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  • जया जादवानी

बेवकूफ़ कहीं का

उसने अपना सामान जमाने में इतना ज़्यादा वक्त ले लिया कि सामने खड़ा बंदा बेचैन होने लगा. शायद अभी भी वह कुछ और कहना चाहता है. तुम जल्दी आ जाना … पहुँचते ही काल करना, वगैरह–वगैरह.

वह कनखियों से उन दोनों को देख रहा है. उस छरहरी सलवार सूट पहने लड़की सी दिखती औरत की बाहर खड़े व्यक्ति में कतई दिलचस्पी नहीं है, जो उसे छोड़ने आया है. अपना ट्राली बैग रखने के बाद उसने अपना लैपटॉप बैग अपनी सीट पर रखा. फिर एक न्यूज़-पेपर और कुछ किताबें. उसके ऊपर पर्स और सैमसंग का बड़ा सा मोबाईल. खाने का पैकेट उसने पहले ही रख दिया था. जितना बड़ा सफ़र न होगा उतना बड़ा आयोजन, उसने सोचा. आख़िर ट्रेन सरकी. महसूस करते हुए उस स्त्री ने बाहर खड़े व्यक्ति को देखकर अपने चेहरे पर मुस्कान चिपकाते हुए हाथ हिलाया. अनकही–अनसुनी इबारतें अभी भी उसके दूर जा रहे चेहरे से चिपकी थीं. वह उदास था और यह खुश. प्लेटफार्म धीरे–धीरे पीछे छूट रहा है. घंटे भर प्लेटफार्म का शोर सहने के बाद ए.सी.कूपा किसी स्वर्ग सा भासता है. स्त्री अपना पसीना सुखाते हुए बैठ गयी. उसने उचटती नज़र से अपने सहयात्रियों को देखा. सामने लोअर बर्थ पर अधलेटा वह … उसने एक मुस्कान उछाल दी. स्त्री ने जवाब भी उसी सहजता से दिया. फिर आराम से बैठ प्लेटफार्म के बाद अब गुज़रते हुए शहर को देखने लगी है. उसके चेहरे पर अपार तसल्ली है. अचानक उसे प्यास लगी और वह अपने सामान में पानी की बाटल ढूँढने लगी.

ओह! लगता है कार में छूट गयी, उसने बुदबुदाते स्वर में जैसे खुद से कहा .

उसने तत्काल अपनी नई–नकोर बाटल उसके सामने रख दी. ये लीजिये. मेरे पास दो हैं.

ओ थैंक्स. उसने बेझिझक ले ली और सील तोड़ बाटल मुंह से लगा ली. वह उसके सफ़ेद गले से पानी उतरते देख रहा है. यह शायद उसने भी लक्ष्य किया.

रियली थैंक्स सर. उसने ढक्कन लगाकर बाटल घुटनों में फंसा ली.

अटेंडेंट दो बैडरोल उनके सामने रखकर चला गया है. वे खोलकर बिछा लेते हैं. आमने–सामने की चार सीटों में अभी वे दो ही हैं. दो अभी आये नहीं हैं.

मुझे ट्रेन में सफ़र करना अच्छा लगता है. हम बहुत वक्त अपने साथ रह सकते हैं. तन्हा पढ़ सकते हैं, सोच सकते हैं, अपने माजी में भटक सकते हैं बशर्ते अपना लैपटॉप ऑन न किया हो. फ्लाईट में यह आनन्द कहाँ? आधा वक्त एयरपोर्ट की फॉर्मेलिटी. फिर उडान भरी नहीं कि पहुँच गये.

स्त्री ने यूँ ही उससे कहा और सफ़ेद चादर अपने गिर्द लपेटते हुए पैर लम्बे कर लिये. कुछ पलों के लिये उसकी आँखें मुंद गयीं.

वह बड़े ध्यान से उसका तसल्लीबख्श चेहरा देख रहा है जैसे वह बहुत दूर से भागती आयी हो और अब ढह जाना चाहती हो .

आप कहीं जॉब करतीं हैं? वह बात आगे बढ़ाना चाहता है.

जी. एक्सिस बैंक में. बहुत दिनों बाद पांच दिनों की छुट्टी मिली है. दिल्ली जा रही हूँ अपने भाई के पास. वह बेहद खुश है. राहत चेहरे से जिस्म तक फ़ैल गयी है.

अच्छा! बैंक का काम तो बड़ा आराम वाला है. दिन भर ए.सी.में कम्प्यूटर के सामने बैठे रहो टिक–टिक करते ...

आप कहाँ काम करते हैं? उसने मुस्करा कर पूछा.

अख़बार में?

तभी आपको ऐसा लग रहा है. हमें वही अच्छा लगता है जो हमारे पास नहीं होता मिस्टर … उसने प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखा.

बी.के.के. ...

बी.के.के.? वह बेतरह मुस्करा पड़ी.

मे आय नो योर नेम? उसके मुस्कराने की वजह समझे बिना वह आगे बढ़ गया .

याह, एस.पी. ... उसने शरारत से कहा और हंस पड़ी .

एस.पी.? उसने चकराये अंदाज़ में पूछा.

समीक्षा पुरोहित ... कहते हुए उसने बाहर देखा. बाहर के नज़ारे देखने की शौक़ीन समीक्षा को लगा वह व्यर्थ की बातों में उलझ रही है. इससे अच्छा खाये–पिये–पढ़े और सोये. ट्रेन दोपहर एक बजे उसके शहर से चल पड़ी थी और अब लंच टाइम हो रहा है.

वह उठ के बैठी और उसने खाने के पैकेट को अपनी ओर खिसकाया. फिर उसकी ओर देखा.

लंच टाइम हो गया है. फीलिंग हंगरी. आने की आपाधापी में ठीक से ब्रेकफ़ास्ट भी नहीं किया.

ओ श्योर. मैं भी शुरू करता हूँ. देखूं मेरी बीबी ने क्या–क्या दिया है?

दोनों अपने–अपने पैकेट खोलने लगे. समीक्षा ने तो आते–आते एक थाली पैक करवा ली थी. बी.के.के. के पास घर का बना खाना था. एकदम तरतीबवार! छोले–पुड़ी, भरवां करेले, हरी मिर्च के पकोड़े, हरी चटनी, रायता, पुलाव और रसमलाई.

ये लीजिये भरवां करेले. मेरी बीबी खाना बहुत अच्छा बनाती है. सिर्फ खाना. उसने मजाकिया अंदाज़ में कहा. समीक्षा ने भी बेतकल्लुफ़ी से उसके डब्बों में तांक–झांक की और दो करेले उठा लिये.

मैं घर में इतनी सारी चीज़ें नहीं बना पाती. साढ़े नौ बजे बैंक पहुंचना होता है. रात में भी हम या तो बाहर चले जाते हैं या शार्ट कट से काम चला लेते हैं. उसने अपना पैकेट उसके सामने कर दिया.

यहाँ रखिये. मिला–जुला के खाते हैं.

बीच में बने टेबल टॉप पर दोनों ने अपने पैकेट रखे और खाने में मग्न हो गये .

ये जो आपको छोड़ने आये थे, आपके पति हैं? बी.के. ने पूछ लिया.

जी.

आपसे कहना चाहते थे कुछ.

हां. जो मैं सुनते–सुनते थक चुकी हूँ. ये मर्द भी न औरत के सामने खुद को बुद्धिमान दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते. कहेंगे, अजनबी लोगों से लेकर कुछ खाना मत. जैसे मैं बड़ी भुख्खड़ हूँ. किसी से बात मत करना और उस कूपे में पुरुष ज्यादा हुए तो टी.सी से कहकर सीट बदलवा लेना. हम औरतें ही बदनाम हैं ज्यादा बात करने के लिये. आइना देखने से तो पुरुषों को डर लगता है. स्त्री ने उसकी तरफ देखते हुए थोड़े गुस्से से कहा मानों किसी बुजुर्ग से बच्चे की शिकायत कर रही हो.

पजेसिव हो रहे होंगे कि जिस वक्त वो आपको नहीं देख रहे, न जाने कितनी आँखें आपको देख रहीं होंगी.

मैं उनकी प्रापर्टी तो हूँ नहीं.

हां, पर हमारे यहाँ बीबियों का शुमार प्रापर्टी में ही होता है. जितनी ज्यादा सुन्दर और बुद्धिमान, सामने वाला उतना दौलतमंद. वह अब उसे दिलचस्पी से देख रहा है. यूँ सहयात्रियों से दोस्ती करना उसे न सिर्फ अच्छा लगता बल्कि वह इसमें माहिर भी है. पर इस वक्त तो वह ‘बिल्ली के भाग से छींका टूटा’ जैसा महसूस कर रहा है .

व्हाट डू यू वांट टू से? अब स्त्री ने सीधा उसे देखा.

वही जो आप समझ रहीं हैं. आप हैं और इसमें आपके पति का कोई दोष नहीं है. सुन्दर पत्नियों के पति कभी न कभी ‘बेचारे’ बन ही जाते हैं जिन पर बाद में उनकी बीबियाँ तरस खाना भी छोड़ देतीं हैं. हालांकि कोई खास बात नहीं थी पर दोनों हंस पड़े और रहा सहा संकोच भी धुल गया.

आपकी बीबी सचमुच खाना अच्छा बनाती है. मैं तो आपका पूरा खाना खा गयी.

ज़हे–नसीब! अब ये रसमलाई भी नोश फरमाइये.

आप क्या खायेंगे?

ये गुलाब जामुन. उसने अपनी रसमलाई उसके सामने रख दी.

आप खुशनसीब हैं, आपको हर रोज़ इतना अच्छा खाना मिलता है.

अपनी खुशनसीबी अक्सर पता नहीं चलती. मेरे जॉब के समय को लेकर हम दोनों में बहुत झगड़े होते हैं. मैं लंच के बाद चला जाता हूँ और अक्सर सुबह चार–पांच बजे घर पहुँचता हूँ. सुबह बारह बजे तक सोता हूँ. वह हमेशा, जो उसके पास नहीं है उसका सोग मनाती है बजाय इसके कि जो उसके पास है उसे लेकर खुश या कृतज्ञ हो. मैं सारी कमाई लाकर उसके हाथ में रख देता हूँ और जेब खर्च भी उसी से मांगता हूँ फिर भी वह खुश नहीं होती.

ऐसा ही मेरे साथ भी है मिस्टर बी.के. उसे हर वक्त लगता है मैं उसे प्यार नहीं करती. जो लोग प्यार मांगते हैं वे हमेशा दूसरे को बहुत सताते हैं. ये कहीं और नहीं मिलता, अपने आपसे मिलता है. जहाँ हम अपने अहसास बांट ही न पायें. वह चुप हो गयी.

मुझे लगता है वस्तु –विनिमय फिर भी कुछ ईमानदार होता है. आप कुछ खरीदते हो, उसकी कीमत अदा करते हो … कम या ज्यादा … उसे घर ले आते हो. रिश्तों के बाज़ार तो इससे भी खतरनाक होते हैं. आप पत्नी या पति हो. यह क़र्ज़ उम्र भर उतारते रहो. शादियों का व्यापार इसी लेन–देन पर फलता है जिसे प्यार नाम के शब्दों के बैनरों से सजाया जाता है.

समीक्षा ने सिर्फ सिर हिलाया और अपने में डूबी कभी उसे कभी बाहर देखती रही. खाना ख़त्म हुए भी आधा घंटा हो गया. दोनों अपने–अपने साथ लायी किताबों में उलझने का दिखावा कर रहे हैं. समीक्षा ने ज़रा सा उठकर उसकी किताबों पर नज़र डाली … पाम ग्राउट ... रिचर्ड ब्रान्सन ...

आप पोजिटिव थिंकिंग की किताबें ज्यादा पढ़ते हैं? उसने किताबें उलटी –पलटी .

जी हां. सफ़र में शरीर के साथ दिमाग की सफाई करना भी ज़रूरी हो जाता है. हम जिन सच्चाइयों के रूबरू होते हैं दिन भर वे बड़ी कड़वी होतीं हैं.

कभी–कभी मैं इतनी बेचैनी से किताबें ढूंढती हूँ कि लगता है मैं जो कुछ ढूंढ रही हूँ, किताबों की शक्ल में मिल ही जायेगा. पर नहीं, करना खुद को ही पड़ता है. शब्द सिर्फ रास्ता दिखाते हैं. सोचती भी हूँ कुछ लोग अपनी जिंदगी में कितना कुछ कर जाते हैं. एक हम हैं, लकीर के फ़क़ीर. मैं एयर होस्टेस बनना चाहती थी. मेरा सलेक्शन हो गया. दो साल काम भी किया. फिर मेरे पेरेंट्स ने मुझे वापस बुला लिया. कहने लगे, कोई एयर-होस्टेस से शादी नहीं करना चाहता.

ट्रेन के साथ उसका जिस्म भी हिल रहा है. आवाज़ भी. ये शायद उदासी है जो हिलते –हिलते ऊपर आ गयी है.

और आप वापस आ गयीं?

क्या करती? फिर उन्होंने मेरी शादी कर दी. शादी के बाद मैंने बैंक का एग्ज़ाम दिया और अब जॉब कर रही हूँ. देखिये न, कहाँ आसमान में उड़ने का ख्वाब और कहाँ एक ही जगह गोल–गोल घूमना!

हर रिश्ता अपनी कीमत मांगता है, पर जब माँ–बाप मांगते हैं न तो अन्दर ज़ख्म पड़ जाते है. बी.के.का धीमा स्वर उसके कानों से टकराया. फिर एक वह कोई अपनी बात बताने लगा.

वह खिड़की से बाहर देख रही है. जंगलों का अनवरत सिलसिला. पीछे छूटते खेत–पशु–खंभे और बहुत सी चीज़ें. उसे अपनी पहचानी दुनिया से दूर जाना अच्छा लगता है. जब वह छोटी थी बकौल अपनी माँ, सारी–सारी रात ट्रेन की खिड़की से चिपकी बाहर अँधेरे में देखती रहती थी. नींद के झोंकों की मारी.

वह कभी ज़रा सी आँखें खोलकर उसे देख लेती और उसके शब्दों को ध्यानपूर्वक सुनने की कोशिश करती. फिर उसे लगा वह अपनी बर्थ पर सो गयी है वो कोई और है जो जागते हुए उसे सुन रहा है. हालांकि वह किसी शब्द को पकड़ नहीं पाई और हर आवाज़ उससे बाहर रह गयी.

उठिए अब. मैं आपके लिये गर्मागर्म काफ़ी लाया हूँ. इस आवाज़ ने उसकी नींद तोड़ी. उसने चौंक कर उसे देखा और पूछा, यह कौन सा स्टेशन है?

नागपुर. ये लीजिये आपकी काफ़ी. उसके बढे हुए हाथ में काफ़ी का कप देते हुए कहा.

जस्ट कमिंग … न पहुँचूँ तो चेन खींच दीजियेगा.

अरे! रे! कहाँ चले? सुनिये तो! मैं नहीं कुछ करने वाली. वह हडबडा कर उठ बैठी. काफ़ी छलकते–छलकते बची पर वह तो गया. कमाल है! ऐसे भी लोग हैं. उसका सारा सामान यहीं है और मैंने चेन न खींची तो ...

उसने अपनी काफ़ी ख़त्म की और बेचैनी से इंतज़ार करने लगी. साथ की दोनों सीटें अब भी खाली हैं. बगल से किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही है. उसकी माँ उसे चुप कराने की कोशिश कर रही है. और सचमुच ट्रेन चल पड़ी है. हाय! अब क्या? मेरे पास तो उस बी.के.के. का मो.नं. भी नहीं है ... बेवकूफ कहीं का ... चिढ़कर उसके मुंह से निकला और उसने खड़े होकर चेन खींच दी.

ट्रेन स्लो होती हुई रुक गयी. अब कोई आएगा पूछने तो क्या जवाब दूंगी? वह धड़कता दिल लिये द्वार पर जा खड़ी हुयी. अभी ट्रेन ने प्लेटफार्म पार नहीं किया था और वो देखो दो हाथों में दो पैकेट लिये वह भागा चला आ रहा है. उसने हाथ ऊपर उठाकर उसे जल्दी आने का इशारा किया. वह हांफते –हांफते पहुँच ही गया.

यह क्या है? उसने गुस्से से पूछा .

डिनर … कमसम से ...

हे भगवान! आर यू मैड? कमसम प्लेटफार्म नं.-1 पर है.

हां, तभी तो देर हुयी.

अरे, एक वक्त नहीं खाते तो क्या फ़र्क पड़ जाता? मेरे पास इसका फोन नं. है. यहीं डिलेवरी दे देता.

अन्दर चलो, देर हो रही है. उसने उसे झिड़कते हुए कहा.

अन्दर आकर उसने खाने के पैकेट टेबल टॉप पर रख दिये. तभी उन्होंने देखा दो आफ़ीसर से दिखते व्यक्ति ए.सी.कूपे के बाहर खड़े बातें कर रहे हैं फिर अपना काम करके वे चले गये. उन्होंने राहत की सांस ली और ट्रेन चल पड़ी. वह उसे कुछ देर तक देखती रही.

मैंने आपका रात का खाना भी उड़ा दिया न?

खाना तो होता ही उड़ाने के लिये है. वैसे भी मैं वही खाना दोबारा नहीं खा सकता सो फ्रेश ले आया.

वह कहीं न कहीं जानती थी यह खाना उसके लिये ही आया है.

मैं इसका पेमेंट आपको कर दूंगी.

ज़रूर कर दीजियेगा. वैसे अभी आपके पास खाने को क्या है? उसने उत्सुकता और मज़ाक में उसके कैरी बैग को टटोला.

निकाल लीजिये … चिप्स और बिस्किट्स हैं ...

उसने एक पैकेट समीक्षा के सामने किया, उसके ‘नो थैंक्स.’ सुनते ही खुद खाने लगा.

अगर मैं चेन नहीं खींचती तो … उसने शरारत से कहा.

यह तो आप अपने आप से पूछिये. वह मुस्करा दिया .

वह बहुत देर तक उसका चेहरा देखती रही. वह कोई चालीस के आसपास का गेहूंआ, लम्बा–छरहरा सा व्यक्ति है, जींस और सफ़ेद टी शर्ट में थोड़ा मासूम, थोडा भोला सा दिखता.

जिंदगी के इस सफ़र में कितने लोग मिल जाते हैं न बी.के. जिन्हें हम चाहते हुए भी भुला नहीं पाते. उसने कुछ भावुक होकर उससे कहा फिर जैसे वह अपनी इस भावुकता के प्रति सजग हो उठी, बात संभालते हुए बोली.

मैं अपने बैंक में लास्ट मंथ हुयी एक घटना का बयान करना चाहती हूँ. मे आय? उसने ज़रा सा रुककर पूछा.

ओह प्लीज़. वह जमकर बैठ गया. उसके दोनों कान उस तरफ लग गये.

लगभग साल भर पहले हमारे बैंक में एक बेहद व्यस्त दिन के दौरान एक बुदधू से आदमी ने प्रवेश किया. बोला, "मुझे मैनेजर से मिलना है."

"जी, क्या काम है? मुझे बताइये." मैंने नम्रता से उसे अपने सामने बैठने का संकेत किया.

"नहीं, मुझे मैनेजर से मिलना है." उसने निहायत ही अख्खड़ ढंग से जिद्दी आवाज़ में कहा.

मैंने अपने कुलीग इक़बाल को इशारा किया कि वह उसे मैनेजर से मिलवाने ले जाये. सोमवार का दिन था दो छुट्टियों के बाद. किसी को दम मारने की फुरसत नहीं थी. फिर भी उसे मैनेजर के केबिन में ले जाया गया. मैनेजर तो उसे देखते ही समझ गया व्यर्थ की सिर खपाई है. फिर भी शालीनता से उसे बैठाया और ज़रुरत पूछी.

"मुझे यहाँ एकाउंट खुलवाना है,"उसने तुरन्त कहा.

"ये आपको सारा प्रोसेस समझा देंगे. आपकी फोटो लगेगी और एड्रेस प्रूफ. इक़बाल इन्हें बाहर ले जाओ और सब समझा दो."

इक़बाल उन्हें बाहर ले आया. लगा समझाने.

"मैं पैसे लेकर आऊंगा तो फिर क्या होगा?"

"आपका सारा पैसा बैंक में जमा हो जायेगा. आपको एक पासबुक दी जाएगी जिसमें आपके सारे पैसे मेंशन होंगे. जब आप कुछ निकालेंगे तो वह भी दर्ज़ हो जायेगा. आपने इससे पहले कभी बैंक में खाता नहीं खोला?"इक़बाल ने मुस्कराते हुए पूछा.

"नहीं. मुझे कभी समझ में नहीं आता मैं अपना पैसा कहाँ रखूं?"

"इसमें आपको थोडा सा ब्याज भी मिलेगा."

"ब्याज मुझे नहीं चाहिये. मैं अपने पैसे की सुरक्षा चाहता हूँ."

"इसकी गारंटी बैंक लेती है. मैं लेता हूँ." इक़बाल ने उसे प्यार से देर तक समझाया.

दूसरे दिन वह एक बोरे में सारी रकम लेकर आया. छोटे–बड़े नोट–चिल्हर … सब. सारा बैंक हैरान रह गया. सबकी आँखें फटी की फटी रह गयीं. उसने आते ही इक़बाल को तलब किया. इक़बाल आया. उसने चार लोगों को नोट गिनने के काम में लगा दिया. जब इक़बाल ने दीनानाथ नाम के उस आदमी को एक्चुअल अमाउंट बताया तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी. जाहिर है वह गिन के आया था.

"सही कहते हैं. इसे जमा कर दीजिये."

इक़बाल ने फार्म भरा. उसके पैसे जमा किये, पासबुक बनवाई, उसे उसका फिगर दिखाया और चाय पिलाकर विदा किया.

आठवें दिन फिर एक झोले में कुछ हज़ार रूपये लेकर वह आया. किसी विंडो पर नहीं गया, आते ही बोला, "मुझे इक़बाल से मिलना है."

इक़बाल जहाँ था वहीँ से भागता आया. बिठाया, फार्म भरा, पैसे जमा किये. पासबुक में एंट्री की और उसे दिखाकर विदा किया. इस तरह वह साल भर आता रहा. कभी निकालने, कभी रखने. निकालने कम, रखने ज्यादा. हर बार उसने सिर्फ इक़बाल से अपना काम करवाया .

वह बड़े ध्यान से उसे सुनता जा रहा है. कुछ रोमांचक सुनने की उम्मीद में.

एक बार वह आया तो इक़बाल नहीं था. उसे तीन महीने के लिये किसी दूसरी ब्रांच में भेज दिया गया था. आते ही उसने इक़बाल को तलब किया. मैंने उससे कहा इक़बाल नहीं है पर उसका सारा काम मैं कर देती हूँ. वह जैसे सन्नाटे में कुछ मिनट बैठा रहा, फिर मुझसे बोला, "मुझे अपना एकाउंट बंद करना है."

"क्यों?" मैंने हैरत से पूछा.

"इक़बाल नहीं है. मुझे अपना एकाउंट बंद करना है."

मैंने तुरन्त मैनेजर को फोन किया. वह भागता हुआ आया. सबने उसे कोई घंटे भर समझाया पर उसकी एक ही रट थी, इक़बाल नहीं है. हमने कहा, वह आ जायेगा. उसने कहा, हां, तब देखेंगे. मेरे सारे रूपये दे दीजिये. मुझे अभी चाहिए.

फिर उसने अपना एकाउंट बंद करवा दिया?

हां, वह अपने सारे रूपये उसी वक्त लेकर चला गया. उसके लिये एक व्यक्ति पर विश्वास पूरे सिस्टम पर विश्वास से बड़ा था.

वह महसूस करता है उसके आवाज़ का उल्लास और गति. एक लयात्मकता. धीरे–धीरे कहना और बहना. वह उसके साथ–साथ चलना चाहता है. दो कदम आगे चला जाता है तो फिर रुक कर इंतजार करता है. दो कदम पीछे रह जाता है तो उसके पीछे–पीछे भागने लगता है. कुछ लम्हे अपनी उद्दाम जिजीविषा में इस तरह चमकने लगते हैं कि उनके छोटे या बड़े होने का ख्याल तक नहीं आता.

वह चुप हो गयी है. तुम पूछ सकते हो यह सब मैं तुम्हें क्यों सुना रही हूँ. सिर्फ वक्त काटी के लिये? ये भी एक सच तो है ही. आखिर इस प्लेनेट पर वक्त काटी के लिये हम क्या–क्या नहीं करते? ज़रूरी नहीं है हर सवाल का उत्तर देना. उन्हें अपने भीतर देर तक गूंजने दो और फिर उनके विलुप्त हो जाने का इंतज़ार करो.

बच्चा अभी भी रो रहा है. वह अपने अन्दर बेचैनी महसूस करने लगी. उठी, कर्टेन उठाकर बगल वाली सीट में झाँका.

एक्सक्यूज़ मी, मुझे लग रहा है बच्चे को पेट में दर्द है. यह अक्सर होता है.

बच्चे की परेशान माँ ने क्षण भर उसे देखा और अनिभिज्ञता से गर्दन हिलाई. परेशानी में उसका चेहरा उतर गया था. चलती ट्रेन में रात को क्या किया जाये? समीक्षा ने अपनी बाहें आगे फैलायीं तो उसने सहजता से बच्चा दे दिया. लगभग छह माह का गोरा–गदबदा बच्चा पैर ऊपर उठा रो–रोकर लाल पड़ गया है. उसने बच्चे का पेट दबाया तो उसका रुदन तीव्र हो गया.

एक मिनट इसे संभालिये, कहकर उसने बच्चे को माँ की गोद में दिया और वापस आ अपने सामान में से कुछ ढूँढने लगी.

क्या चाहिए? बी.के.के. ने पूछा .

मिल गया. उसने पुदीन हरा की छोटी सी बोतल उसे दिखायी और वापस बच्चे की माँ के पास गयी.

एक बूंद अपने ढूध में मिलाकर इसे पिला दीजिये.

बच्चे की माँ ने अनुग्रहीत होकर उसे देखा. बच्चे को सौंपा उसे और अपने सामान में से चम्मच निकालने लगी. तब तक एक तरफ बैठकर समीक्षा ने बच्चे को अपने घुटनों पर उल्टा लिटाया और उसकी पीठ पर हल्की थपकियाँ देने लगी. फिर सीधा किया और टांगों की कुछ एक्सरसाइज़ करवाई. माँ ने उसे चम्मच में दूध दिया तो उसने वह भी पिला दिया. फिर बच्चे को अपने कंधे से चिपका वह प्यार से उसकी पीठ थपथपाने लगी. लगभग दस मिनट में बच्चे का रुदन कम होते–होते बंद हो गया और वह निढाल उसके कंधे से लगा सो गया. उसने बच्चे को माँ की गोद में दे दिया.

अब इसे सुला दीजिये. ए.सी.बंद कर दीजिये. बच्चे के पैर ठंडे हो रहे हैं.

उसके पति ने लपक कर ऊपर बने ए.सी.होल को बंद कर दिया. ये चार–छह लोग एक ही फैमिली के मालुम होते हैं. उन्होंने उसका आभार व्यक्त किया. बच्चा उन्हें सौंप कर वह वापस अपनी सीट पर आ गयी.

आपको बड़ा एक्सपीरियंस है बच्चों का? बी.के.के. ने मज़ाक किया.

मेरे नहीं हैं इसलिए बच्चों से सम्बंधित हर बात मुझे पता है.

बी.के.का मन किया वजह पूछे पर जाने क्यों वह झिझक गया. इस खुशगवार सफ़र में वह नहीं चाहता कोई उदास करने वाली बात हो. वह किस्मत से मिले इस प्यारे साथ को जी लेना चाहता है. कौन कमबख्त जानता है अगले कदम पर तुम्हें क्या मिलने वाला है?

अब डिनर किया जाये. नौ बज रहे हैं. बी.के. ने उसे याद दिलाया .

जी ज़रूर. दुपहर को मैं आपका सारा खाना खा गयी थी. आपकी बीबी ने रात के लिये दिया होगा.

मुझे पता होता आप मिलने वाली हैं तो मैं न जाने क्या–क्या ले आता? बी.के. की आवाज़ में न जाने क्या था जिसने उसके दिल को छू लिया पर उसने ज़ाहिर नहीं होने दिया. उसने दोनों पैकेट टेबल टॉप पर रख दिए.

घर में हम दोनों ही हैं. एक साथ डिनर करते हैं. वे टी.वी.में इस कदर डूबे रहते हैं कि मुझे लगता ही नहीं मैं उनके साथ हूँ. कुछ लोग इतनी दूर खड़े रहते हैं कि बगल में बैठे भी रहें तो लगता नहीं वे आपको सुन रहे हैं. और कुछ! कितनी भी दूर रहें उनका अहसास हमेशा आपके निकट रहता है. समीक्षा ने खाते हुए कहा.

हां, हकीकतन आपके दस फ्रेंड भी न होंगे. फेस बुक पर दो हज़ार हैं. बी.के. ने मुस्करा कर कहा.

अभी आपने मुझे अपने बैंक में घटी एक घटना बताई. खाना ख़त्म करने के बाद मैं अपने दोस्त के साथ घटी एक मज़ेदार घटना आपको बताना चाहता हूँ. अगर आप सुनना चाहें ...

ज़रूर! हमको डिस्टर्ब करने वाला कोई है भी नहीं. उसने मुस्कराते हुए कहा.

तो चलिए, शुरू करता हूँ. अख़बार में मेरा एक कुलीग है, फ़िरोज़. उसने बताया कि गांव में रह रही उसकी ताई एक बार ऐसी बीमार पड़ी कि ठीक होने का नाम न ले और जैसा कि उनमें होता है सारे नाते–रिश्तेदार कहने लगे इस पर किसी काली प्रेतात्मा का साया है सो झाड़–फूंक करवाना ज़रूरी है. पता लगाया गया कि एक हकीम साहब बीस कोस दूर रहते हैं जो कहीं आते–जाते नहीं पर अगर उनसे बिनती की जाये तो हो सकता है वे मान जायें.

समीक्षा बहुत ध्यान से उसे सुन रही है.

फ़िरोज़ के अब्बा अपने बड़े भाई–भाभी की खातिर उस हकीम के गांव गये और किसी तरह उन्हें घर आने को तैयार किया. तय हुआ कि रविवार को दुपहर बारह बजे तक वे आ ही जायेंगे. ठीक वक्त पर वे आये, उनका स्वागत किया गया और जैसा कि होता है मुस्लिमों में पर्दा प्रथा थी. बड़े बैठक खाने में लगे भारी-भारी पर्दों के दूसरी ओर बीमार महिला को लाया गया. हकीम ने उनके आने की आवाज़ सुनी और कहा, "मैं सिर्फ नब्ज़ देखूंगा."

परदे के उस पार से सरसराहट सुनाई दी. कुछ चूड़ियों की खनक. फिर एक गोरा–चिट्टा, दुबला–पतला हाथ हकीम के सामने प्रगट हुआ. हकीम को घेर कर खड़े हवेली के पुरुष.

हकीम ने हथेली की नब्ज़ पर हाथ रखा और आँखें बंद कर लीं. एक मिनट बाद उन्होंने हाथ छोड़ दिया. हाथ अन्दर चला गया. हकीम ने अपनी दाढ़ी खुजलाई और फ़िरोज़ के अब्बा की ओर देखते हुए कहा, "मियां आप तो कह रहे थे ये आपकी बड़ी भाभी हैं. पर ये लड़की तो अभी कुंआरी है."

एक चीख परदे के पीछे से सुनाई दी और एक गहरा सन्नाटा सबके चेहरों पर फ़ैल गया.

दोनों बहुत देर तक एक–दूसरे को देखते रहे.

जिंदगी बहुत अजीब है न? सारे हादसे यहीं होते हैं. बी.के. ने खोयी–खोयी आवाज़ में कहा. जाने उससे या खुद से.

पर सारे हादसे औरतों के साथ ही क्यों होते हैं?

हादसे किसी के साथ भी हों, झेलती उसे औरत ही है. अपने मन और आत्मा पर. वहीं पड़ते हैं निशान.

जो भी था उसकी आवाज़ में समीक्षा ने उसे अपने बहुत भीतर महसूसा और वह डर गयी. एकाएक वह अपने भीतर के किवाड़ बंद करने को व्यस्त हो उठी.

अब सोने की तैयारी की जाये, साढ़े दस बज रहे हैं, उसने जल्दी से कहा.

आपको इतनी जल्दी सोने की आदत है?

हां, हम न्यूज़ पेपर में काम नहीं करते इसलिये. उसने हंसकर कहा. बिस्तर लगाया, सिरहाने पानी की बाटल रखी और हाथ में एक किताब लेकर लेट गयी. पढ़ने में मन नहीं लगा. उसने हाथ बढ़ा लाइट बंद की और चादर मुंह तक खींच ली. अन्दर बहुत कुछ चल रहा था, जिसे सहने के लिये उसे तन्हाई की ज़रुरत थी.

रात न जाने क्या वक्त होगा जब किन्ही दो लोगों की आपसी बातचीत से उसकी नींद टूटी. बातों के टुकड़ों के साथ शराब की तेज बदबू उसके नथुनों से टकराई. वह उठकर बैठ गयी. दोनों खाली सीटों पर दो आदमी काबिज हो चुके थे. जाहिर था पी–खा के आये हैं. सामान सीट के नीचे धकेलते हुए अपना चेहरा जानबूझ कर उसके नज़दीक लाने की कोशिश की. वह घबरा कर पीछे सट गयी. उनके चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी. उन्होंने आँखों के इशारे से एक–दूसरे से बात की और उसे एक भद्दा इशारा किया. ट्रेन चल रही है. बेसाख्ता समीक्षा के मुंह से निकला, बी.के.

वह भी शायद गहरी नींद में था. सुना नहीं. उसने हाथ बढ़ा कर उसे हिला दिया.

बी.के.

क्या हुआ? वह चौंक कर उठ बैठा. घड़ी देखी. एक बज रहा है.

कुछ नहीं, मुझे नींद नहीं आ रही. उसने आँख के इशारे से संकेत किया.

वह उठ कर बैठ गया. उसने सरक कर उसे अपनी सीट पर जगह दे दी तो वह उठकर उसकी बगल में आ गया और वे दोनों इधर–उधर की बातें करने की कोशिश करने लगे. नए आये सहयात्रियों ने एक–दूसरे को देखा और ऊपर अपनी बर्थ पर चले गये. बहुत देर बाद उनके खर्राटों की आवाज़ गूंजी.

खिड़की के बाहर भागती रात है. कुछ भी ठीक से दिखाई देता नहीं. शायद चाँद ही हो या कुछ तारे भी हों. कुछ जुगनू. जब तुम एक दुनिया अपने गिर्द चादर की तरह लपेट लेते हो तो दूसरी दुनियाएं तुमसे बाहर ठिठकी रह जातीं हैं.

थैंक्स बी.के. अब तुम जाकर सो जाओ. समीक्षा ने नर्म आवाज़ में कहा.

मैं जागता रहूँगा. तुम सो जाओ प्लीज़. वह उठ कर अपनी सीट पर चला गया.

कितने शब्द उसके गले तक आये जो वह उससे कहना चाहती थी पर उसने उनका गला घोंट दिया. अपनी चादर खींच कर लाईट बंद करते वक्त बी.के. नहीं देख पाया. आंसू समीक्षा के कनपटियों तक बह आये थे. फिर वह करवट बदल कर सो गयी. रात भर यह अहसास कि सिरहाने कोई बैठा है. एक स्वप्न हीन नींद ...

उठिये मैडम, सुबह हो गयी. चाय दो बार ठंडी हो गयी. सुबह बी.के. की आवाज़ से उसकी नींद खुली. उसने करवट बदलते हुए उसी की ओर देखते हुए आँखें खोलीं.

गुड मॉर्निंग बी.के.. सोये नहीं?

आपने पहरे पर जो बिठा रखा था.

उसकी नज़र ऊपर वाली बर्थ पर चली गयी. वे कहीं उतर गये थे.

थैंक्स बी.के., ट्रेन राइट टाइम चल रही है? उसने अपने बाल समेटते हुए कहा.

हां, साढ़े नौ बजे निजामुद्दीन.

पर आपको तो आगरा उतरना था. याद आते ही वह चौंक पड़ी.

जी हां, वह हंस पड़ा. बस आपके साथ इतनी दूर चला आया. अब वापस जाना पड़ेगा.

वह अवाक् सी कुछ देर उसका चेहरा देखती रही फिर आँखे परे कर लीं. क्या कहा जा सकता है. कुछ नहीं.

बी.के. फिर भी उसने कुछ कहना चाहा .

नीडलेस टू से एनीथिंग, आपको जाना कहाँ है? उसने जल्दी में कहा.

कोई आता है और बाहर चल रही बदहवास हवाओं के लिये तुम्हारा दरवाज़ा खोल देता है .

मयूर विहार.

स्टेशन से दूर है, मैं छोड़ दूँ?

आप छोड़ेंगे? फिर आप?

फिर जो बस मिलेगी पकड़कर आगरा चला जाऊंगा.

उम्र के इस मोड़ तक आते–आते वह जान चुका है, जो जैसा है उसे वैसा ही रहने दो. जब भी तुम कुदरती प्रवाह को बाधित करने की कोशिश करते हो, वे अपनी सहजता खो देते हैं. पेड़ों के बीच पेड़ की तरह उगो, हवा में हवा की तरह बहो. अहसासों में अहसास की तरह रहो कि जब तक उस दूसरे को कुछ पता चले तुम एक अपनी जिंदगी जी चुके होगे.

ट्रेन धीरे–धीरे प्लेटफार्म पर रुकने लगी है. ट्रेन के रुकते ही बी.के. कूद कर उतरा. समीक्षा ने ऊपर से उसे सामान दिया और खुद भी उतर गयी. आगे का भार बी.के. के कन्धों पर था.

टैक्सी जब मयूर विहार के सामने रुकी, बी.के. ने उसका सामान उतारा और उसके सामने खड़ा हो गया.

अब मुझे जाने की इज़ाज़त दें. उसने अति नाटकीयता में अपने हाथ जोड़े.

अब तुम्हें भेजना मेरी भी मज़बूरी है, वरना ... उसने उसके बंधे हाथों पर एक चपत मारी. मुझे लगता था जैसी मैं हूँ, मुझे कोई मिल नहीं सकता पर दुनिया में बहुत किस्म के लोग हैं, जैसा हम सोचते हैं बिल्कुल वैसे. पर हमारा दुर्भाग्य हम उन्हें ढूढ़ नहीं पाते या ढूँढने की इच्छा नहीं रखते.

थैंक्स फॉर एव्रीथिंग बी.के. तुम मुझे हमेशा याद रहोगे. उसकी आवाज़ भीग गयी.

आप फ्राइडे को वापस जा रहीं हैं न राजधानी से. आज मंडे है.

वह कई पल उसका चेहरा देखती रही.

इसे पक्का मत समझना बी.के. मुझे तत्काल में टिकट मिल गयी तो मैं पहले भी जा सकती हूँ.

ओ.के. मैंने आपको अपना नम्बर दे दिया है. चाहें तो फोन कर दीजियेगा. मेरा भी काम ख़त्म हो गया तो मैं आपके साथ ही निकल पडूंगा.

उसने कुछ नहीं कहा. बस उसका चेहरा देखती रही.

घबराइये नहीं, मैं आपको बिल्कुल तंग नहीं करूँगा.

तुम्हें पता है बी.के.के. का मतलब क्या होता है? अचानक उसने शरारत से कहा .

क्या? वह असमंजस से भर उठा.

बेवकूफ कहीं का. वह ज़ोर से हंस पड़ी.

बी.के.ने उसे मारने के लिये हाथ उठाया. उसने उसका हाथ अपनी हथेली पर रोका और दोनों की हंसी मयूर विहार की छतों पर पसरे मौन को झिंझोड़ते अंतरिक्ष में फैलती चली गयी.

 

रायपुर, छत्तीसगढ़ की श्रीमति जया जादवानी को जीवन के रहस्यों और दुर्लभ पुस्तकों के अध्ययन, यायावरी, और दर्शन और मनोविज्ञान में विशेष रूचि है. हिंदी और मनोविज्ञान में इन्होंने ऐम.ए. किया है. इनकी 3 कविता संग्रह, अनेकों कहानी संग्रह, यात्रा वृतांत, 3 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. अनेक रचनाएँ अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी, उड़िया, सिन्धी, मराठी, बंगाली भाषाओँ में अनुवाद हो चुकी हैं, स्कूल के पाठ्यक्रम का भाग हैं और अन्दर के पानियों में कोई सपना कांपता है पर इंडियन क्लासिकल के अंतर्गत एक टेलीफिल्म बन चुकी है. इनकी कहानियों को कई बार सम्मानित किया गया है. इन्हे मुक्तिबोध सम्मान भी प्राप्त हुआ है.

सम्पर्क के लिये ई-मेल : jaya.jadwani@yahoo.com

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