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ठग  उन्नीसवीं शताब्दी भारतीय पृष्ठपट को चीरती हुई एक रोमांस और रोमांच कथा है. यह एक प्रेम-कहानी है, जिसमें धोखा है, हार भी है. आज के दौर में जिसे ग़लत कहा जाएगा, इसमें वो है.

ठग भारतवर्ष में रेलगाड़ियों के आने के पूर्व के उन दिनों की कहानी है जब यात्री आपसी सुरक्षा के लिये बड़े कारवां में यात्रा करते थे. फ़िरंगिया दक्खन से हिंदुस्तान वापस लौटते हुए एक व्यापारी दल के युवा नेता के रूप में यात्रा कर रहा था, असल में ठग दल का नेता था. यात्रियों को मारने का उसे दिव्य आदेश था. उधर अपनी छोटी सी पलटन को साथ लिये, आज़ादी के लिये हिंदुस्तान की किसी बड़ी सेना में शामिल होने पर आमदा चंदा बाई पूना की एक क्षत्रिया थी, देश-प्रेमी थी.

भाग्य से या जान बूझ कर, फ़िरंगिया और चंदा बाई के रास्ते अनेकों बार मिले. चंदा बाई फ़िरंगिया से प्रेम करने लगी और आखिरकार दोनों यात्रा-दल एक साथ रास्ता तय करने लगे.

धीरे धीरे इरादों के खुलासे होने लगे. छिपे रूप सामने आने लगे. दोनों की साज़िशें एक दूसरे पर हावी होने लगीं.

कभी प्रेमी, कभी धोखेबाज़, एक स्वांग रच रहा था, दूसरा सच्चा प्रेमी था. प्यार का ये खेल दोनों को ही महंगा पड़ा.

Thug

₹150.00मूल्य
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