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रमनदीप सिंह

कुछ चेहरे होते हैं ऐसे...

कुछ चेहरे होते हैं ऐसे जो नजरों से उतर जाते हैं,

बंदिशों की बेड़ियों की तरह दिल में घर कर जाते हैं.

भूलना चाहे मन उन्हें फिर भी जहन से मगर कहाँ जाते हैं,

नाम भी नहीं लेते उनका फिर भी नजरों के सामने आ ही जाते हैं.

कुछ चेहरे होते हैं ऐसे जो नजरों से उतर जाते हैं,

बंदिशों की बेड़ियों की तरह दिल में घर कर जाते हैं.

जिन्हें अपना समझते हैं अक्सर वो ही धोखा दे जाते हैं,

एक तीखी चुभन बनकर नासूर की तरह पल पल सताते हैं,

विश्वासघात करते हैं खुद और हमें ही बार-बार आजमाते हैं.

कुछ चेहरे होते हैं ऐसे जो नजरों से उतर जाते हैं,

बंदिशों की बेड़ियों की तरह दिल में घर कर जाते हैं.

याद है आज भी वो ख़ुशी के पल जो जाके दोबारा फिर न आते हैं,

काश संजो के रखता बंद मुट्ठी में उन्हें,

पर रेत की तरह हाथों से फिसल ही जाते हैं,

बस एक धुंधली तस्वीर बनकर खाली पलों में अपनी दस्तक सुनाते हैं.

कुछ चेहरे होते हैं ऐसे जो नजरों से उतर जाते हैं,

बंदिशों की बेड़ियों की तरह दिल में घर कर जाते हैं.

भागदौड़ में व्यस्त हूँ लेकिन वक्त लगता थम सा गया है,

हालात हैं जो जीने न देते पर संघर्षरत हूँ और जी रहा हूँ,

वक्त बदला, वो भी बदले लेकिन जो था मैं, अब भी वही हूँ.

कुछ चेहरे होते हैं ऐसे जो नजरों से उतर जाते हैं,

बंदिशों की बेड़ियों की तरह दिल में घर कर जाते हैं.

 

मैंने अपनी पहली कविता कक्षा 6 में लिखी। कविता लिखने के साथ साथ मेरी संगीत सुनने और गीत लिखने में भी विशेष रूचि है। वर्तमान में मैं पंजाब में पॉलिटिकल हिंदी लेखक के रूप में कार्यरत हूँ।

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