जब अनुनय - विनय - चीत्कार सुने न जाते हों ,
जब रह रह कर असहायों की लाशें आती हों ,
जब देश - राज्य में अशान्ति - सी छायी हो,
तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -
कवि तुम वो लिखना !
जब चहुँओर वीभत्स नज़ारा दिखता हो ,
जब उन्नति का कोई मार्ग नज़र न आता हो ,
जब जुगनू भी अन्धकार में खो - सा जाए ,
तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -
कवि तुम वो लिखना !
जब भाई से भाई का दुश्मनी नाता हो ,
जब अग्रज - अनुज का अंतर समझ न आता हो ,
जब कलह महासमर - सी तीखी हो जाए ,
तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -
कवि तुम वो लिखना !
जब मन अंतर्द्वंदो में उलझा जाता हो ,
जब अनुचित - उचित कहीं न देखा जाता हो ,
जब चिन्गारी इक विभीषिका - सी हो जाए ,
तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -
कवि तुम वो लिखना !
जब क्लेशों के मेघ उमड़ते जाते हों ,
जब शर - सम - शब्द नुकीले होते जाते हों ,
जब कलम बगावत करने पर आ जाए ,
तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -
कवि तुम वो लिखना !
- नितिन चौरसिया
शोध छात्र
लखनऊ विश्वविद्यालय
मेरा नाम नितिन चौरसिया है और मैं चित्रकूट जनपद जो कि उत्तर प्रदेश में है का निवासी हूँ । स्नातक स्तर की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से करने के उपरान्त उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय से प्रबंधन स्नातक हूँ । शिक्षण और लेखन में मेरी विशेष रूचि है । वर्तमान समय में लखनऊ विश्वविद्यालय में शोध छात्र के रूप में अध्ययनरत हूँ ।