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  • सुशील यादव

भाईचारे की तलाश

एक दिन मैंने सोचा आज कुछ काम नहीं है ,चलो भाई-चारा तलाशते हैं|अक्सर यही होता है जब आदमी बहुत फुरसत में हो तो कुछ परमार्थ की तरफ भटकता है|

परमार्थ यानी परलोक सुधरवाने का जिसे आसान रास्ता, शास्त्रो में कहा गया है|

मैंने अपनी तलाश के दौरान पाया कि शहर में दोनों चीज का एक साथ मिलना मुश्किल ही नहीं असंभव भी है |

मुझे जगह-जगह भाई मिले ,कदम-कदम पर भाई मिले|तरह-तरह के भाई मिले| कुछ दंगाई भाई तो कुछ करिश्माई भाई | कुछ दबंग और कुछ बुध्दि अपंग |कुछ दिलेर तो कुछ केवल मेहदी ... यानी मेहदी लगाए हुए हसन भाई| मैंने एक भाई से पूछा ऐ भाई ... यहाँ चारा किधर को मिलेगा ....? उसने पहले घूरा ... अंदाजा लगाया कि मैं किसी खुफिया ब्रांच का मैनेजर तो नहीं हूँ |

लालुई अंदाज में पहले मुह में जमा पीक थूकने की गुंजाइश देखी .. फिर बोले मिया शहर में चारा ढूढने निकले हो ... हद है ....| उसे मेरी बेवकूफियों की हद पर सुखद आश्चर्य हो रहा था |जैसे एक्जाम में सिलेबस से बाहर की चीज परोस दी गई हो ....| वे प्रश्न को अन्य भाइयों के बीच उछाल कर गब्बराना अंदाज में ठिठोली के नगाड़े पीटने लगे .... देखो शहर में चारा ढूढ रहा बेचारा ?

जब मैं अपनी तलाश और मकसद नत्थू को बता कर निकाला था तो उसने पहले ही आगाह कर दिया था ,देखो आजकल शहर में भाई और चारा एक साथ कभी मिल नहीं सकते |यानी भाईचारा का मिलना जरा असंभव है |हाँ ये अलग बात है ,कुछ मीडिया वाले,और लोकल दो प्रतिद्वंदी समाज के नेतागण आपस में तय कर लेते हैं कि उनके बड़े त्यौहार के निपटने तक माहौल में ज़रा नरमी बनाएं रखेंगे |इसे ही भाईचारा के नाम का ढिंढोरा पीट लिया जाता है |

ग्यानी माफिक नत्थू ने दस पेज का लेक्चर दिया था |बोर होते- होते सुना|जिसकी कुछ -कुछ बातें अब ध्यान में आ रही हैं| उसने कहा था ,शहर आजकल नौसिखियों का नहीं रह गया है | स्मार्ट सिटी बनने बनाने के फेर में बहुत कुछ बदल रहा है | लोग कई किसम के सेल्फी निकाल रहे हैं | वे मतलब की चीज अपने सेल्फ में ,आपसे कब उगलवा लें कह नहीं सकते | उनको अपने स्वार्थ की लाइन में किसी दूसरे का बरबस आ टपकना मानो जोरों से अखरता है |

यहां भाई-भाई का दुश्मन है | एक भाई वसूली करता है दूसरा उसे मन-मसोस कर कमाई देता है | यहाँ फिल्मो जैसा व्यवहार नहीं होता कि अकेला दस को निपटा दे | और तुम भी सुन लो तुम कोई तीसमारखाँ नहीं हो ,ये गाँठ बाँध के रखना |

फिजूल भाइयों से, यहाँ की भाषा में पंगा लेने की जुर्रत मत करना | मिनटों में ठीक कर दिए जाओगे | नत्थू सोलहो आने सच कहता हो मगर मेरा भी तर्क है कि इनमे सुधार की कहीं तो गुजाइश होगी ....?ये आदमी के सामने न सही किसी तन्त्र के आगे घुटने जरुर टेकेंगे | जरूरत है तो केवल पहला पत्थर उठाने की

|

मैं अपने-आप में उलझा शहर के आखिरी कोने तक आ पहुचा |यहां से अधपके गाँव की सीमाएं आरंभ होती थी |ये न पूरे गाँव में न शहर में गिने जा सकते हैं , क्योकि शौच विसर्जन के दृश्य मौजूद थे |

बहरहाल मेरा मकसद था चारे के बारे में जानकारी जुटाना | चारा तो गाँव लगते ही खेत की मेड़ों पर मौजूद दिखे |फिर भी ये आश्वस्त करने के लिए कि टर्मिनोलाजी में कोई बदला तो नहीं हुआ , एक पास से गुजरते किसान से पूछा ... भाई जी ,चारा यहॉं सफीसियेन्ट हो जाता है ....? मेरे सफिसियेन्ट को वो समझ नहीं पाया ....| मैने कहा चारा काफी होता है ...? वे भौ चढा के देखने लगे .....? मुझे लगा कि मुझमे शहरी बुद्दूपन को उसने तलाशना आरंभ कर दिया है |गाँव वालों की ये आदत मार्क करने लायक है ,वे शहरी को देखते ही बकायदा उसमे देहातीपन के प्रतिशत को आंकना शुरू कर देते हैं |

टूटी -फूटी हिदी में कहने लगे ,,,, ई का देखत बा ....? ससुरा जम्मो चारा -चारा होइ गवा है | पानी बरसे तोइ न फसल बाढिब ....|बिना पानी के का नहाई का निचोई ...... किसान कू मरे के सिवा चारा नहीं .....| मुझे उसकी क्रुद्ध दृष्टि से चुपचाप नजर फेर लेने में भलाई दिखी | इससे पहले की उसका अगला वार हो , मुझे कर्ज वसूली या माफी वाला अफसर समझे मैं दूसरी बातों की तरफ उसे भटकाने की कोशिश में लग गया |आजकल आपकी सरकार कैसी चल रही है ....?

अभी मुझे नत्थू की अगली नसीहत जो ग्रमीण इलाको को लेकर थी,जिसे फिर भूल गया था | याद आया | उसने कहा था इधर पास के ग्रमीण इलाकों में अकाल की स्तिथि है | किसी से हाल- चाल,खैरियत में ये मत पूछ लेना फसल अब की बार कैसी है ....? वे कूट देंगे ...| मुझे तत्काल इसका अंदाजा हो गया ....| किसान का चेहरा विद्रूप आकार और भंगिमा ग्रहण करे इससे पहले मैंने जमीन से मिटटी उठाई ,बुदबुदाना चालु किया ,कुछ तुरंत के बनाये तिलस्मी मन्त्र पढ़े, हवा में मिटी को उड़ाने लगा | चमत्कार तुरन्त दिखाई देने लगा ,बुजुर्ग किसान आश्वस्त होने लगा | अगली फसल की उसे

आस बंधने लगी |

इससे पहले और ग्रमीण जमा हों ,मैंने किनारा करना बेहतर समझा |

गांव के ख़त्म होते तक हर पेड़ पर मुझे किसान लटका हुआ दिख रहा था |

सुशील यादव

न्यू आदर्श नगर Zone 1 Street 3 ,दुर्ग (छ.ग.)

09408807420

susyadav7@gmail.com

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