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  • मुक्ता सिंह ज़ौक्की

जीवन के सफ़र में राही ...

सफ़र का ठिकाना जो भी हो, असल में उसे यादगार रास्ते के मुसाफ़िर और तमाम तजुर्बे बनाते हैं. इस अंक की कहानियों का थीम सफ़र ही है.

कितनी बार सुन चुके हैं - जीवन के सफ़र में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को और दे जाते हैं यादें ...

कई बार और सुनेंगे.

असल यात्राएँ, जो बस-अड्डे, ट्रेन-स्टेशन या एयरपोर्ट से शुरू होती हैं अनेकानेक बार दिलचस्प अनुभवों और यात्रियों से हमें मिलाती हैं. इन में से कुछ स्मरणीय भी बन जाते हैं, तन्हाई में तड़पा कर रख देने वाले स्मरणीय न सही, लेकिन अक्सर कहानी के पात्र बनने लायक स्मरणीय बन जाते हैं. इस अंक में प्रस्तुत तीन कहानियों में ऐसे पात्र दिखाई पड़ेंगे.

बाकी दो कहानियाँ जीवन के सफ़र की कहानियाँ हैं. दोनों में राही हैं, यादें हैं, तड़प है.

पिछली बार अनुपमा तिवाड़ी का मन को छू लेने वाला सफ़रनामा पढ़ कर एक नया खंड ही शुरू कर डाला था - जीना इसी का नाम है! लेकिन ये भी लगा था कि पता नहीं फिर कब ऐसा ही कोई प्रेरक वृत्तांत आएगा?

इस अंक में क़ैस जौनपुरी का प्रेरणापद हाल इस खंड की शोभा बढ़ा रहा है ...

एनजॉय!

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