top of page
कुसुम वीर

बात रहती है अधूरी - कविता

पाँखुरों से स्वप्न झरते, नेत्र अश्रु मेह बरसे भीगता है मन धरा सा, पर प्यास रहती है अधूरी

चाह कर कुछ कह न पायी, पीर मन की मन रही अधर खुलते-फड़फड़ाते,बात रहती है अधूरी

प्रेम सागर बह रहा, निरख तट पुलकित हुआ स्पर्श करती लहर उसको, पर आस रहती है अधूरी

स्नेह नयना भर गए, मन प्रेम बाती जल उठी आसक्त है उसमें शलभ, पर, प्रीत रहती है अधूरी

अनुराग की भाषा नहीं, अभिलाषाएँ भी मौन हैं सूनी बीतें विरहा रातें, संवेदनाएँ मुखर हैं साज उर जब बज न पाएँ, रागिनी गाती अधूरी दिल ढूँढता आहट किसी की ख्वाहिशें रहतीं अधूरी

 

कुसुम वीर

kusumvir@gmail.com

0 टिप्पणी

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें

अभिव्यक्ति

लबादे

पिता की पीठ

आपके पत्र-विवेचना-संदेश
 

bottom of page