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  • सुधीर कुमार शर्मा

इंसान न बन सके

हम ना जाने क्यूँ हरे-भरे, ये वृक्ष न बन सके

मानवता में हम इनके, समकक्ष न बन सके

पत्थर के बदले फल देते, फकीर संत न बन सके

विष पीकर श्वासामृत देते, नीलकंठ न बन सके

किसी जीवन के पतझड़ में, बसंत न बन सके

और प्यार के फूलों का, मकरंद न बन सके

जलती उजाले में ढलती, शमा न बन सके

और किसी मासूम भूल की, क्षमा न बन सके

कुंठा की बंद कोठरी में, झरोखा न बन सके

और घुटन में हवा का, झोंका न बन सके

प्यासी धरती की प्यास बुझाता, बादल न बन सके

मन प्राण आत्मा सींचता, गंगाजल न बन सके

ममता से महका धरती का, आँचल न बन सके

प्रेम और विश्वास का, धरातल न बन सके

किसी नन्हे सा सपने का, एक मुट्ठी आसमान न बन सके

रोबोट बनकर रह गये ना जाने क्यूँ, इन्सान न बन सके

द्वारा: सुधीर कुमार शर्मा

C-4/1, A.P.P.M. COLONY

RAJAHMUNDRY- 533105 [A.P.]

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