पति से कहा कि क्या वह कुछ सहायता कर सकते थे। उन्होंने कहा, ’देखते हैं।’ उन्होंने कई लोगों से बात की। एक सज्जन गीत के बहनोई को रुपये देने को तैयार हो गये।

४ साल में बेटे को पढ़ाने में बहुत बार रुपये की क़िल्लतें राशि बताती रही। दुर्भाग्य से लड़के ने इन्जीनियरिंग कर ली पर कहीं नौकरी नहीं मिली। अब बराबर यह उलाहना दिया जाने लगा कि लड़के की ज़िंदगी बर्बाद करा दी। नहीं तो बी.एड. कर मास्टर ही बन जाता। गीत के यहाँ कोई फंक्शंन था जिसमें बहनोई उनका बेटा व बेटी आये। लड़के को बड़ी सिफ़ारिश से किसी ने शायद ३ हज़ार की नौकरी दिलाने का वादा किया था। उस लड़के ने गीत को बहुत जलील किया की अगर उस समय आपने सहायता न की होती तो मैं कुछ न कुछ बन जाता। आपने हमारा जीवन बर्बाद कर दिया।

गीत चुप-चुप बहुत रोई, पर उसे विश्वास था, उसने सही किया था। तकनीकी डिग्री बी.एड. से कहीं बेहतर थी। पति को भी उनका इस तरह आँख दिखाना अच्छा नहीं लगा। उन्होंने अपने साथियों, मित्रों से उसकी नौकरी लगवाने की कोशिश करना शुरु कर दी। एक व्यक्ति ने उसे कहीं फ़ैक्ट्री में नौकरी लगवाने का वादा किया। पर बहनोई फिर भी त्यौरियाँ चढ़ायें रहे, बोले, ’कहते तो बहुत हैं, लगवा दें तब जानें।’ पर उस सज्जन के प्रयास से उसे नौकरी दिलवा दी गई। फिर प्रमोशन के समय मौसा जी से सहायता करने को कहा। लड़के का भाग्य व ईश्वर की कृपा से प्रमोशन भी करवा दिया। पर उसका शुक्रिया करने के स्थान पर सदैव वह अकड़ते ही रहे।

प्रमोशन हुए भी एक साल हो गया था, तब एक दिन जब वह लड़का अपने किसी काम से अपने मौसा जी से मिलने आया तो उन्होंने उससे रुपये वापस करने को कहा। बस उसी दिन से मौसी-मौसा जी उनके दुश्मन बन गये। उसने पता नहीं कितने रुपये बैंक में डाले पर व्यवहार बहुत अभद्र किया। बात आई गई हो गई।

सम्बंध बनाये रखने के लिये कितनी ज़हर की घूँट पीनी पडती हैं। बड़ी तपस्या है यह भी। इसी बीच राशि की मृत्यु हो गई। उसकी बेटी रुनझुन ने एम बीए कर लिया। पर उसको भी कहीं जॉब नहीं मिला। वह बी.एड. भी थी, तो कहीं पढ़ाना शुरु कर दिया।

गीत की पोती का नामकरण था। बहनोई, बेटी, बेटा भी आये। साथ में समस्या भी लाये। गीत की

बहु का भाई कुँवारा था। उसके पिताजी गीत के समधि उसकी शादी को लेकर बहुत चिन्तित थे। गीत के पति अपने समधि से उसकी शादी कराने का बहुत आग्रह करते थे। गीत के पति ने कई लोगों से बात की, वह जब लड़के से मिलने बंगलौर गये तो आ कर रिश्ता करने से मना कर दिया। गीत केवल यही जानती थी की बहु के घर में यह भाई पढ़ा लिखा है, और बंगलौर में नौकरी करता था। उससे अधिक जानने की उसने कभी कोशिश नहीं की।

बहनोई ने अपने साढ़ू भाई से अपना दुखड़ा रोया और बेटी का जल्दी विवाह कराने की बात कही। बात यह थी कोई लड़का दूसरी जात का उससे शादी करना चाहता था। पर उसकी तनख़्वाह बहुत कम थी। उन्होंने फ़िल्मी अंदाज में उससे कुछ महीनों में कुछ लाख रुपये कमा कर दिखाने की शर्त रखी, जो बड़ी हास्यास्पद थी। बात होते-होते यह हुआ कि बहु के भाई का सम्बन्ध इससे करा दें। गीत के लिये यह उल्टा-पलटा रिश्ता था। जिसने सुना उसने ही ऐसा न करने की सलाह दी।

पर होनी को कौन टाल सकता था। गीत के भाग्य में बहुत से दुख लिखे थे उनमें से यह भी एक था। गीत की एक सहेली थी, जिसके यहाँ इस तरह का विवाह हुआ था, सब बहुत खुश व आनंद पूर्वक रहते थे। परन्तु यहाँ तो कुछ और ही बदा था। रिश्ते की बात करने पर भी बहनोई और उनका बेटा बंगलौर जा कर लड़के से मिलने, रहना-सहना देखने नहीं गये। लड़के का बड़ा घर देख कर ही आश्वस्त हो गये। अथवा बहुत जल्दी में थे। जैसे सब जैसे-तैसे लड़की को ब्याह कर गंगा नहाना चाहते हैं। सिर का बोझ उतारना चाहते हैं।

एक परिवार बहु के लिये परेशान था तो दूसरा दामाद के लिये, लिहाज़ा सम्बन्ध तय हो गया। रुनझुन के पिता ने कहा कि उनके पास रुपये नहीं है वह कम खर्च की शादी करेंगे। गीत ने इस विवाह को सम्पन्न कराने में धन व साधनों से बहुत मदद की। परन्तु वही ढाक के तीन पात! दोनों तरफ़ से सिर्फ़ बुराई मिली। यहाँ तक कि दोनों परिवारों से गीत का आना जाना मिलना समाप्त हो गया। शायद इसे ही हवन करते हाथ जलना कहते होंगे।

समस्या यहीं समाप्त नहीं हुई, समय के साथ और विकराल होती गईं। गीत के पति फिर भी यथासंभव मदद करते रहे, परन्तु किसी के सहायता करने से क्या होता है? सब की नियति, भाग्य, काम के प्रति रुचि अलग-अलग होती है और सब उसके अनुरूप ही कर्म करते हैं। कोई किसी का सारथी नहीं होता। गीत के पति इतनी बुराई व कष्ट सहने के बाद भी जिसकी जितनी सहायता कर सकते थे करते रहे। उसके पीछे उनको न कोई मोह था, न स्वार्थ। यही उहापोह मन में रहती थी कि जो किया उचित था या अनुचित था। कोई किसी की समस्या नहीं सुलझा सकता।

गीत का अपना जीवन दुधारी तलवार पर चलना सा हो गया। एक तरफ़ बेटा-बहु और दूसरी तरफ़ बहिन- बहनोई व उनकी बेटी रुनझुन। वह तो दोनों की दुश्मन बन गई बग़ैर किसी दोष के।

गीत को यह सब अब और सालता है क्योंकि इससे उसकी सहजता कहीं खो गई थी। कई बार बंगाल के प्रमुख लेखक शरत चन्द्र के उपन्यास की यह लाईन याद आ जाती हैं – “इस संसार में किसी साले का कोई काम नहीं करना चाहिये।”

पर फिर मन कहता था कि दुनिया में सब को एक दूसरे की सहायता करनी ही चाहिये। गीत का मन बहुत सी नेकी करनी की बातों में उलझता-सुलझता रहता। दिल इतने में छिद्र घाव होने पर भी किसी का जरा सा कष्ट मन को दुखा देता था। बहुत बार सोचती थी कि मुरली जिसका सीना छेदों से भरा है फिर भी इतना मधुर, मन-मुग्ध करने वाले गीत कैसे निकालती है।

 

उषा बंसल

urb1965@gmail.com

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