top of page

मैंने तो बस इतना जाना

  • कुसुम वीर
  • 9 जून 2018
  • 1 मिनट पठन

लोलुप्सा का मन सागर गहरा, सुषुप्त रही आध्यात्म की गीता धूल भरी आँधी सा यौवन, चट आया और पट था रीता तेरी-मेरी करता सब जन, मोह-माया के जाल में फंसता इच्छाओं की गठरी भारी, कुंठाओं का आँगन बढ़ता

पतझड़ में ज्यों पात हैं झड़ते, तैसे ही जीवन का ढलना बुद्धि के वृत वातायन से, झाँक रहा अंतर का कोना

प्रेम सुधा सरसा तू बन्दे, साथ न तेरे कुछ भी जाना कोई यहाँ पर खड़ा अकेला ढूँढ रहा है साथी अपना

माटी का सब खेल यहाँ पर, माटी जीना, माटी मरना सुःख-संतोष है सबसे बढ़ कर, मैंने तो बस इतना जाना बूँद रक्त न बहे धरा पर, इंच-इंच टुकड़े की ख़ातिर वैर-विद्वेष न उपजे उर में, नेकी का तू बाँट खजाना

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating

आपके पत्र-विवेचना-संदेश
 

ई-मेल में सूचनाएं, पत्रिका व कहानी पाने के लिये सब्स्क्राइब करें (यह निःशुल्क है)

धन्यवाद!

bottom of page