दो बहनें
उसका नाम प्रीति नही था. उसकी माँ ने तो उसका नाम प्रतिमा रखा था. मगर प्रीति नाम में कुछ अलग ही खनक थी. जब लोग उसे इस नाम से पुकारते थे तो उसे लगता था कि वो भी ख़ूबसूरत है. इसीलिये उसने अपना नाम प्रीति कर लिया था. ऊपर से, वो साल के आख़िरी दिन जो पैदा हुई थी. तारों की साज़िश लगती थी उसे इसमें. उसके पैदा होने का कोई न कोई ख़ास मतलब ज़रूर है. ऐसा उसे लगता था.
लेकिन उसके परिवार की असली हीरोइन शीला थी. उम्र में एक साल उससे छोटी, उसकी बहन, शीला, और कोई नहीं ‘सिल्क-शीला’ के नाम से मशहूर अभिनेत्री थी. देश का चमकता तारा थी वो. शान, शौहरत तो उसके पाँव पर पड़े थे. ओह! क्या नहीं था उसमें!
तो बहन उसकी हवा में उड़ती, आसमान को छूती, बादल जैसी थी, और ख़ुद वो ज़मीन पर पड़ी हुई, उस बादल की स्लेटी परछांई के नीचे दबी हुई, अपनी नीरस ज़िन्दग़ी जी रही थी. ये थी उसकी हक़ीकत. और ये बात उसे काफ़ी सताती थी.
एक दिन अचानक धूप निकल आई. बेचारी शीला एक ख़राब कार-ऐक्सिडैंट में मारी गई. वो एक अजीब हादसा था. लाश घाटी में कहीं गिर गई थी. मिल कर नहीं दी. शीला के लाखों फ़ैन्स की दुनिया में ग़मी छा गई. मायूसी ने उन्हें उसकी इकलौती जीवित बहन की तरफ़ मोड़ दिया. प्रीति के चेहरे में उन्हे अपनी परमप्रिय स्वर्गीय शीला की झलक दिखाई दी. उससे वो शीला ‘मैम’ के बारे में जानना चाहते थे. कैसी थीं वो, उनके बचपन के किस्से, उनकी छोटी-मोटी आदतें, उनकी पसन्दें, नापसन्दें, सब कुछ जानना चाहते थे वो.
आने वाले दिनों और महीनों में प्रीति को लोगों ने अपनी आँखों में बिठा लिया और वो उनके विस्मित ध्यान में लोटने लगी. और तो और, दोनों बहनों का बचपन कैसे व्यतीत हुआ, एक नामी लेखक के साथ किताब लिखने के प्लान्ज़ भी बनने लगे. और केक के ऊपर लगे हुए लाल चैरी के बारे में तो पति सिड हरदम याद दिलाता था. तमाम क़ानूनी कागज़ात पूरे हो जाने के बाद प्रीति को इन्श्योरैंस कम्पनी की तरफ़ से मिला हुआ पैकिज जो मिला था वो कम भारी नहीं था.
अब प्रीति सम्पूर्ण स्वतन्त्रता के साथ एक मिड-लेवल कॉर्पोरेट औरत की ज़िन्दग़ी व्यतीत करने लगी. उसने अपना करियर बड़े धीरज और मेहनत के साथ बनाया था. लेकिन अपनी मशहूर बहन के सामने उसे अपनी सब सफ़लताएँ फीकी लगती थीं. अब वो बहन इस दुनिया में नहीं रही. बस उसकी यादें ही बची थीं और उनकी हिफ़ाज़त करना उसके ज़िम्मे था. और क्या चाहिये था उसे. किस्मत का पासा ख़ुद-ब-ख़ुद गिर कर सही दाने दिखा रहा था. दुनिया में देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं है.
फिर एक दिन ...
लंच में थोड़ी देर थी. प्रीति अपनी असिस्टेंट लतिका को ढूँढ रही थी. डैस्क पर उसे न पा कर उसने अनुमान लगाया कि हो न हो ये प्रोग्राम मैनेजर रैम्बो के ऑफ़िस में गई है. और वाक़ई में, रैम्बो के ऑफ़िस का दरवाज़ा बन्द था. ब्लाइंड्ज़ भी गिरे थे.
“कितना मज़ा आएगा उसकी रोंदी सूरत देखने में जब वो उस रिपोर्ट को पढ़ेगी जो इस वक्त मैं अपने मन में लिख रही हूँ! आई जस्ट कान्ट वेट.” बड़बड़ाते हुए पैर घसीट के वो वापस आ गई. ये काम ऑफ़-कौर्स उसे ध्यान से करना पड़ेगा, क्योंकि जहाँ ऑफ़िस की हियरार्क़ी में टीम का हर सदस्य उसके ‘अन्डर’ था और वे सभी इस बात से डरते थे कि प्रीति मैडम उनकी रिपोर्ट में क्या लिखेंगी, उसकी अपनी रिपोर्ट की इंक रैम्बो के पैन से निकलती थी.
“थोड़ी ताज़ा हवा ले ली जाए,” ये सोचते हुए वो ऑफ़िस से बाहर आ निकली. उस के पास अक्सर ऑफ़िस वालों के साथ शेयर करने के लिये कई सारी रसदार बातें हुआ करती थीं. लेकिन उस दिन वो अलग मूड में थी.
मैं आगे बढ़ गई हूँ. वो सब कैमपेन-शैमपेन जो चलते रहते हैं अन्दर, अब मेरा उनमें शामिल होना शोभा नहीं देता. पदोन्नति की, अकस्मात, अनचाहे ट्रान्सवर की चिन्ताएँ, ये सब पुरानी बातें हो गईं थीं. औरों का अपवाद करना, उनका मज़ाक उड़ाना, बौस के कान में औरों की यकायक पदावनति का कीड़ा डालना, या फिर सहकर्मियों के संग मिलकर किसी एक के चक्कर दिलाने वाले पतन की कल्पना करना, ये सब बातें अब उसे थकानदेवा लगने लगीं थीं.
आज बाहर निकल कर कितना अच्छा लग रहा था. वो पास के एक कैफ़े में अर्ली-लन्च के लिये घुस गई. वेटर गुर्खा था. उसके मुस्कुराते चेहरे की हर शिकन से गर्माहट रिस रही थी. और जब ऑर्डर लेने के बाद वो चला गया, बड़े हिचकिचाते हुए वो चारों ओर देखने लगी. लोगों की उस पर टिकी हुई नज़रों को खोजना, यह उसका नया शौक़ बन गया था. वो सेलिब्रिटी जो बन गई थी. लेकिन उस वक्त कैफ़े खाली था.
फिर भी उसे लगा कि वो एकदम अकेली नहीं है. पीछे से सरसराहट की आवाज़ आई,सिल्क साड़ी की सरसराहट. कोई सिगरेट पी रहा था. सिगरेट की हल्की, मिन्ट वाली बू उस तक पहुँच रही थी, लेकिन वो एकदम से मुड़ कर देख भी तो नहीं सकती थी. चुपचाप कभी अपनी साड़ी की चुन्नटें थपथपा रही थी, कभी यूँ ही बाल कान के पीछे कर रही थी. खाने का इंतज़ार कर रही थी. लेकिन जब सिगरेट के धुँए का अगला बादल अपने साथ एक और महक ले कर आया, एक जानी-सी महक, उसके बदन में जैसे बिजली दौड़ पड़ी. उसने एक गहरी साँस ली. इसमें कोई शक नहीं था कि जो सिगरेट फूँकने वाली महिला उसके पीछे बैठी थी उसने वही परफ़्यूम लगाई थी जो उसकी बहन की पसंदीदा हुआ करती थी. रोज़ सुबह, तैयार होने के बाद, शीला शनैल नम्बर फ़ाइव की पाँच बूँदें ठीक उन-उन जगह लगाती थी जहाँ-जहाँ वो अपने चहेतों से चुम्बन चाहती थी. रोज़! जैसे की ये कोई पवित्र क्रियापद्धति हो.
पहले किसी औरत के ज़ोर से हँसने की, फिर बोलने की आवाज़ आई.
“भगवान मेरे हज़ारों टुकड़े करके मुझे चारों तरफ़ बिखेर दे, लेकिन मेरी अपनी बहन मुझे इगनोर मारे, ऐसा न होने दे.”
प्रीति ने तेज़ी से पलट कर देखा.
सामने बैठी थी सर्वाँग सुंदर, मूर्तिनुमा, हवा में उठीं दो तिरछी उँग्लियों में सिगरेट दबाए, रेशम की साड़ी में बंध, मुस्कुराती, दीप्तिमान उसकी बहन, शीला. बड़े अंदाज़ से उसने अपना सिर एक तरफ़ टेढ़ा किया हुआ था. वो उसे ऐसी नज़र से घूर रही थी, प्रीति को लगा मानों दो छुरियों ने उसे पकड़ के रखा है.
“कितनी भली लग रही हो, मेरी जान.” ऐसा कह कर वो एक लम्बी हँसी हसी. फिर उसने अपने सिगरेट की चुस्की ली. एक बार भी उसने अपनी नज़र प्रीति के चेहरे से नहीं हटाई.
“क्या हुआ माई स्वीटनैस!” अपनी खनकती आवाज़ में बोलती रही. “मुझे देखकर खुश नहीं हुई?”
प्रीति शीला को भौंचक्की नज़रों से देख रही थी. उस से दो टेबल दूर खड़ी थी. अपनी जगह से एक इंच भी टस से मस नहीं हुई. उसका मुँह एकदम सूख गया था. शब्द बनाना ही मुश्किल हो रहा था.
“नहीं तो.” आख़िर मुँह से कुछ निकल ही आया. “हमें तो लगा था...” लेकिन आवाज़ फुसफ़ुसाती हुई ही निकली. “ऐक्सीडैंट...”
शीला ने धूँए की एक पतली धार उड़ाई. “ऐक्सीडैंट? कैसा ऐक्सीडैंट? कोई ऐक्सीडैंट नहीं हुआ था. वो तो मुझे मारने की कोशिश थी. नाकामयाब रही. हूँ न तुम्हारे सामने, माई डार्लिंग.” वो फिर से हँस दी. लेकिन जब प्रीति उससे गले मिलने उसकी तरफ़ बढ़ी, तो उसने अपना हाथ उठा के उसे आगे बढ़ने से रोक दिया. “नहीं. वहीं रहो. तुम्हे क्या लगता है मैं भूल गई हूँ कैसी ऐलर्जी हो जाती है तुम्हे सिगरेट के धूँए से.”
“लेकिन फिर भी,” मुँह से बड़ा सा बादल फूँकते हुए वो बोली, “फिर भी तुम्हारा हर आशिक़ चेन-स्मोकर था. हाऊ आइरौनिक!” फिर हँसना चालू और हँसते ही हँसते उसने अपनी सिगरेट बुझा दी.
प्रीति की नज़रें शीला पर से अब जा कर ही हट पाई थीं और पलक झपकते ही वो अपने अतीत के प्यारे दिनों की यादों में खो गई जब गर्मियों की हर छुट्टियों में दोनों बहनें अपने को किसी नई जगह पाती थीं ... शिमला, नैनीताल, मँसूरी. इनकी मम्मी को असल में हिल-स्टेशन्ज़ बहुत पसन्द थे. जहाँ भी ये बहनें जातीं, कुछ हालात ऐसे व्यवस्थित होते, ये हमेशा अपने चारों तरफ़ अपनी हम-उम्र के नौ-जवानों को पातीं. शीला से तो इन नौ-जवानों को डर लगता था. ये उन्हे घास भी नहीं डालती थी. मगर प्रीति का हर गर्मी में एक नया अफ़साना हो ही जाता था.
“मुझे तुम्हारे सभी आशिक़ पसन्द थे. लेकिन पिन्का सबसे अच्छा था. याद है?”
ख्यालों में खोई प्रीति मुस्कुरा रही थी.
अब भी उसे याद था वो दृश्य. ऊँचाई इतनी थी कि बादल ज़मीन पर आ गए थे. मोटर-साइकलों पर सवार कई सारे नौ-जवान दूर से आते-आते, इन तक पहुँच कर, आगे निकल गए थे. बस एक रुक कर देर तक दोनों बहनों को घूर घूर कर देख रहा था. उसके घूरने में कोई छिंछोरापन नहीं था. ऐसी होती हैं दिल्ली की लड़कियाँ, हैरान, वो तो ये सोच रहा था, बाद में उसने ख़ुद ही ये बात प्रीति को बताई. ये था पिन्का और उन गर्मी की छुट्टियों में पूरा शिमला प्रीति ने उसकी मोटर-साइकल के पीछे बैठ कर देखा.
“हाँ, सभी पसन्द थे, सिर्फ़ आख़िरी वाला कभी नहीं भा पाया. मज़ेदार बात ये है कि बस एक वही स्मोक नहीं करता. जस्ट नौट माई टाइप. काश तुमने उससे शादी नहीं की होती!”
उसने एक और सिगरेट जला ली थी और बड़े ध्यान से प्रीति को देख रही थी.
“सिड में बहुत सी अच्छी बातें हैं. तुमने उसे ठीक से नहीं समझा.”
गहरी साँस लेते हुए वो बोली, “शायद तुम ठीक कह रही हो. लेकिन उसने मेरी कार क्यों टैम्पर की?”
प्रीति का मुँह फक पड़ गया. बड़ी मुश्किल से वो बस इतना ही कह पाई, “ऐसा मत कहो. ये सच नहीं है. सिड तुम्हे बहुत चाहता है.”
“मैं तुम्हे बहुत कन्ट्रोल करती हूँ, यही कह कर वो तुम्हे ले गया था न? अब वो तुम्हे कन्ट्रोल करता है. मुझे लगता है तुम्हे शौक़ है किसी न किसी के कन्ट्रोल में रहने का. गड़बड़ तुममें है प्रीति.”
वो फिर ज़ोर से हँसने लगी. प्रीति को फ़िक्र हो रही थी कि आस-पास वाले कहीं शिकायत न करने लगें. लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा. उसको लगा कि उसकी आवाज़ ही नहीं निकलेगी. बड़ी मुश्किल से वो हिम्मत जुटा पाई. “शीला, ये सच नहीं है कि सिड ने तुम्हारी कार के साथ टैम्पर किया था.”
“सच?” कुर्सी से उठते हुए शीला बोली. “देखो तो. यहाँ मैं बातों में उलझ गई, वहाँ मेरा इन्तज़ार हो रहा है. पता नहीं वो वेटर मेरा दोसा लेकर क्यों नहीं आया. बैठा होगा कहीं, इधर उधर, अपने प्यारे नेपाल के ख्यालों में खोये हुए. ख़ैर, कोई बात नहीं. आज बिना खाने के ही काम चलाना पड़ेगा. तुमसे मैं बाद में मिलूँगी.”
“रुको शीला. तुम यों नहीं जा सकती.”
“तुम्हारी पार्टी में आऊँगी. परसों है न? यूअर बर्थडे बैश.”
प्रीति ने हौंले से अपना सिर हिला दिया.
एक सुंदर हंस की तरह शीला बड़ा बन कर दरवाज़े की तरफ़ जा रही थी. प्रीति ने फिर उसे आधे रास्ते में रोक लिया. “सुनों. क्या तुम वाक़ई में सोचती हो ... मेरा मतलब है, सिड और तुम्हारी कार ... तुम बिना बात के शक कर रही हो ... सोचो, कोई तुम्हे क्यों मारना चाहेगा?”
हवा में सिगरेट ताने हुए, वो अपनी हाई-हील की नोक पर घूम गई. उसने धूआँ फूँका, आँख मारी, फिर बोली, “कई वजहें हो सकती हैं, माई इनोसैन्ट सिस्टर ... पैसा, यश, रौब ... सब की सब काम की चीज़ें हैं, चाहे वो अपनी मेहनत की हों, या किसी और की.” अपनी उँगलियों को चूमते हुए उसने वहीं दूर से प्रीति की ओर एक फ़्लाइंग किस फेंक दी.
“सच, अब और नहीं रुक सकती. काsssम है. तुम्हें मैं कल 10 बजे फ़ोन करूँ?” जवाब का इंतज़ार किये बिना वो चली गई.
वापस मुढ़ने पर प्रीति ने देखा कि उसका खाना कब का आ कर ठंडा भी हो गया था.
“क्या बात है मेम-शाब? खाना अच्छा नहीं लगा? छुआ तक नहीं. कुछ और लाऊँ?”
अगले दिन ऑफिस में प्रीति बड़ी कसमसाहट महसूस कर रही थी. वैसे उसका नम्बर नया था. शीला के फ़ोन के आने की सम्भावना थी ही नहीं. फिर भी, मन बेचैन था. अभी 10 बजे ही थे, कि फ़ोन की घंटी बजनी शुरू हो गई. बहुत सहम के उसने फ़ोन उठाया.
‘हलो!’
उधर से जानी-सी आवाज़ सुनाई दी. इसके पहले वो आगे कुछ कह पाती, पीछे से दो हाथों ने उसके कंधे पकड़ लिये. जब तक वो ये देखने के लिये मुड़ी कि कौन है, फ़ोन ही कट गया.
“ये तुमने क्या किया, सिड. पहले ही वो तुम पर शक करती है, अब तो बात और भी बिगड़ जाएगी.”
“मैं उस औरत पर विश्वास नहीं करता, मेरी जान. तुमने कहा था न कि वो कल आएगी. तो कल ही मिलते हैं. तब जम के बातें करेंगे.”
“लेकिन, तब कितने सारे लोग होंगे. मेरी पार्टी है. भूल गए?”
“पार्टी कैन्सिल करनी पड़ेगी, जानेमन.”
साल का आख़िरी दिन था. शाम के सिर्फ़ 7 बजे थे, फिर भी प्रीति ने सभी नौकरों को छुट्टी दे दी थी. पीछे मन्द स्वर में म्यूज़िक ऑन था. सिड किचिन काऊँटर के बगल में एक ऊँचे स्टूल पर बैठा मार्टीनी की छोटी-छोटी चुस्कियाँ ले रहा था, और पिछले 15 मिनटों से प्रीति की किचिन में आगे-पीछे, आगे-पीछे चलने के कदमताल सुन रहा था. लेकिन उसकी नज़रें बाहर फ़ाटक पर टिकी हुई थीं. प्रीति घड़ी- घड़ी रुकती, आह भरती और उसके कंधे पर अपना सिर रख देती. सिड तब हल्के से उसका सिर थपथपाता, दिलासा देता.
“ओह, कितना अनप्लैज़ेन्ट लग रहा है,” वो कहती.
या कहती, “उसे हमारे मज़े वाले दिन को ख़राब करके क्या मिला? हाऊ सैलफ़िश.”
“तुम्हारे लिये कुछ लाया हूँ, बेबी. ऊपर रक्खा है, बैडरूम में,” कहकर उसने उसका माथा चूम लिया.
शीला अपनी धुन में बोली जा रही थी. “फिर भी, मेरा सोलवाँ जन्मदिन सबसे बैस्ट था. शुरू से अंत तक शीला का प्लान किया हुआ.”
घड़ी ने आठ का घंटा बजाया और वो बोली, “मुझे नहीं लगता वो अब आएगी. चलो किसी की नई साल की पार्टी में ही चलते हैं.” ऐसा कह कर वो ऊपर कपड़े बदलने भाग गई. कमरे में जब उसे ज़्यादा ठंड महसूस हुई, उसे लगा कि सामने वाली खिड़की खुली है. सिड की लापरवाही पर सिर हिलाते हुए वो उसे बन्द करने के लिये बढ़ी तो देखा कि खिड़की तो बन्द थी. इधर उसके नथुनें फड़फड़ाने लगे.
“ये क्या? शनैल नम्बर फ़ाइव! तो ये था मेरा सरप्राईज़?”
वो इसी विचार में डूबी हुई थी जब उसकी नज़र सामने रखी आराम कुर्सी पर पड़ी. शीला उस में धँस के बैठी थी, सिगरेट फूँक रही थी और प्रीति को देखकर मुस्कुरा रही थी.
“मैंने सुना. तुम बता रही थी सिड को अपने सोलवें जन्मदिन के बारे में. तुम्हे याद रहा. दैट वाज़ स्वीट!”
प्रीति उसे फँटी आँखों से देख रही थी. “मैंने तुम्हे अंदर आते हुए नहीं देखा. तुम अंदर कब आई?”
“काफ़ी देर हो गई आए हुए. आँख भी लग गई थी. जगी तब जब तुमने नौकरों को दफ़ा करना शुरू किया.”
सिगरेट का धूँआ हवा में साँप की भाँति उठ रहा था. “ओह यैस! इट इज़ यूअर बर्थडे टुडे. तुम जीयो हज़ारों साल – साल के दिन हों पचास हज़ार!”
“ये तुम किस से बातें कर रही हो, डार्लिंग?” आवाज़ सुनकर, सिड भी आ गया. शीला को देखते ही उसका चेहरा तमतमा उठा.
“तुम?”
“क्यों? चौंक गए.”
सिड कुछ बुदबुदा रहा था, मगर बेचारे की आवाज़ फंस-सी गई थी. शीला का चेहरा भी कुछ उत्तेजित-सा हो गया था.
“तुमने मुझे मारना क्यों चाहा?” तुरंत बोली. “मैंने तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा था.”
“सिड ने ऐसा कुछ भी नहीं किया,” प्रीति घबरा रही थी फिर भी बोले जा रही थी. “मुझे तो यक़ीन नहीं हो रहा है कि मैं चुपचाप खड़े होकर तुम्हारी ये बकवास सुन रही हूँ. तुमको अपने पति से ऐसे बोलने दे रही हूँ.”
सिड पर ही नज़र गाढ़ते हुए शीला बोली, “और तुम कर भी क्या सकती हो?”
फिर गड़गड़ाती आवाज़ में बोली, “जब तक मुझे अपने सवाल का जवाब नहीं मिलेगा, मैं वापस नहीं जाऊँगी.”
सिड अब फिर से आत्मसंयित हो गया था. शीला जो उसी कुर्सी पर वैसे ही आराम से बैठी थी, उसके एकदम सामने आ कर खड़ा हो गया.
“नो बेबी, माई हाऊस, माई रूल्ज़, माई वे! यहाँ बस मेरी चलती है. हमें किसी बात का जवाब देने की ज़रूरत नहीं और तुम भी खुशी-खुशी वापस जाओगी.” ये कह कर उसने अपने वैस्ट-पौकिट से बन्दूक निकाल कर उस पर तान दी और कहा, “और मेरे पास तुम्हे वापस भेजने का बड़ा अच्छा रास्ता भी है.”
वो हँस दिया और उसने दो कदम पीछे ले लिये.
“जल्दी ख़त्म करो, सिड – प्लीज़,” प्रीति ने भी बुदबुदाना शुरू कर दिया.
“पागल हो गई हो क्या?” अपनी घनी बरौनियों के पीछे से शीला उन दोनों को देख रही थी और धीमे-धीमे मुस्कुरा रही थी. “तुम उसे अपनी बहन को मारने दोगी?” ये कह कर उसने फिर अपनी सिगरेट का कश लिया. ये उसकी सिगरेट की आदत काफ़ी बढ़ गई थी. पहले वो सिर्फ़ स्टाइलिश लगने के लिये, कभी- कभार ही सिगरेट फूँकती थी. अब, एक सिगरेट ख़त्म होती नहीं थी, दूसरी जल जाती थी.
सिड ने अपनी उंगली बन्दूक के घोड़े पर घुमाई और अगले क्षण ज़ोर से धमाका हुआ. शीला के मुँह से निकला हुआ आख़िरी शब्द था, “नहीं!”
धूल और धूँए के बादलों में लिपटी हुई, वो चली गई. न कोई चीख निकली, न कोई पुकार, न रोना, लेकिन प्रीति को लगा कि धमाके के बाद उसने उसकी खिंचती हुई आवाज़ ये कहते हुए सुनी - “जब तक मुझे अपने सवाल का जवाब नहीं मिलेगा, मैं वापस नहीं जाऊँगी.”
धूल थम गई. धूँआ खिड़की से बाहर चला गया. न जाने लाश क्यों नहीं मिली
बड़ा अजीब है ये मिया बीबी का जोड़ा! कैसे तुनक-मिजाज़ी हो गए हैं ये. बात-बात में लोगों को काटने को दौड़ते हैं. बेवजह बहस करते हैं. खरगोश की तरह अचानक चौंक जाते हैं, बौराए से घूमते हैं. दोस्त हों या दुश्मन, अब सब इनसे कतराते हैं.
हर साल इनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है. सोना भी कम हो गया है. एक और अजीब आदत है इनकी. किसी को ढूँढते रहते हैं ये. इनको लगता है कि इनके आसपास ही कोई बैठा है. कभी आराम कुर्सी में लेटे हुए, या बार-स्टूल पर बैठे हुए, या किचिन के काऊँटर पर टिके हुए, कोई औरत, ऐंठती, सिगरेट फूँकती, टाँग हिलाती, इन्हें देख रही है, मुस्कुरा रही है, किसी सवाल के जवाब का इंतज़ार कर रही है.