दो ग़ज़लें :
पहचानता है यारो, हमको जहान सारा
हिंदोस्ताँ के हम है, हिंदोस्ताँ हमारा
यह जँग है हमारी, लड़ना इसे हमें है
यादें शहादतों की देंगी हमें सहारा
इस मुल्क के जवाँ सब, अपने ही भाई बेटे
करते हैं जान कुर्बाँ, जब देश ने पुकारा
मिट्टी के इस वतन की, देकर लहू की ख़ुशबू
ममता का क़र्ज़ सारा, वीरों ने है उतारा
जो भेंट चढ़ गए हैं, ज़ुल्मों की चौखटों पर
कुर्बानियों से उनकी, ऊंचा है सर हमारा
लड़ते हुए मरे जो, उनको सलाम 'देवी'
निकला जुलूस उनका, वो याद है नज़ारा
सुब्हदम तू जागरण के गीत गाती जा सबा
जागना है देश की ख़ातिर बताती जा सबा
चैन से रहने नहीं देते हमें फ़िरक़ा परस्त
पाठ उन्हें अम्नो-अमां का तू पढ़ाती जा सबा
दनदनाती फिर रही है घर में गद्दारों की फ़ौज
भाईचारे की उन्हें घुट्टी पिलाती जा सबा
बँट गये हैं क्यों बशर, रिश्ते सलामत क्यों नहीं
ये उठी दीवार जो उसको गिराती जा सबा
बेयक़ीनी से हुए हैं दिल हमारे बदगुमां
गर्द आईनों पे जो छाई, हटाती जा ज़रा
उनका जलना, उनका बुझना तय करेगा तेरा रुख़
आस के दीपक बुझे हैं, तू जलाती जा सबा
जादए-मंज़िल पे छाई तीरगी ही तीरगी
हो सके तो इक नया सूरज उगाती जा सबा
देवी नागरानी
jaihind