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  • नीलम कुलश्रेष्ठ

एक प्रेम कथा

`` तर्णेतर ने रे अमे में मेड़े जाता ...`` : ऋषि पंचमी पर आयोजित होने वाले गुजरात के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक मेले पर आधारित एक 'प्रेम कथा'

सुन्दर, सजीले उन आदिवासी युवकों का दल विशाल छाता पकड़े कितना उन्मत होता होगा? सफ़ेद बुर्राक़ कड़ियों व सफ़ेद कसे पायजामे में गुनगुनाते चलते होंगे. धूप में कड़ियों पर कड़ाई किये हुए तोता, मैना, मोर, फूल पत्ती में जड़े गोल कांच चमकते होंगे. मोटे रंग के लाल रंग के कपड़े के इस छाते के बीच में कड़े पीले, गुलाबी, लाल रंग के फूल व पत्तियाँ भी चमकते होंगे. छाते के ऊपर केंद्र में होगा असली मोर के पंखों से बनाया बड़ा मोर, जिसे देखकर लगता होगा कि कब उसका जी मचलेगा व उन्मत हो नाचने लगेगा.

मेहुल तर्णेतर के मेले में खड़ा कल्पना कर रहा था कि जैसे ही ये सजीले युवक कहीं से निकलते होंगे, भीड़ ठिठक कर इन्हें देखती रह होगी. एक तो उफ़ान भरी उम्र, होठों के ऊपर पैनी काली मूंछें, इनकी दृढ़ मुस्कान कहती लगती होगी कि आज तो दुल्हिन लेकर ही जाएंगे. लोगों को देखकर इनमें से कोई मनचला तान छेड़ देता होगा -``तर्णेतर ने रे अमे मेड़े जाता -----`सारे युवक मस्त हो यही गीत दोहराते होंगे.

आस पास की गाँवों की छैल छबीली युवतियां भी लाल, नीले, पीले हरे रंग के कछोटा व भरचक कड़ी चोली में अलमस्त चाल से गिलेट या चांदी के मोटे कंगन पहने, पायल छनकाती, बात बात पर खिलखिलाती, कभी ठेलेवाले की चुस्की चूसती चली होंगी.कहीं ज़मीन पर बैठकर कपड़े पर कोई बुँदे माला चूड़ी बेचता दिखाई दे जाता होगा तो वहीं घेरा बनाकर इन चीज़ों का मोल तोल करने लगतीं होगी. मेले में कहीं और खाली जगह दिखाई दे जाती होगी, तो गोल घेरा बनाकर गरबा करने लगतीं होंगी.

` वा वाया ने बादल उमठया,

गोकुल में कुहुक्या मोर,

रमवा आवो सुंदिर सांवडिया `

सुंदरनगर ज़िले के पास होने वाले इस मेले के विषय में बीस बाइस वर्ष से सुनता आ रहा है.उसने पर्यटन विभाग के ब्रोशर्स में आदिवासियों के मेले की बहुत सी फोटोज़ देखीं थीं.इनकी रंग बिरंगी पोशाकों व झूमते आदिवासी गहनों को देखकर वह मुग्ध हो गया था. आज इतने वर्षों बाद वह मेले में आ सका है. उसकी आँखें उन छाते वालों को तलाश रहीं हैं, कब उसके सामने वह दृश्य साकार होगा जब परम्परा के अनुसार कोई आदिवासी लड़की किसी युवक के छाते पर रीझकर उसके नीचे आ जाती है अर्थात वह उस युवक से शादी करने को तैयार है --वाह -क्या परम्परा है? ये कैसे बनी होगी? न जान ना पहचान, न गाँव का नाम मालूम,न परिवार, न उम्र, न व्यवसाय का पता ----बस सुन्दर छतरी के गोल घेरे में लटकते फुंदने देखे रंग बिरंगे रूमालों के बीच कोई चेहरा देखा, उसकी कद काठी देखी, आँखों में छलकती उम्मीदवारी देखी और कोई सजी धजी युवती अपनी पीली ओढ़नी सम्भालती, लहराती, इतराती के नीचे आ जाती होगी. चार छलकती आँखें टकरातीं होंगी. के युवक व युवतियों के दल ताली बजाकर, शोर मचाकर अपनी खुशी व्यक्त करते होंगे. इस मेले में छाते के नीचे आ जाने पर तय होता होगा एक विवाह.

पर्यटन विभाग के अहमदपुर मांडवी रिसोर्ट का सहायक प्रबंधक मेहुल रिसोर्ट में वह वहां आने वाले पर्यटकों को बताता रहता है,``अहमदपुर यहां के पास के गाँव का नाम है. मांडवी का अर्थ होता है चैक पोस्ट.दीव व गुजरात का चैक पोस्ट पास ही है इसलिए इस रिसोर्ट का नाम रख दिया है अहमदपुर मांडवी. ``

आरम्भ में तो इस रिसोर्ट ने उसका मन मोह लिया था. लम्बी पेड़ों से घिरी सड़क के एक ऒर बना ये छोटा मोटा आदिवासी गाँव लगता है. इसके परिसर में पेड़ पौधों व लताओं से घिरी झोंपड़ियां बनीं हैं. झोंपड़ी के द्वार के ऊपर गोटे सजे, कान्च जड़े छोटी घंटियों वाले तोरण [वंदनवार ]लगे हैं. अंदर सब आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं जिनकी दीवार पर लगा होता है चाकड़ा, सुन्दर बाजोट पर रक्खा होता है पानी का जग. रिसोर्ट के पीछे है गुजरात का सबसे समतल समुद्री किनारा, जहाँ बच्चे भी बिना डरे उछलकूद कर लें. टूरिस्ट कभी समुद्र मे नहाते हैं, कभी रेत में पड़े रहतें हैं या कभी वॉटर स्कूटर समुद्र में दौड़ाते मज़े करते हैं. वह ही बार बार सबको `सर थेंक यू`, `इट् ``स माई प्लेज़र ` कहता, नकली स्माइल देता थक जाता है. सांझ होते ही भाँय भाँय करता सन्नाटा उसकी रूह में समाता जाता है. थोड़ी दूर पर ही गुजरात व दीव को विभाजित करती दीवार है जिसमें बने दरवाज़े से होकर दीव जाना होता है.

इस मेले का आकर्षण होतें हैं संरक्षित मैदान के हिस्से में बने पर्यटन विभाग के मैदान में लगे टेंट -साधारण, डीलक्स, सुपर डीलक्स. इसके भोजनालय में एक तरफ़ मेज़ पर राजकोट ऑफ़िस के कर्मचारी कनु भाई कैटरर के साथ मुस्तेदी से मेज़ पर फाफड़ा, तली हरी मिर्च व जलेबी. ये आइडिया मेहुल का था, उसने हरे धनिये की चटनी भी रखवा दी थी. नहीं तो उत्तर प्रदेश के टूरिस्ट नाक भौं चढ़ाते, ``हरी चटनी नहीं है? ``बड़ी मेज़ के कोने पर चाय का एक कंटेनर व प्लस्टिक ग्लास रखे थे,दूसरे कोने पर पानी का कंटेनर रक्खा था. मेहुल को नज़र रखनी कि थी कि अस्थायी भोजनालय में समय कूपन्स चैक किये जा रहे हैं या नहीं, मेज़ पर रक्खी खाने की प्लेट्स खाली तो नहीं हैं या झूठे बर्तनों का टब जल्दी से हटाया जा रहा है या नहीं.

मेहुल पर्यटन विभाग के भोजनालय में पर्यटकों के नाश्ते की व्यवस्था करवा कर अब आ पाया है मेले में. आज मेहुल इस मेले में ऐसी ही परम्परागत पोशाकें तलाश रहा है लेकिन आदिवासी धोती कुर्ता या पेण्ट कमीज़ में हैं. स्त्रियां लड़कियां चटक रंग की धोती पहने या सलवार कमीज में घूम रहीं हैं. हाँ, कहीं दूर दूर कुछ छाते चमक रहे हैं. वह जब भी इस मेले की कल्पना करता था तो सोचता था कि यहां करीने से सजी दुकाने होंगी क्योंकि उसने अहमदाबाद के `फ़नफ़ेयर `ही देखे थे. ये भारत है, सरकार क्यों ज़हमत उठाये इसे व्यवस्थित करने के लिए? सुरेंद्रनगर ज़िले के इस गाँव में त्रिनेत्रेश्वर मंदिर के पास तीन दिन मेला आयोजित करने की वर्षों पुरानी परम्परा है. इस मंदिर के कुंड में गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन यानि ऋषि पंचमी को लोग मूली, थानगढ़, लखतर, वड़वान, रतनपुर, सायला और भी गाँवों से स्नान करके पुण्य कमाने आएंगे ही. दुकानदारों को अपनी कमाई करनी ही है. आदिवासी संस्कृति को देखने बेचैन देशी, विदेशी पर्यटकों की रूहें भी अपना कैमरा लिए यहां भटकेंगी ही. तो बिखरी रहने दो इन दुकानों को. हाँ, कुछ ऊंचाई पर सजीं है स्टील के बर्तनों, प्लास्टिक सामन, स्टोव, चूरन, चटनी, अचार, पापड़ की दुकानें. कहीं ढलान से उतरकर चार पांच दुकानें और हैं. तीन मेरिगो राउंड के आस पास भीड़ लगी है.

मेहुल ज़ेवरों की दूकान पर ठिठक जाता है. तन्वी को कैसे लगेंगे ये गहने? सस्ते मोतियों, सस्ते मेटल की मालाएँ,बुँदे, टॉप्स, ब्रेसलेट्स -- बनावट में कोई में सुरुचि नहीं, न शहरी, न आदिवासी. तन्वी केलिए कुछ खरीद लिया तो नाक भौं चढ़ायेगी, ``ये तो यहां फुटपाथ पर जाते. ``

``साब! क्या दिखाऊं? ``एक सत्रह अठारह साल का पतला दुबला छोकरा पूछता है.

``कुछ नहीं. ``कहता मेहुल आगे बढ़ जाता है.

इन बेतरतीब दुकानों के बीच कहीं सरकारी समाज कल्याण विभाग की तरफ़ से तम्बाकूबन्दी, शराबबंदी, सिगरेट्स के लिए चेतावनी देतीं दुकानें हैं. सफ़ाई विभाग व परिवार नियोजन विभाग भी स्टॉल पर पोस्टर लगाए बैठें हैं. पास ही एक पति पत्नी चादर पर बैठे लोगों के हाथों, होठों के नीचे गाल पर मशीन से गोदना गोद रहे हैं. पास ही धूल में बैठा उनका दो ढाई साल का लड़का ज़मीन गीली कर रहा है. वह सोचता है इस दृश्य को क्लिक करके अपने एम डी को दिखाए की आप विदेशी पर्यटकों को यही दिखाना चाहतें हैं? कैमरा क्लिक करता उसका हाथ रुक जाता है. क्योंकि इसी उबलते खून से पर्यटन विभाग को सुधारने के चक्कर में उसे अहमदाबाद से गुजरात के अहमदपुर मांडवी रिसॉर्ट में पटक दिया गया है, जो दीव से सटा हुआ है.

वहां से ज़बरदस्ती छुट्टी लेकर अहमदाबाद जा पाया था. गार्डन में उससे सटी बैठी तन्वी कसमसाकर चौंक गई थी, ``सो वॉट? ``

``क्या हुआ? ``

``यही तुम कब तक अहमदपुर मांडवी में रहोगे? ``

``मतलब? ``

``तुम्हारी पोस्टिंग कहीं बड़े शहर में नहीं हो सकती? ``

``पोस्टिंग क्या मेरे हाथ में हैं? ``

``शादी के बाद मैं कैसे वहां रहूंगी? ``

``थोड़े समय की बात है. वैसे भी ये रिसॉर्ट कोई प्राइवेट पार्टी ख़रीद रही है. ``

``उसके बात तुम्हारी पोस्टिंग सापूतारा, वेरावल या द्वारका हो जाएगी. मेरा मतलब है जहाँ पर्यटन विभाग के गेस्ट हाउस हैं. ``

``एग्ज़ेक्टली राइट. ``

``राइट माई फ़ुट. ``

वह उसके गुस्से को समझता है लेकिन धीरज से पूछता है, ``तुम्हीं इन स्थानों से चिढ़ती क्यों हो? ``

``मैंने अहमदाबाद में जन्म लिया है. मैं एम बी ए कर रहीं हूँ. तुम्हारे साथ इतनी छोटी जगह रहकर मेरी डिग्री का`क्या होगा? ``

``जब प्यार हो तो सब कुछ एडजस्ट हो जाता है. ``कहते हुए वह उसकी कमर के इर्द गिर्द अपनी बाँहें डाल देता है. तन्वी सुगंध भरा झोंका बन कंधे पर लरजती अपना सर रख देती है. तब न वह कुछ सोचना चाहता, न तन्वी.

मेले में अब तक वह मौत के कुंए के पास आ चुका है. बाहर टंगे पोस्टर से पता लगता है कि कुंए में एक कारवाला व तीन मोटर सायकल सवार करतब दिखाएँगे. वह टिकिट लेने से पहले रुक जाता है, कल तन्वी आ ही रही है, उसी के साथ ये खेल देखेगा. वह डर से थरथराती, आँखें बंद करती, अपने से लिपटती तन्वी को देखना चाहता है. तन्वी के चेहरे का असमंजस उसने दूसरी बार अहमदाबाद लौटकर देखा था. उसने पूछ ही लिया था, ``तुमने अपने घर में शादी की बात की? ``

``ओ नो! ममी वैसे ही टेन्स हैं. दीदी डिलीवरी केलिए आई हुईं हैं. ``मम्मी

``इसमें टेंशन की क्या बात है? तुमकुछ छिपा रही हो. ``

``मम्मी का ख़्वाब है कि मुझे वेल टु डु लड़का मिले. ``

``मुझमें क्या कमी है? ``मेहुल दोहराना नहीं कहते क्योंकि तन्वी को उसके डैडी की कार, फ़्लेट व मम्मी की नौकरी के बारे में पता है.

`` बात कमी की नहीं है जैसे ही मम्मी को पता लगा कि तुम्हें दो तीन साल रिसोर्ट में रहना होगा तो भड़क उठीं. ``

``सिर्फ़ दो तीन साल की तो बात है फिर पापा ने मुझे प्रॉमिस किया है कि ये एक्सपीरिएंस होते ही वे मेरी ट्रेवल एजेंसी खोलने में मदद करेंगे और मैं अहमदाबाद लौट आऊंगा. ``

``इन वर्षों में मेरे कैरियर का क्या होगा? ``

क्या जवाब दे मेहुल? घर पर उसकी मम्मी भड़कती है, ``क्लासफ़ेलो से प्यार करने चलीं थीं तो वह पढ़ाई ख़त्म होते ही वेल टु डु कहाँ से होगा? देख मेहुल इस लड़की के रंग ढंग मुझे शुरू से ही अच्छे नहीं लग रहे. पहले प्रसाद लाकर, फिर मुझे गिफ़्ट देकर इस घर मे जगह बनानी शुरू की. अपने घर में यहां तक की अपनी बहिन को भी चार वर्ष से चलने वाले अफ़ेयर के बारे में नहीं बताया. ``

``मॉम! तन्वी अपने घर में सबसे छोटी है इसलिए शर्माती है. ``

``ओ हो! लड़कों के साथ कमर में हाथ डलवाये घूमेंगी, उसके साथ लंच डिनर लेंगी. हमारे घर में हैंडीक्राफ़्ट दीवार पर लगा गई है और घर पर नहीं बताया. बहुत शर्मीली है. ``

``हर बार की तरह मेहुल ने उसका पक्ष लिया था, ``मम्मी तन्वी ऐसी नहीं है बस ---. `

मेले की भीड़ में खोया मेहुल पता नहीं क्या क्या सोच गया है. सब कुछ मेले में भी बेतरतीब है. क्या पाते होंगे सैकङों मील से उड़कर आये विदेशी पर्यटक.यह पर्यटक विभाग की चतुरता है कि वह अपना परिसर बनाकर उसके मंच पर दो ढाई घंटे तक गुजरात के सभी लोक नृत्यों को प्रस्तुत करता है जिससे पर्यटकों का आकर्षण बना रहे. बरसों पूर्व गुजरात में बस गए सिड्डी जाति के अफ़्रीकन्स के गीत व डांस लोगों को झूमने पर मजबूर कर देतें हैं. वह अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत व भावनगर से आये लोक कलाकारों के रहने की व्यवस्था भी कर चुका है.

मेले से पंद्रह दिन पूर्व वह विभाग का फ़ोन व पत्र पाकर उछल ही पड़ा था कि उसकी तीन दिन ड्यूटी इस मेले में लगेगी. कब से तो ये मेला देखना चाह रहा था. तुरंत ही उसने तन्वी को फ़ोन किया था. वह बोली थी, `वाऊ! मैं भी एक सरप्राइज़ दूँ? ``

``या. ``

``हमारे इंस्टीटयूट में `कल्चरल प्रोग्राम `के अंतर्गत अमेरिका से कुछ स्टुडेंट आ रहे हैं जिन्हें ये मेला दिखाना है. ``

``आई विल मैनेज देम, डो `ट वरी. ``

``अरे सुनो तो --उन्हें घुमाने के लिए दांडेकर सर, निखिल व मेरी ड्यूटी लगी है. हम लोग मेले के दूसरे दिन वहां पहुंचेंगे. ``

मेहुल को लगा उसका दिल उछलकर बहार ना आ जाए,``आई का`नट बिलीव. ``

``बिलीव मी, अभी तो मेरे पास एक और सरप्राइज़ है. ``

``क्या? ``

``इस सन्डे को मेरे जीजू अहमदाबाद आ रहे हैं. वे व दीदी तुम्हारा इंटर्व्यू लेंगे, यदि तुम उसमें पास हो गए तो मेरी मम्मी तुमसे मिलेंगी. ``

``हुर्रे --.``उसने तुरंत ही अपनी मम्मी को ये बात बता दी जो अपने इकलौते लड़के की चिंता में घुली जा रहीं थीं.

``बाबू साब! आगे खाड़ा [गढ्ढा ] है. ``मेहुल के पीछे काठीयावादी पगड़ी पहने वृद्ध उसका कंधा थपथपा रहा था. उसने उन्हें बहुत आभर से देखा, ``सारू काका! ``

आज गणेश चतुर्थी के दिन इतनी भीड़ है तो कल क्या होगा? मेहुल ढलान से उतरकर लंबा रास्ता पारकर त्रिनेत्रेश्वर केमंदिर में दर्शन करने आये लोगों की लम्बी कतार में खड़ा हो गया. स्त्रियों की लम्बी लाइन अलग लगी हुई है. मेहुल मंदिर के गुम्बद पर उकेरी हुई देवी देवताओं की मूर्तियों को देखकर अच्मभित हो रहा था चौदहवीं शताब्दी में भी इतने कुशल कारीगर हुआ करते थे.वह एक पुस्तक में दी हुई जानकारी मन ही मन दोहराने लगा कि पता नहीं कब कोई पर्यटक यहना का इतिहास पूछने लगे. वह कल्पना करने लगा कि किस तरह यहां के जागीरदार ने झालावाड़ [राजस्थान ] से सोमपुरा ब्राह्मणों को बुलाकर दो सदी पहले इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया होगा. उसकी नज़र ऊँचे गुम्बद पर लगी नारंगी रंग की पताका पर गई जो लगभग पंद्रह बीस फ़ीट ऊंची तो होगी ही. वह हवा में गुम्बद के ऊपर इधर उधर लहरा रही थी.

उसका दिल भी ऐसे ही लहरा रहा था जब उस इतवार को तन्वी की दीदी व जीजू उसे `ब्ल्यु हैवन `में मिलने वाले थे. दिल थोड़ा धक् धक् कर रहा था. पता नहीं वे क्या बात पूछ लें. उनके छ; माह के बच्चे के लिए कुछ खिलौनों का गिफ़्ट पैक ले लिया था.

उसके जीजू बहुत सुलझे हुए व्यक्ति थे इसलिए जल्दी ही मेहुल का डर निकल गया था. उन्होंने ही बात की शुरूआत की थी, ``तन्वी ने आपके बारे में बहुत कुछ बता दिया है. आपकी फ़ेमिली भी बहुत अच्छी है. ``

`` जी. ``.

``आपके फ़्यूचर्स प्लान्स क्या हैं? ````अभी मैं कुछ वर्ष टूरिस्ट डिपार्टमेंट में `एक्सपीरिएंस गेन `करूंगा फिर अपनी ट्रेवल एजेंसी खोलूंगा. ``

``आपको लगता है आप ये कर पायेंगे? ``

``व्हाई नॉट? डैडी रुपया इन्वेस्ट करने के लिए तैयार हैं बस उनकी यही शर्त है कि मैं इस काम को अच्छी तरह समझ लूँ. ``

``इन वर्षों में आपको छोटी छोटी जगह रहना -------``

``ये तो सिर्फ़ कुछ वर्ष की बात है. बाद में अहमदाबाद में ही ट्रेवेल एजेंसी खोलूँगा. ``

``गुड, मम्मी यही जानना चाह रहीं थीं. `` तन्वी की दीदी बोलीं थीं.

मेहुल ने उनके चेहरे के संतोष को देखकर गिफ़्ट पैक बच्चे की तरफ़ बढ़ा दिया था. बच्चा उसके लाल रंग को देखकर उसे लेने झपटा व उसने पैकेट पर हाथ मार दिया, `` ऐं -----.``

लाल रंग का कागज़ थोड़ा फट गया. मेहुल प्यार से बोला, ``इट `स फ़ॉर यू.``

मेहुल के जीजा ने कहा, ``मेहुल प्लीज़! माइंड मत करिये. हम ये गिफ़्ट नहीं ले सकते. ``

``बट व्हाई? ``वह भौंचक था.

`` मम्मी बहुत सेंसटिव हैं. यदि हम इसे ले लेंगे तो उन्हें बुरा लगेगा कि हम अपनी तरफ़ रिश्ता पक्का कर आएं हैं.

``प्लीज़! ``मेहुल का चेहरा उतर गया था.

दीदी ने उसका कंधा थपथपाया, ``कुछ इंतज़ार करिये, बाद में इसे ले लेंगे. ``

मेहुल कतार में लगा कतार के साथ खिसकता हुआ मंदिर के प्रांगण में आ चुका है.यहां से वह बड़ा जल कुंड दिखाई दे रहा है जिसमें कल ऋषी पंचमी के दिन स्नान करने आस पास के गाँवों से लोग चले आएंगे. आज भी क्या इस कुंड में नहाते गुजरात के आदिवासियों कोली, भील, भरवाड़ व रबारियों की भीड़ कम है? कैसा है अपना भारत न अर्जुन, न द्रौपदी के होने के प्रमाण हैं. फिर भी यही आस्था है कि इसी विशाल कुंड के आस पास राजा महाराजाओं की सभा लगी थी. अर्जुन ने इस कुंड के बीच गढ़े बांस पर घूमती मछली की कुंड में परछाईं देखकर उसे वेधा था. ऋषी पंचमी को उनका विवाह हुआ था जिसमें शामिल होने गंगा आईं थीं. उसी गंगा में इस कुंड में नहाने व उसके बाद मंदिर में शिव दर्शन करने स्थानीय लोक आस्था उमड़ पड़ती है.मंदिर में पुरुषों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. परमपिता के ऊपर मेहुल की आस्था है लेकिन वह ऐसे कुंडों या तिरुपति बाला जी जैसे कुंडों में नहा नहीं पाता जहां सैकङों लोगों के शरीर का मैल घुला हो. वह सिर्फ़ अपने हाथ पैर धो लेता है. दांयी तरफ़ स्त्रियों के लिए पर्दा लगाया हुआ है फिर भी दो औरतें पर्दे से बाहर आकर शरीर से चिपटे गीले कपडे उतारकर आराम से कपड़े बदल रहीं हैं.एक गोरी विदेशिन अपने हैंडीकैम से इसे शूट करती जा रही है. विचित्र है इस मंदिर की प्रथा -यहाँ प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता, न अगरबत्ती, धूपबत्ती या दिया जलाया जाता. बस मंदिर में नारियल चढ़ाया जाता है.

उसकी तरह उसके मम्मी डैडी भी तन्वी के कहे अनुसार अगले इतवार को उसके मम्मी पापा का इंतज़ार कर रहे थे. उस दिन मेहुल का हर पल धीमे धीमे गुज़र रहा. मम्मी तो सुबह से सफ़ाई करवाने में लग गईं थीं. बाहर से मिठाई व नमकीन मंगवा ली गई थी. तले काजू घर में थे ही. उनके आने पर पकौड़े व ब्रेड रोल्स तलने का प्रोग्राम था. घड़ी की सुइयां बढ़ती जा रहीं थी ---छह;--सात ---साढ़े सात --.वे लोग नहीं आ रहे थे,न तन्वी मोबाइल उठा रही थी. मम्मी उसके उतरे चेहरे को सांत्वना दे रहीं थी,``चिंता मत कर ज़रूर कुछ गड़बड़ हो गई होगी. ``

आठ बजे तन्वी का फोन आ गया था, ``मेहुल अपने मम्मी डैडी से मेरी तरफ़ से माफ़ी मांग लेना क्योंकि हम मम्मी को डॉक्टर के पास लेकर आएं हैं. ``

``मैं वहां पहुँच रहा हूँ. ``

``अब परेशान होने की कोई बात नहीं है, बी पी कंट्रोल में है.फिर तुम्हेंआज रिसोर्ट के लिए भी निकलना है. ``

मेहुल मंदिर की सीढ़ियों की तरफ़ आ चुका है.इस प्राचीन मंदिर को देखकर उसके मन में सनसनाहट हो रही है. इसमें पूजा करने वाली आस पास की कितनी पीढ़ियां गुज़र गईं होंगी. नारियल चढ़ाकर, दान पेटी में रूपये डालकर डालकर, वह तेज़ी से भोजनालय की तरफ बढ़ने लगता है. दुकानों के पीछे उनकी छाया के रास्ते में कुछ युवतियां गरबा कर रहीं हैं.एक बड़े गोल घेरे में झूम रहीं रहीं हैं -

``सोनल गरबा शीरे, माँ चलो धीरे धीरे. ``

वह शॉर्टकट के लिए इधर आया था लेकिन अब इस गोल घेरे के सहरे ही रास्ता पार करना होगा. अब तक दूसरा गीत शुरू हो चुका है -

`एक वंझारी झूड़ना झूलती थी

म्हारी अम्बे माँ न झूड़ झूलती थी. ``

शाम के चार बजे पर्यटन विभाग के परिसर के विशाल सीमेंटेड बड़ा दरवाज़ा, जिसके ऊपर बैनर लगा है, `वेलकम टु तर्णेतर फ़ेयर, `उसी के सामने खड़ा है. दिल बेहद खुश है व व्यग्र है, तन्वी बस अब आती ही होगी. सवा चार बजे श्रीनाथ ट्रेवल्स लग्ज़री कोच गेट के सामने रुकती है. उसमें गोरे अमेरिकन छात्र छात्राएं, कुछ नीग्रोज़, एक एक कर उतर रहें हैं. सबसे बाद में उतरती है तन्वी. कसी जींस में पोनी बनाये गॉगल्स लगाए. मेहुल को देखकर हाथ हिलाकर धुप सी खिली मुस्कान बिखेर देती है. तन्वी अपने सर से व निखिल से उसका परिचय करवाती है, `` मीट माई फ़्रेंड मेहुल. ``

सर गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए पूछते हैं, ``आप कब यहाँ पहुंचे? ``

``आपके वेलकम के लिए आपसे पहले पहुंचना ही था. ``

सर खुश होकर हंस पड़ते हैं. तब तक इस दल के लड़की लडकियां अपने बैग्स कन्धों पर लाद चुकें हैं. कुछ हाथ पैर झटक कर, अंगड़ाई लेकर अकड़ गई देह को चुस्त कर रहे हैं. गेट के दोनों तरफ दो लड़कियाँ गुजराती साड़ी में सजी धजी माथे पर जड़ाऊ टीका लगाए आरती का थाल लिए खड़ीं हैं. सभी विदेशी छात्र अपने माथे पर टीका लगवा कर व आरती करवाकर बेहद खुश हो रहें हैं. दूसरी लड़की एक सुनहरी गोटे की माला, जिसमें कपड़े के बने तोते लटक रहें हैं , हर छात्र के गले में डालकर मुस्करा कर कहती है, ``डिस इज़ ओर आइडेंटिटी कार्ड. ``

`` थेंक यु. ``

मेहुल अपने हाथ की लिस्ट चैक करता उन्हें टेंट में ठहरा रहा है. तन्वी एक विशाल चबूतरे पर बने टेंट को देखकर खुश हो जाती है. टेंट में चार पलंग बिछे हुए हैं. बाजू में पर्दा पड़ा ड्रेसिंग रूम है जिसकी दीवार पर आइना भी लगा है. एक मेज़ पर रक्खें हैं एक जग व चार गिलास. मेहुल सबके रहने की व्यवस्था करवा कर तन्वी के पास पहुँच जाता है, ``आर यू हैपी? ``

एक साथ उत्तर देतीं हैं उसके साथ ठहरने वली दो गोरी व एक नीग्रो लड़की, ``यस वी आर. ``

तन्वी कहती है, ``इट`स सो एडवेंचरस एन्ड अनबिलेवेबिल.यहां इतने साफ़ सुथरे टेंट्स होंगे मैंने सोचा भी नहीं था. ``

``चलो तुम्हें बाहर का व्यू दिखा लाऊँ. ``मेहुल उन विदेशिनों के कारण असहज है. वे भी अपने बैग्स खोलकर कपडे निकाल रहीं है, फ़्रेश होना चाह रहीं हैं. मेहुल तन्वी को लेकर परिसर के उस हिस्से में आ गया है जहाँ टेंट की रस्सियों के खूँटों के बीच की खाली जगह से दूर मेले का बड़ा हिस्सा दिखाई दे रहा है.तीनों ज्वाइट्स व्हील्स, दुकानें, लोगों की भीड़ दिखाई दे रही है. तन्वी उन्मत सी अपने कैमरे का लेंस ज़ूम कर फ़ोटो लेने लगती है,रात में तो यहाँ से और भी सुन्दर व्यू दिखाई देता होगा. मेले में घूमने के लिए छात्रों का दल तैयार है. मेहुल का निकलना मुश्किल है. वह सर से कहता है, ``आप लोग डिनर के लिए आठ बजे जाइये क्योंकि आज मेहमानों व कलाकारों की बहुत भीड़ आ गई है. डिनर के बाद कल्चरल प्रोग्राम देखिये. ``

रात में अमेरिकन छात्र व छात्राओं व अन्य विदेशी मेहमानों को मंच के सामने की पंक्ति में बिठाया गया है. वे सौराष्ट्र, कच्छ व रबारी लोकनृत्यों में डूब चुके हैं. उनके बीच बैठे सर, निखिल,तन्वी व मेहुल बीच बीच में गीत के अर्थ समझा रहे हैं. मंच पर जब काले अफ़्रीकंस सिद्दी नृत्य होता है तो पहली पंक्ति में बैठे अफ़्रीकंस भी अपनी जगह से उठकर नृत्य करने लगते हैं. पत्तेनुमा पोशाकें पहने इस दल सदस्य मंच पर आगे आकर एक एक जानवर की नक़ल कर रहा है. गीत के साथ ढोल व बेंगो की ताल अलग समा बाँध रही है.

मेहुल अपने पास बैठे लड़के को बता रहा है, `सौराष्ट्र के एक राजा ने एक अफ़्रीकन लड़की से विवाह किया था. यहां के सिद्दी जाति उसी राजा की संतानें हैं. ``

सोने से पहले मेहुल तन्वी को एक टेंट के पीछे अँधेरे में खींच लेता है. उसकी बिखरी ज़ुल्फ़ों के बीच उजले चेहरे को हाथों में भरकर पूछता है, ``सो वॉट? ``

`` वॉट? ``

``कल ऋषी पंचमी के दिन अर्जुन और द्रौपदी की यहीं शादी हुई थी, कल हम भी यहीं शादी कर लें? ``

``पहले तुम छाता लेकर तो घूमो, तब मैं सोचूंगी कि उसके नीचे आऊं या नहीं. ``

``यहाँ किराए पर छाता मिल जाता तो ज़रूर घूमता वह भी रबारी पोषक पहनकर. ``

वह अपनी गर्दन झुकाकर उसके सीने में अपना चेहरा छिपा लेती है, ``ये है न मेरा छाता. ``पता नहीं कितने क्षण ऐसे ही गुज़र गए हैं. तन्वी धीमे से अपने को छुड़ाती है, ``कल सुबह मिलते हैं. ``

``टेन्वी! व्हेयर आर यू?`` एक अमेरिकन लड़की उसे खोजती वहां आ गई है.

``कल सुबह सबको उठा देना क्योंकि कल जल्दी कार्यक्रम शुरू हो जाएगा. ``मेहुल उसे हिदायत देकर परिसर में घूमकर अपनी ड्यूटी देने लगता है.

सुबह ही मुख्यमंत्री हेलीकॉप्टर से उतरकर दीप प्रज्जवलित करके कार्यक्रम का उद्घाटन करते हैं. उनके आने से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था दिखाई दे रही है.शहर से बहुत से विशिष्ट अतिथि आएं हैं. मैदान के दांयी तरफ़ बैठा है तन्वी के कॉलेज का दल.

मैदान में लाइन में बैलगाड़ियां खड़ीं हैं. बैल ख़ूब सजे धजे बड़े बड़े रंग बिरंगे मोतियों की माला पहने खड़े हैं. इनकी काठी भी मोतियों की है. इनके सींगों को तेल से चमकाया हुआ है. रेफ़री की सीटी बजते ही जैसे उनके मालिक ने लगाम खींची व संटी मारी वे दौड़ पड़े. ----इसके बाद ऊंटों व घोड़ों की रेस होनी थी. मैदान में इन प्रतियोगिताओं को देखतीं, उछलती, ताली पीटती तन्वी को देखकर मेहुल भाव विभोर है. उसके साथी अपनी कुर्सी से उठकर विभिन्न कोणों से भारत की संस्कृति को कैमरे में कैद करने में लगें हैं.

इस रेस के बाद बन्नी जाति की स्त्रियों का नृत्य आरम्भ हो जाता है. इस जाति की स्त्रियां बेहद सुन्दर होतीं हैं. उनके काले गोदने से सजे चेहरों व चमकीली पोशाकों से सारा मैदान जगमगा गया है. दो तीन नृत्य के बाद वे शॉल ओढ़कर कार्यक्रम देखने लगतीं हैं. इस नृत्य के बाद मुख्यमंत्री का हेलीकॉप्टर धूल उड़ाता उड़ जाता है.

दोपहर के खाने के समय भोजनालय में बहुत भीड़ है. कढ़ी पत्ते की सुगंध फ़ैली हुई है. सारा इंतज़ाम देखता मेहुल बमुश्किल मेहुल तन्वी के पास आ पाता है. उसे देखते ही तन्वी की चखर चखर शुरू हो गई है, ``यू नो मेहुल! मेहुल जिस घोड़े पर मैंने शर्त लगाई थी वही जीता.तुम्हारा क्या ख़्याल है रेसकोर्स में मैं बहुत अच्छी ज़ौकी बन सकतीं हूँ? ``

``तुम्हें देखते ही घोड़े बिदक कर भाग जाएंगे. ``

``यू ---.``यदि उसके हाथ में प्लेट नहीं होती तो अब तक एक मुक्का मेहुल के लग ही चुका होता,``इतना सुन्दर डांस देखकर मेरा मन भी डांस करने को हो रहा था. ``

``बेकार की बात छोड़ो.असली मेले में तुम लोगों के ख़रीदने लायक कुछ भी नहीं है. बस टूरिस्ट डिपार्टमेंट के केम्पस में चौदह पंद्रह स्टॉल्स हैं, जहाँ हैंडीक्राफ्ट्स व आर्ट ज्वेलरी मिल रही है. अपने ग्रुप को वहां ज़रूर ले जाना. ``

``सर! आपको कनुभाई बुला रहे हैं. ``तभी कनुभाई का एक आदमी उसके पास आकर कहता है. कनुभाई उसे एक कोने में मले जाकर कहतें हैं, ``साब! एक लोचो थेई गयो छे. आजे मेहमान वधारे[बहुत ] छे एटले मने लागे शाक पूरी ओछी[कम ] थई जाये. कढ़ी तो वधारे छे. ``

``तो? ``मेहुल के माथे पर पसीने की बूँदें चमचमा गईं हैं.

``काईँ हरकत नहीं. एक मोटी गाड़ी बुलाई लो. अमे थानगढ़ से खाना लई आवशे. ``

``मैं भी साथ चलूँगा. ``वह अपने सहायकों से मेहमानों की संख्या का अनुमान लगाता गाड़ी में बैठ जाता है.

तन्वी भागती हुई वैन के पास आकर पूछती है, ``कहाँ चले? ``

``कुछ काम के लिए थानगढ़ जा रहा हूँ.

` `तुमने तो कहा था कि लांच के बाद मुझे मेले में घुमाओगे. ``

``सौरी! अभी पॉसिबल नहीं है.मैं थानगढ़ किसी ज़रूरी काम से जा रहा हूँ. शाम को मेरी ड्यूटी मेले के स्टेज पर है क्योंकि मेरे कुछ बॉसेस वहां जज बनकर आ रहे हैं. कल साथ चलेंगे. ``

``इस छाते वाले मेले में हम साथ ---.``

तब तक वैन स्टार्ट हो चुकी थी उसके शोर में तन्वी सुन नहीं पाई कि मेहुल क्या कह गया.

पर्यटन विभाग के केम्प्स से वैन बाहर आ गई है. मेहुल देखता है बाहर भी प्राइवेट टेंट्स की संख्या बढ़ गई है. दोपहियों और कारों की भरमार है. ट्रेवल एजेंसी की बसों की कतार का तो दूसरा छोर दिखाई नहीं दे रहा. सड़क पर ड्राइवर को वैन चलानी मुश्किल हो रही है. लोग सामान लाने टेम्पो में या ट्रेक्टर की ट्रॉली में भी भरे चले आ रहे हैं. कड़ियों व पायजामे में सजे आदिवासी अपनी बैलगाड़ी, घोड़ा या ऊंट लिये लौट भी रहे हैं. कितनी अलग है पर्यटन विभाग के परिसर में ठहरने वाली वो मुठ्ठी भर आभिजात्य दुनियाँ और परिसर के बाहर फैला ये असली भारत.

लौटकर मेहुल लंच लेकर अपने टेंट के दरवाज़े पर बन्धी रस्सी खोल ही रहा होता है कि तन्वी का फ़ोन आ जाता है, ``मेहुल! बड़ी गड़बड़ हो गई है कुछ विदेशी स्टूडेंट्स को फ़ूड पॉइज़निंग हो गया है. उन्हें डायरिया व वोमेटिंग हो रही है. ``

``नो वे --ये फ़ूड पॉइज़निंग नहीं होगी. यहाँ के खाने को वो डाइजेस्ट नहीं कर पायें होंगे.उन्हें ऑफ़िस भेज दो. वहां से उन्हें थानगढ़ ट्रीटमेंट के लिए भिजवा दूंगा. ``

वह ऑफ़िस में जाकर देखता है, सबके चेहरे लाल हो रहे हैं. उन्हें काठीयावाड़ी मिर्च हजम नहीं हुई है.वह अपने पास रक्खी दवाइयां उन्हें देता है व कहता है, ``माई असिस्टेंट विल टेक यू टु थानगढ़ फ़ॉर ट्रीटमेंट. ``

` `नो,नो वी वॉन्ट टु गो टु एमडाबाड. ``

``ओ.के. ``

वे सब वैन में पस्त हुए चेहरे से सीट पर सिर टिकाकर अधमुंदी आँखों से बैठ धन्यवाद देते चले जातें हैं. वह मेले की भीड़ में समा जाता है. बीच में गोल घेरा बनाकर बहुत सी स्त्रियां लोकप्रिय गीत पर गरबा कर रहीं हैं ;

` `अमर तू राखजे माँ,

म्हारी चूड़ी ने चाँदलो [बिंदी ] ``

एक आदिवासी घेरे के बीच खड़ा मस्ती में जोड़िया पावस बजा रहा है, दूसरा ढोल.

वह आगे बढ़ता है तो लोग भविष्य बताने की मशीन को घेरे दिखाई देते हैं. इस समय तक खाने पीने की लारियाँ भी बढ़ गईं हैं. मेले के केन्द्रीय मंच पर खड़ा वह इंतज़ाम का जायज़ा लेने लगता है. मंच पर निर्णायकों की कुर्सियाँ लग चुकीँ हैं. यहां भारी भरकम बल्ब लगाकर प्रकाश की व्यवस्था की हुई है. एक कोने में सुन्दर छाता लिए कुछ युवक खड़े हैं. उसे अफ़सोस होता है कि वह देख ही नहीं पाया कि किस तरह कोई युवती शादी के लिए छाते के नीचे आ जाती है. मेहुल अपनी प्रतीक्षा की ऊब मिटाने के लिए पास खड़े युवक का छाता देखने लगता है. उसने छाते गोल घेरे पर के ऊपर वाले केंद्र में प्लास्टिक के गुड्डे गुड़ियों का गरबा करता गोल घेरा बनाया हुआ है. छाते के ऊपर वाले केंद्र में असली मोर के पंखों से बना लंबा मोर है. मेहुल से रहा नहीं जाता, ``आपका छाता तो बहुत सुन्दर है. इसके नीचे बहुत सी लड़कियां आ गईं होंगी.``

``क्या? ``वह सांवला युवक ज़ोर से हंस पड़ता है.

``इसमें हंसने की क्या बात है? इस छाते के कारण आपकी शादी तो ज़रूर तय हो गई होगी. आप बता सकतें हैं इस बार तर्णेतर मेले में छातों के कारण कितनी शादियां तय हुई होंगी? ``

इस बार वह युवक ठठा मारकर ज़ोर से हंस पड़ता है.वह छाता भी हिलने लगता है, ``वो सब तो जूनी बातें है कि कोई लड़की किसी लड़के के छाते को व उसे देखकर शादी कर ले. ``

``क्या -----ऐसी शादियां बंद हो गईं हैं? तो अब लडकियां क्या देखकर शादी करतीं हैं? ``

``अब वे खेती, ज़मीन या नौकरी देख कर के शादी करतीं हैं. ``

``लेकिन ये मेला तो ऐसे विचित्र विवाह के लिए ही मशहूर है. ``

``वह मुस्कराते हुए कहता है, ``मेले में सिर्फ छाते ही रह गए हैं.लड़कियां फुर्र हो गईं हैं. जिन्हें शौक है वही छातों की हरीफ़ाई [प्रतियोगिता के लिए ]इस मेले में छाता बनाकर लाते हैं. ``

`` ये आपने कितने दिन में बनाया है? ``

``दिन में? ``वह फिर ठहाका लगाता है, ``इसे बनाने में पूरा बरस निकल जाता है. जंगल में भटक कर मोर के पंख इक्कठ्ठे करने पड़ते हैं. ``

``आप काम क्या करते हैं? ``

``मैं प्राथमिक शाला में शिक्षक हूँ.मुझे सबसे सुंदर छाता बनाने का पहला पुरस्कार घोषित हुआ है. यहां पर सभी हरिफ़ाई के विजेताओं को पुरस्कार देंगे. ``

अब तक बी डी ओ, दो सरपंच व उसके विभाग के दो रीज़नल मैनेजर्स निर्णायकों की कुर्सी पर बैठ चुकें हैं. मंच के सामने भीड़ बढ़ती जा रही है. वह अपने बॉसेस के पास जाकर कहता है, ``सर! यदि कुछ काम हो तो कहिये. ``

``ओ के ``

कार्यक्रम का आरम्भ रबारी पोशाक पहने गले में हरा रूमाल बांधे युवकों के नृत्य से होता है. उसने पहले भी रबारी नृत्य शहर के मंच पर देखा है लेकिन इन गाँवों की युवकों जैसी बेबाक जंगली चपलता व तूफ़ान सी तेज़ी कहाँ? वे जंगली हवाओं की तरफ अपना हरा रूमाल लहरा लहरा कर गोल गोल घूमते नृत्य कर रहें हैं. इसके बाद लड़कियों का लोक नृत्य दल गरबा गा उठता है ;

``घोर अंधारी रे, रातलड़ी में निकला चार अश्वार. ``

पास खड़ा युवक उसे बताने लगता है, ``ये गीत चार अलग अलग देवियों के चार भक्तों के बारे में है. ``

दूसरा लड़कियों का दल नृत्य कर उठता है ;

`` म्हारी महीसागर ने आरे ढोल बागे छे. ``

वह युवक फिर बताता है, ``मेरी महीसागर नदी के किनारे ढोल बज रहा है. ``

अलग अलग गाँवों के दल नृत्य करने मंच पर आ रहे हैं. हड़वाद व सर्रा गाँव के दलों को पुरस्कार मिलता है. कार्यक्रम समाप्त होते ही उसके बॉसेस कहते हैं, ``यू विल कम विद अस. ``परिसर में आते ही वह उन्हें धन्यवाद देता भोजनालय में तेज़ कदमों से पहुँच जाता है. तन्वी के सर व साथी हाथ में थर्मोकोइल की प्लेट व पेपर नेपकिन्स हाथ में लिए लाइन में खड़े हैं. तन्वी कहीं नहीं दिखाई दे रही. क्या उसके भी तबियत -----वह सोचना नहीं चाह रहा. सर के पास जाकर पूछता है, ``सर! तन्वी कहाँ है? ``

``अरे-- उसने तुम्हेँ रिंग नहीं किया? ``

``नहीं, क्या उसकी तबियत ---.``

``ओ नो, वह बिलकुल ठीक है. उसके डैडी अचानक कार लेकर आ गये थे क्योंकि उन दोनों को कल सुबह के प्लेन से कहीं जाना है. ``

``वॉट ? ``

``उसने तुन्हें रिंग नहीं किया आश्चर्य है. ``

``मैं स्टेज पर था.प्रोग्राम के शोर में रिंग नहीं सुनाई दी होगी. ``वह जानता है कि वह ख़ुद को दिलासा दे रहा है.

``वह तुम्हारे टेंट में कोई पैकेट रख गई है और ये पत्र तुम्हारे लिए दे गई है. ``

मेहुल पत्र लेकर भागता सा अपने टेंट में आ जाता है और लाइट जलाकर देखता है कि एक कैरी बैग उसके पलंग पर रक्खा है.वह लिफ़ाफ़ा खोलकर पत्र पढ़ने लगता है, --`डीयर मेहुल! मैं सोच रही थी कि मेले में तुम्हारे साथ घूमते हुए मैं तुम्हें अपने से अलग होने के लिए तैयार करूंगी लेकिन ऐसा हो न सका. मौक़ा ही नहीं मिल पाया.डैडी दो दिन बाद की फ़्लाइट की बुकिंग की कोशिश कर रहे थे लेकिन बुकिंग कल की ही मिल गई तो उन्हें मुझे लेने स्वयं यहां आना पड़ा. तुम्हें याद है न मेरे मम्मी डैडी अपने फ़्रेंड के अमेरिका में रहने वाले ग्रीन कार्ड होल्डर सॉफ़्टवेयर इंजीनियर्स से मेरी शादी करने के लिए कब से कह रहे थे. मैं मान नहीं रही थी. तुम्हें बड़े शहर में सेटल होने में चार पांच लगेंगे, तो मैं अपना कैरियर तब तक कैसे खराब करूँ? यू नो, मेरी अपनी भी एम्बीशियन्स हैं.आई स्टिल लव यू बट ---- तन्वी. `

पत्र पढ़कर मेहुल निढाल सुन्न होते हाथ पैरों से बिस्तर पर बैठ जाता है. ऊपर तक भरा कैरी बैग पलंग पर लुढ़क जाता है ----एक क्रिस्टल के गणेश ---एक गोल मटोल लाफ़िंग बुद्धा --कुछ ईयर रिंग्स ---एक टैडी बीयर --सेंट की शीशी ---एक डॉल ---तीन चार तरह के फ़्रेंडशिप बेंड्स --मेहुल के दिल की तरह ख़ूबसूरत बेहद सुन्दर कार्ड्स ---`डो `नट फ़ॉरगेट मी `,---`टु माई नियरेस्ट वन `, ---`आई लव यू.`---एक विंड चाइम की घंटियाँ कार्ड के ऊपर तीर से बिंधे हुए दिल पर बिखर जातीं हैं ---टन ----टन ---टन.

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