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  • हरि जोशी

जासूस हमारे प्राणप्रिय अतिथि

यहाँ का व्यक्ति विदेशी से पूछता है “आप यहाँ आकर क्या करते हैं ?”

“मैं शोध कर रहा हूँ |कई जानकारियां एकत्र करता हूँ |ऐसी ऐसी गोपनीय सूचनाएँ मुझे मिल जाती हैं जिनके बारे में स्थानीय नागरिक नहीं जानते ? ”

“अच्छा तभी आप लैपटॉप , कुछ डायरियां आदि लिए हुए हैं |किन्तु आप किसके लिए कर रहे है ?”

“जिस तरह आपको अपने परिवार और देश से प्रेम है , मुझे भी है |मैं भी अपने परिवार और देश के लिए यह सब कर रहा हूँ |”

“कितनी अच्छी बात है फिर तो आपको उच्च वर्गीय लोगों से मिलने के अवसर मिलते रहते होंगे ?विशेषज्ञ लोगों के बीच ही उठना बैठना होता होगा ? ”

“ सही कहा आपने और उनमें से अधिकांश हमारे समर्थक ही होते हैं |जासूस एक ही सिद्धांत पर चलता है ,चरैवेति चरैवेति, (चलते रहो चलते रहो नहीं ,और जैसा अवसर मिले चरते रहो ,चरते रहो ) जासूस कभी मायूस नहीं होता |गए दिनों अनेक सरकारी गुप्त योजनाओं की ,परमाणु संयंत्रों की,विस्तृत जानकारी लेने हम भारत भू पर ही रहे थे कि हमारे स्वजातीयों द्वारा बीच में ही हमें उपलब्ध करा दी गई |भारत के कुछ विशेषज्ञ कितने परदुखकातर हैं ?स्वयं भले ही कष्ट उठा लेंगे पर नक़्शे गोपनीय नस्तियां , सूचनाएँ , देकर ही रहते हैं ? किसीका भी का कष्ट उनसे देखा नहीं जाता |हमें अपनी जात तो बताना पड़ता है पर ,हम उनकी ओर एक कदम बढ़ाते हैं ,वे हमारी ओर चार कदम बढ़ा देते हैं |लालची भी अधिक नहीं ,सस्ते में ही हमारे काम कर देते हैं |हमारे देश से भी अधिक सुख हमें यहाँ मिलता है |यहाँ आतिथ्य और ऐश्वर्य मिलता है जबकि अपने देश से धन |”

इसे जासूसी का गोल्डन पीरियड कहें तो भी बात में उतना वज़न नहीं, जितना उसे स्वर्ण काल बतलाने में है |उन्हें वैश्विक कॉल मिला हुआ है ,जिसपर उन्हें अक्षरशः अमल करने है |सोना ही उन्हें अपनी ओर बुला रहा है ,रेकी करो, गुप्त जानकारियां एकत्र करो मैं तुम्हारा होकर रहूँगा |

हिंदुस्तान सर्व धर्म समभाव में विश्वास करता है, और जासूसी भी एक धर्म है जिसको मानने वालों का भी सम्मान करता है |किसी भी तरह का धर्म निबाहते हों लेकिन धर्म निबाहने वालों को सर आँखों पर बैठाता है |सरकारी सेवक हो या कोई भी सड़क चलता ऐश्वर्याकांक्षी, देश को गड्ढे में धकेलने वाली कोई खबर चीन या पाकिस्तान को देने में अपने स्वर्णिम भविष्य की आश्वस्ति पा जाता है |चीन से, बंगला देश से या पाकिस्तान से कोई भी उठता है और बेखटके अपना धर्म निबाहने भारत चला आता है | उसे मालूम है यहाँ की प्रजा बड़ी सहिष्णु है ,इतनी सहिष्णु कि कई लोग उसके सहिष्णु होने को भी असहिष्णु बता देते हैं, फिर भी वह मुस्कुराती रहती है | किसीको कुछ नहीं कहती |पता नहीं ,जासूसी धर्म में दीक्षित विदेशियों का उनके देश में होता है या नहीं भारत में तो बड़ा सम्मान होता है |घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध ,वाली कहावत के अनुसार ,इस देश में आते ही उनको पूजा जाने लगता है |अतिथि सत्कार हेतु कई लोग एक पाँव पर खड़े हुए हैं |पलक पांवड़े बिछाये रहते हैं |

अतिथि देवो भव में हमारा इतना विश्वास है अनेक देशों से गुप्तचर आते ही रहते हैं|बल्कि कई अतिथि देवो भव का नाटक करके पैसे कमाते रहे किन्तु देश छोड़कर विदेश चले जाने की धमकी भी देते रहे |वे स्वयं अतिथि की तरह बने हुए हैं |यहीं की जासूसी और यहीं की सासूजी |

जिनसे हमारे मधुर सम्बन्ध भी नहीं हैं ,वहां के गुप्तचरों को भी हम बहुत आदर सत्कार देते हैं | जासूसों को संरक्षण देने के मामले में भारत की उदारता शीर्ष पर है |पाकिस्तान या चीन से जो ऐसे अतिथि अपने यहाँ आते हैं उन्हें इतनी अनुकूलता मिलती है कि वे यहाँ से जाने का नाम ही नहीं लेते |बिना पेट का पानी हिलाये, सारी जानकारियां प्राप्त कर लेते हैं |कम सुविधाओं में बड़े बड़े काम |एक कंप्यूटर दे दो ,और एक छोटा टेबल ,फिर उन्हें कुछ नहीं चाहिए |हाँ वाइफाइ होना चाहिए | एक टेबिलकुर्सी से ही सारा काम निष्पादित कर देते हैं |

गत वर्ष जासूसों के लिए बुरा वर्ष था |लगभग हर सप्ताह खबर आती थी कि हैदराबाद से , भोपाल से पाकिस्तानी जासूस पकड़े जा रहे हैं |पिछले दिनों सीरिया से भागे हुए आतंकवादी यूरोप के प्रत्येक देश में घुसे |कुछ जान बचाने के बहाने घुसे, कुछ समय बाद दूसरों की जान लेने में लिप्त पाये गये |जासूसी अब एक क्रीडा हो गई है |इतनी लोकप्रिय कि खिलाड़ी किसी भी दिशा से प्रवेश पा जाते हैं |पहाड़ हैं , समुद्र है ,समतल ज़मीन है | नेपाल एक खुला दरवाज़ा है जिसे पहला पड़ाव बनाते हुए ,अनेक चोर दरवाज़ों से वे भारत में प्रवेश कर सकते हैं | पलक पांवड़े बिछाकर उनका स्वागत करने वालों की यहाँ कमी भी कहाँ है ?दूसरे देशों की बात छोड़ें भारत की मिलिट्री में , अर्धसैनिक बलों में , पुलिस में ऐसे कितने वेतनभोगी हैं जो मेहमानी पा रहे हैं |यहाँ का खाना ,कहीं और का गाना यहाँ आम बात है |यह हमारी उदार व्यवस्था का ही परिणाम है |किसीके पेट पर लात मारने का यहाँ प्रश्न ही नहीं उठता ?चलो पेट पर नहीं,पिछवाड़े तो लगाओ |भारत वर्ष से यदि पाकिस्तानी या चीनी जासूसों को कर बढ निवेदन सहित निकला जाता है तो हमारे देश के कुछ संवेदनशील कलाकार उसे असहिष्णुता मानकर पुरस्कार वापिस कर देते हैं, विश्वस्तरीय प्रचार करा देते हैं कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है |वे विचारधारा से चीन के अनुगामी हैं या पकिस्तान के |

वैसे अपना देश इतना उदार है कि कोई भी जासूस किसी भी काकटेल पार्टी में सम्मिलित होकर मनमाफिक जानकारियां प्राप्त कर सकता है |

भारत सरकार चेतावनी देती रहती है कि यदि कोई गुप्त सूचना कहीं भेजी गई तो उसके गंभीर परिणाम होंगे इसी बीच जासूसों तक और भी ख़तरनाक विवरण चले जाते हैं |

भले ही गलत सलत हो पर हमारे पास भी दूसरे देशों की जानकारी रहती है |प्रयत्नपूर्वक हम उन पूर्व जासूसों की सूची प्राप्त करने में सफल हो पाते हैं जो अनेक वर्ष पूर्व अपने काम से अवकाश ले चुके होते हैं |

कई बार तो ऐसा हो जाता है कि जब तक जासूस किसी योजना को चुराने की कार्यवाही करते हैं तब तक किसी न किसी न्यूज़ चैनल से वह जानकारी सार्वजनिक कर दी जाती है| उन्हें हथियारों के निर्माण की जो सूचना हस्तगत करना थी , वह शोध पत्रों में पहले ही प्रकाशित हो चुकी होती है |

संभव है परस्पर सुविधा के लिए जासूसों का कोई अंतर्राष्ट्रीय संघ बन जाये , जिनमें महिलाओं का वेतन पुरुषों से अधिक निर्धारित हो ?भारत में उनकी मांग हो सकती कि जो जानकारियां वे मांगें उन्हें उपलब्ध करा दी जाया करें ? उनके कार्यकलापों में गति आनी चाहिए |उनकी मांग हो सकती है कि उन्हें दो अथवा तीन देशों की नागरिकता प्रदान कर दी जाये |हमारे संवेदनशील कलाकार भारत सरकार पर ऐसी नागरिकता देने का दबाव बढ़ा सकते हैं |

 

डॉ हरि जोशी

३/३२ छत्रसाल नगर ,फेज-२, जे.के.रोड , भोपाल- ४६२०२२ (म.प्र.)

मोबाइल -०९८२६४२६२३२

जन्म : 17 नवंबर, 1943, खूदिया(सिराली), जिला –हरदा (मध्य प्रदेश )

शिक्षा–एम.टेक.,पीएच.डी.(मेकेनिकल इन्जीनियरिंग),सम्प्रति –सेवा निवृत्त प्राध्यापक.(मेकेनिकल इन्जी.)शासकीय इन्जीनियरिंग कॉलेज, उज्जैन(म.प्र.)

हिंदीकीलगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र/पत्रिकाओं में साहित्यिक रचनाएँ प्रकशित |अमेरिका की इंटरनेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ पोएट्री में १० अंग्रेज़ी कवितायेँ संग्रहीत|

प्रकाशित पुस्तकें-कुल २४

कविता संग्रह- ३ –पंखुरियां(६९),यंत्रयुग (७५)और हरि जोशी-६७(२०११)(अंग्रेज़ी में भी अनूदित कवितायेँ )

व्यंग्य संग्रह -१५-अखाड़ों का देश (१९८०)रिहर्सलजारी है (१९८४)व्यंग्य के रंग (१९९२)भेड की नियति (१९९३)आशा है,सानंद हैं (१९९५)पैसे को कैसे लुढका लें (१९९७)आदमीअठन्नी रह गया (२०००)सारी बातें कांटे की (२००३)किस्से रईसों नवाबों के (२००६)मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ(२००४)इक्यावन श्रेष्ठव्यंग्यरचनाएँ(२००९)नेता निर्माण उद्योग (२०११)अमेरिका ऐसा भी है (२०१५)हमने खाये, तू भी खा (२०१६) My Sweet Seventeen, published from Outskirts Press Publication Colorado (US) (2006)

प्रकाशितव्यंग्यउपन्यास-६ –पगडंडियाँ(१९९३)महागुरु(१९९५)वर्दी(१९९८)टोपी टाइम्स (२०००)तकनीकी शिक्षा के माल(२०१३) घुसपैठिये(२०१५)

प्रकाशनाधीन उपन्यास-४-१.भारत का राग- अमेरिका के रंग,२.पन्हैयानर्तन, ३.नारी चिंगारी और ४.दादी देसी- पोता बिदेसी

अत्यंतदुर्लभसम्मान-दैनिक भास्कर में १७ सितम्बर १९८२ को“रिहर्सल जारी है “ रचना के प्रकाशनपर मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री द्वारा सरकारी सेवा से निलंबन,कुछ महीनों बाद लेखकों पत्रकारों के विरोध के बाद बहाली |२४ दिसंबर १९८२ को नई दुनिया इंदौर में “दांव पर लगी रोटी लिखने पर मंत्री द्वारा चेतावनी |“१७ जून१९९७ को नवभारत टाइम्स केदिल्ली- मुंबई संस्करणों में रचना“श्मशान और हाउसिंग बोर्ड का मकान“प्रकाशित होने पर सम्बंधित मंत्री द्वारा शासन की ओर से मानहानि का नोटिस और विभाग को कड़ी कार्रवाई करने हेतुपत्र| पुनः लेखकों पत्रकारों द्वारा विरोध |प्रकरण नस्तीबद्ध |

अन्य सम्मान-व्यंग्यश्री (हिंदी भवन ,दिल्ली)२०१३,गोयनका सारस्वत सम्मान(मुंबई)२०१४,अट्टहास शिखर सम्मान (लखनऊ) २०१६,वागीश्वरी सम्मान (भोपाल) १९९५,अंग्रेज़ी कविता के लिए अमेरिका का एडिटर’स चॉइस अवार्ड २००६, एवं अन्य कुछ सम्मान|

विदेश यात्रायें-एक बार लन्दन कीतथा छः बार अमेरिका की यात्राएं|दो शोधर्थियों को “हरि जोशीके व्यंग्य लेखन” पर पीएच.डी. प्रदत्त|पता३/३२ छत्रसाल नगर,फेज़-२,जे.के.रोड,भोपाल-४६२०२२(म.प्र.)/दूरभाष निवास-०७५५-२६८९५४१चलितदूरभाष -०९८२६४-२६२३२ E mail –harijoshi2001@yahoo.com

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