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सुशील यादव

डी-मौनिटाईज़ेशन पर एक व्यंग लेख - पंडित जी

पंडित जी

उनको लाइन में देख के अचरज हुआ |

कल उनके प्रवचन पर मुग्ध हुआ था |

मुग्ध होने का विचार मुझे कभी-कभी आता है|

नोट के लिए रोज ब रोज लाइन हाजिर होते थक गया था|

मैं अक्सर अपनी थकान को स्थिर करने के लिए, बिना सर-पैर वाली निरर्थक बातों की तरफ ध्यान ले जाने की कोशिश करता हूँ | ऐसे में टी वी पर कभी हिंदी सीरियल ,कॉमेडी शो ,या कभी ‘बाबाओं’ के प्रवचन में घुस जाना. ध्यान भटकाने का अच्छा सबब होता है| लाइव- बाबाओ को मैं, निरपेक्ष भाव से सुनना पसन्द करता हूँ |यानी उस भाव से, जिसमे सुनने वाले को कुछ हासिल हुआ न लगे ,फकत टाइम पास |

कल वे मजे से भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का बखान कर रहे थे |भगवत गीता के सन्देशों- उपदेशों को जीवन में उतारने की बात कर रहे थे|नोटों की महिमा का बखान रहे थे | ये नोट जो महज एक कागज है,जिसे सरकार ने भी ८/११ से 'लीगल टेण्डर' होने से इनकार कर दिया है,उसके लिए क्या मोह करना ...?यहां बहुत से भाई-बहन अपने नोट के अचल हो जाने के दुःख से दुखी हो कर आये होंगे, उन्हें ये बता दूँ ,जैसे आप कुल्फी खाते वक्त हाथ नीचे को रखते हो ,बिलकुल वैसी ही सहज प्रतिक्रिया है | हम नोट के नीचे से हाथ हटाना नहीं चाहते|नीचे टपक गया तो ....?इस टपकने के भय को पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में जाने-अनजाने सौपते हैं|नोट सहेजने की हमारी प्रवित्ति घर से शुरू हो जाती है |ये ट्रेनिंग नोट को ‘चोर-पाकिट’ बना के छुपा रखने की होती है|तरह-तरह के उपाय और हिदायतों का बखान होने लगता है. जब बच्चे को ट्रेन या बस से दूर दराज जाने की नौबत आती है | रुपयों को सम्हाल के रखना ,पाकेटमार, चोर- उचक्के, सूंघ के जान लेते हैं, मतलब की चीज कहाँ है |इसे मोज़े में या किसी इनर-पाकेट में छूपा ले|अंडर-वीयर में चोर-पाकिट बना के रख|पेण्ट के खीसे से कोई भी उड़ा देगा|आप पति हैं, तो उलाहनाओं का बोझ ज्यादा भारी होगा|देखो,सम्हल के रहियेगा ,कोई भी आपको बुद्धू बना देता है|पति चाहे करोड़ों का घूस खाये बैठा हो मगर पत्नी की नजर में नोट को सम्हाल के रखने में,उसे लापरवाह घोषित करना वे जरूरी समझती हैं |

पंडित जी का प्रवचन जारी था| धन का संग्रह करना और उसकी रक्षा के लिए, सांप बन के कुंडली मार के बैठ जाना किसी भी धर्म में अपराध की श्रेणी में नहीं गिना गया है|राजे- महाराजे इस धन और संपदा लिए इसे लड़ाइयां लड़ते आये हैं |लाखों लोगों को मारकाट कर वे खून बहाते थे|खजाने को लूटने के लिए कोई तैमूर, कोई गजनवी बन के अपने देश में, दूर देशों से लुटेरे भी आये |गीता में धन की इस अपार लालसा ,माया- मोह के बारे में भी अनेक बातें कही गई हैं ,इसे मैं अगले प्रवचन में बताने की कोशिश करुगा |

प्रवचनकर्ता पंडितो की खासियत होती है ,बीच सस्पेंस में बात को ख़तम कर दे जिससे अगले प्रवचन में आने की उत्सुकता बनी रहे,ठीक अपने देशी सीरियल की तरह ....|

अगले दिन ऐ टी एम की लाइन में उनके ठीक पीछे मैं खड़ा था,उनसे पूछा आज सुबह सबेरे आप यहां लाइन में ...? प्रवचन का क्या हुआ महराज ....?

वे कहने लगे ,सारे यजमान को नोटों की पड़ी है, वे भी लाइन में लगे होंगे|प्रवचन में लोगों की गिनती कम थी, सो आयोजको ने केंसिल कर दिया|इधर चढावा भी कम आने लगा था जिससे माइक वालों का खर्च निकालना मुश्किल हो गया था |

मैंने कहा पंडित जी आपका क्या होगा ....?

सब प्रभु की माया है यजमान ....,दो चार-हजार पड़े हैं, देखें गाडी कब तक खिंचती है... ?

मुझे, कल के दिव्य-पुरुष और आज के दयनीय-ब्राम्हण में जमीन-आसमान का फर्क नजर आ रहा था |

वे कहने लगे,बेटे को इंटरव्यू के लिए नजदीक के शहर में जाना है ,तत्काल हजार पाँच सौ की जरूरत थी सो लाइन में लगे हैं|अब पंडिताई में कुछ रखा नहीं है |बेटे को कम से कम कहीं कोई क्लर्की मिल जाए तो गंगा नहा लें|मैंने पूछा कब है ट्रेन ... वे बोले बस दो घण्टे बाद ही उसे रवाना करना है |

तभी भीड़ बिखरने लगी ,लोग चिल्लाने लगे क्या ख़ाक देश चलेगा ....? एक ऐ टी ऍम तो चल नहीं पाता ..... लोगो का गुस्सा ए टी ऍम में नोट खत्म होने से फूटा पड़ा था |

कल प्रवचन में नोटों को हाथ की मैल और न जाने क्या-क्या बताने वाला पंडित, हाथ मलते खड़ा था|मै उसकी कातर दृष्टि से बचने की कोशिश में लगा था | मेरी नजर में उसके बच्चे का ट्रेन छूटना दिख रहा था|तब मैं मन ही मन हिसाब लगा रहा था, मिनिमम पाँच सौ में वो मजे से इंटरव्यू दे के लौट सकता है|पर्स में पहले के निकाले छै सात सौ थे ,पाँच निकाल के पंडित जी को दे दिया|मुझे ये समझ भी आ रहा था बाम्हन को दिया ,कुछ लौटता नहीं ....| पंडित मेरे पैरों की तरफ झुकने को हुए, मैंने बीच से उन्हें उठाते हुए कहा ,अरे ये पाप आप मुझपे क्यों लाद रहे हो .....?जल्दी कीजिए ट्रेन न निकल जाए |

सुशील यादव

न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)

०९४०८८०७४२०

5.1.2017

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