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  • डॉ कुलवंत सिंह

आज से 88 वर्ष पूर्व, इस दिन, तीन कहानियाँ खत्म हुई थीं, या एक नया अध्याय शुरू हुआ था -भगत सिंह की कह

शहीद-ए-आजम भगत सिंह

भारत माता जब रोती थी, जंजीरों में बंध सोती थी .

पराधीनता की कड़ियाँ थीं, जकड़ी बदन पर बेड़ियाँ थीं .

देश आँसुओं में रोता था, ईस्ट इंडिया को ढ़ोता था .

भारत का शोषण होता था, नैसर्गिक संपत्ति खोता था .

दुर्दिन के दिन गिनता था, हर साल अकाल को सहता था .

अंग प्रत्यंग जब जलता था, घावों से मवाद रिसता था .

बंदी बन नतमस्तक माता, देश की हालत बदतर खस्ता,

हर पल था अंधियारा छलता, सहमी रहती थी जब जनता .

आँसू जलधर से बहते थे, सहमे सहमे सब रहते थे,

यौवन पतझड़ सा सूखा था, सावन भी रूखा रूखा था .

भारत भू का कण-कण शोषित, त्रास यातना से अपमानित,

’कल्याण-भूमि’ आतंकित थी, निज स्वार्थ हेतु संचालित थी .

राष्ट्र हीनता से जकड़ा था, दीन दासता ने पकड़ा था .

मृत्यु प्राय सी चेतनता थी, स्तब्ध सिसकती मानवता थी .

अवसाद गरल बन बहता था, स्वाभिमान आहत रहता था .

गौरव पद तल त्रासित रहता, झुका हुआ था अंबर रहता .

निष्ठुर क्रीड़ा खेली जाती, अनय अहिंसा झेली जाती .

धन संपत्ति को लूटा जाता, ब्रिटिश राज को भेजा जाता .

हिम किरीट की सुप्त शान थी, पुरा देश की लुप्त आन थी,

राष्ट्र खड़ा पर शिथिल जान थी, सरगम वंचित अनिल तान थी .

विषाद द्रवित नही होता था, वेदन में आँसू घुलता था,

आवेग प्रबल उत्पीड़न था, विवश कसमसाता जीवन था .

कलरव जब कर्कश लगता था, नत दिव्य भाल जब दिखता था,

आकाश झुका सा लगता था, चिर ग्रहण भाग्य पर दिखता था,

युगों युगों से गौरव उन्नत, हिम का आलय झुका था अवनत,

विषम समस्या से था ग्रासित, विकल, दग्ध ज्वाला से त्रासित .

’पुण्य भूमि’ जब मलिन हुई थी, पद के नीचे दलित हुई थी .

’तपोभूमि’ संताने व्याकुल, व्याल घूमते डसने आकुल .

हीरे, पन्ने, मणियां लूटीं, कलियाँ कितनी रौंदी टूटीं .

आन देश की नोच खसोटी, कृषक स्वयं न पाये रोटी .

चीर हरण नारी के होते, भारत निधियां हम थे खोते .

वैभव सारा लुटा देश का, ध्वस्त हुआ सम्मान देश का .

बाट जोहते सब रहते थे, तिमिर हटाओ सब कहते थे .

भाव हृदय में सदा मचलते, मौन परंतु सब सहते रहते .

धरती माँ धिक्कार रही थी, रो रो कर चीत्कार रही थी .

वीर पुत्र कब पैदा होंगे ? जंजीरों को कब तोड़ेंगे ?

’जन्मा राजा भरत यहीं क्या ? नाम उसी से मिला मुझे क्या ?

धरा यही दधीच क्या बोलो ? प्राण त्यागना अस्थि दान को ?

बोलो बोलो राम कहाँ है ? मेरा खोया मान कहाँ है ?

इक सीता का हरण किया था, पूर्ण वंश को नष्ट किया था !

बोलो बोलो कृष्ण कहाँ है ? उसका बोला वचन कहाँ है ?

धर्म हानि जब भारत होगी, जीत सत्य की फिर फिर होगी !

अर्जुन अब कब पैदा होगा, भीम गदा धर कब लौटेगा ?

पुण्य भूमि बेहाल हुई क्या ? वीरों से कंगाल हुई क्या ?

नृपति अशोक चंद्रगुप्त कहाँ ? मर्यादा भारत लुप्त कहाँ ?

कहाँ है शान वैशाली की ? मिथिला, मगध, पाटलिपुत्र की ?

गौतम हो गये बुद्ध महान, इस धरती पर लिया था ज्ञान .

दिया कितने देशों को दान, संदेश दबा वह कहाँ महान ?

इसी धरा पर राज किया था, विक्रमादित्य पर नाज किया था .

जन्मा पृथ्वीराज यहीं क्या ? कर्मभूमि छ्त्रपति यही क्या ?

चेतक पर घूमा करता था, हर पत्ता, बूटा डरता था .

घास की रोटी वन में खाई, पराधीनता उसे न भाई .

जुल्मों की तलवार काटने, भारत संस्कृति रक्षा करने .

चौक चाँदनी शीश कटाया, सरे - आम संदेश सुनाया .

चिड़ियों से था बाज लड़ाया, अजब गुरू गोबिंद की माया .

धरा धन्य थी उसको पाकर, देश बचाया वंश लुटाकर .

वही धरा अब पूछ रही थी, रो रो कर अब सूख रही थी .

लौटा दो मेरा स्वाभिमान, धरती चाहती फिर बलिदान .

पराधीन की कड़ियाँ तोड़ो, नदियों की धारा को मोड़ो .

कोना कोना भारत जोड़ो, हाथ उठे जो ध्वंश, मरोड़ो .

सिंह नाद सा गुंजन करने, तूफानों में कश्ती खेने .

वह अमर वीर कब आयेगा ? मुझको आजाद करायेगा !

हर बच्चा भारत बोल उठे, सीने में ज्वाला खौल उठे .

हर दिल में आश जगाये जो, भूमि निछावर हो जाये जो !

हर-हर बम-बम जय घोष करो, अग्नि क्रांति की हर हृदय भरो .

नर - नारी सब तरुण देख लें, करना आहुति प्राण सीख लें !

बहुत हुआ अब मर मर जीना, अनुसाल दासता की सहना .

संभव वीर न भू पे लाना ? ताण्डव शिव को याद दिलाना !

हृदय विदारक दारुण क्रंदन, परम पिता ने कर आलिंगन,

परम वंद्य आत्मा आवाहन, भारत भेजा अपना नंदन .

बंगा लायलपुर जनपद में, किसन, विद्यावती के घर में,

ईशा सन उन्नीस सौ सात, सितंबर सत्ताइस की रात .

जन्म पुण्य आत्मा ने पाया, क्रांतिकारियों के घर आया .

स्वतंत्रता के चिर सेनानी, कुटुंब की थी यही कहानी .

सूर्य एक दमका था जग में, भारत माता के आंगन में .

भाग्यवान बन आया था सिंह, दादी बोली नाम भगत सिंह .

दादा अर्जुन सिंह वरदानी, तीन पूत, तीनों सेनानी .

कूट कूट वीरता भरी थी, सत्ता भी सहमने लगी थी .

पिता किसन सिंह की लड़ाई, ’भारत - सोसायटी’ बनाई .

उन पर डाले कई मुकदमें, काटे ढ़ाई वर्ष जेल में .

वर्ष और दो नजरबंद थे, गतिविधियों में पर दबंग थे .

डर कर चाचा अजीत सिंह से, रंगून जेल भेजा यहाँ से .

दूजे चाचा स्वर्ण सिंह थे, लाहौर सेंट्रल जेल बंद थे,

सही यातना, पर किया न गम, सहते सहते तोड़ दिया दम .

दिखे पूत के पाँव पालने, घर संस्कृति और माहौल ने,

बीज किये तन मन में रोपित, देश प्रेम से अंतस शोभित .

खेल खेल में टीम बनाते, अंग्रेजों को मार भगाते .

बने सभी बच्चों के लीडर, गाते गीत गदर के जी भर .

चाची जब यादों में रोती, मै हूँ ! चाची तूँ क्यों रोती ?

गोरों को मार भगाऊँगा, चाचा को वापिस लाऊँगा .

खेल खेलता बंदूकों के, रोपे धरती घास के तिनके .

नंद किशोर मेहता आये, पूछे बिना वह रह न पाये .

’बाल भगत! यह क्या करते हो ? धरती तिनके क्यों बोते हो ?’

’धरती बंदूक उगाऊँगा, क्रांतिकारियों को बाटूँगा .

राष्ट्र को स्वतंत्र कराऊँगा, जन-जन में प्राण जगाऊँगा .’

बात भगत की सुन दिल झूमा, गले लगा कर माथा चूमा .

गोरों का युग निकृष्ट प्रहार, जगती का क्रूरतम संहार .

नि:शस्त्र सभा जलियाँवाला कई सहस्त्र को भून डाला .

बारह वर्ष की थी अवस्था, सुना बगत का ठनका मत्था .

वह पैदल बारह मील चले, जलियाँ वाला बाग में पहुँचे .

रक्त रंजित मिट्टी उठाकर, चूमा उसको भाल लगाकर .

शीशी में संभाल सहेजना, प्राण प्रतिज्ञा से अराधना .

कदम जवानी धरा भगत ने, दादा, दादी, माँ, चाची ने,

कहा सभी ने मिल इक स्वर में, बाँधो इसको अब परिणय में .

घर में पहले बात छिड़ी थी, गली गाँव फिर घूम चली थी .

यौवन में पग रखता जीवन, मधुर उमंग से खिलता तन मन .

मंद पवन जब मधु रस भरता, दर्पण यौवन रस निहारता .

तन मन कलियाँ मादक खिलतीं, प्रेम लहर जब लह-लह चलती .

शबनम जब आहें भरती है, खुशबू भीनी सी उठती है .

लेते अरमाँ जब अंगड़ाई, प्रीत वदन दिल में शहनाई .

फूल करें जब दिल मतवाला, प्रेम सुधा का छलके प्याला .

गान बसंती हृदय सुनाता, तन मन को आह्लादित करता .

झन झन कर झंकार हृदय में, पायल सी खनकार हृदय में .

खन-खन खनकें चूड़ी कंगन, तन मन में उपजे प्रीत अगन .

उद्दाम प्रेम की सहज राह, सुवास कुसुम नैसर्गिक चाह .

रूप आलिंगन मधु उल्लास, नव यौवना की बाँह विलास .

यौवन देखे बस सुंदरता, जगती में बिखरी मादकता .

प्रेम पींग ले काम हिलोरें, छोड़ें मनसिज बाण छिछोरे .

बात भगत जब पड़ी कान में, बांध रहे परिणय बंधन में .

खिन्न हुआ, यह कर्म नही है, शादी मेरा धर्म नही है .

गुलाम देश है भारत मेरा, कर्तव्य पुकार रहा मेरा .

माता मेरी जब बंदी हो, न्याय व्यवस्था जब अंधी हो .

हथकड़ियाँ हों जब हाथों में, बेड़ी जकड़ी जब पाँवों में .

बोल मुखर जब नही फूटते, पथ सच्चों को नही सूझते .

बहनों का सम्मान न होता, अपमान जहाँ पौरुष होता .

प्रतिकार शक्ति छीनी जाती, सच्चाई धिक्कारी जाती .

आँसू भय से नही टपकते, हाय दीन की नही समझते .

आलोक जहाँ छीना जाता, अभिमान जहाँ रौंदा जाता .

सिंदूर जहाँ मिटाये जाते, दीपक जहाँ बुझाये जाते .

दुर्दिन को जब देश झेलता, बढ़ी दरिद्रता नित्य देखता .

प्रकृति संपदा भारत खोता, दुर्भिक्ष के दिन रोज सहता .

आह, कराहें सुनी न जाती, पीड़ा, आँख से बह न पाती .

पराधीनता श्राप बड़ा है, दूजा कोई न पाप बड़ा है .

देश गुलामी में जकड़ा है, जैसे गर्दन को पकड़ा है .

कर्तव्य सर्वप्रथम निभाना, देश को आज़ादी दिलाना .

शादी की अब बात न करना, परिणय का संवाद न करना .

देश गुलामी में जब तक है, एक मृत्यु को मुझ पर हक है .

कोई नही बन सकती पत्नी, मौत सिर्फ हो सकती पत्नी .

देश प्रेम का ज्वार भरा था, रोम - रोम अंगार भरा था .

मन में शोले भड़क रहे थे, स्वतंत्रता को तड़प रहे थे .

प्रचण्ड शक्ति संचित कर भाल, सत्ता को चुनौती विकराल .

पवन को भर कर अपनी श्वास, पावक उगलने का विश्वास .

कड़क विहंसती विद्युत धारा, टूट पड़ा अंबर घन सारा .

अंग अंग अभिमान तरंगें, लहराये नगर नगर तिरंगे .

युग का गर्जन बन कर आया, सिंधु प्रलय वह भीषण लाया .

राष्ट्र दर्प हुंकार लगाई, ललाट लालिमा लहू सजाई .

काल कपाल कराल कामना, सत्ता सिमटे सिंह सामना .

भीतर भभक भर भुजा भुजंग, धधकाई धरती धड़क धड़ंग .

अंबर पर आग लगाने को, कंपित धरती कर जाने को,

पीड़ा की आह मिटाने को, जब्ती को तोड़ जगाने को .

झंझा झकझोर जमाने को, लहरों पर नाव चलाने को,

तूफानों पर चढ़ जाने को, प्रचण्ड विरोध दिखलाने को .

भीषण अंगार जलाने को, जंजीरों को पिघलाने को,

वाणी देने मौन क्रोध को, अपमानों के गरल घूँट को .

जुल्मों से लोहा लेने को, सत्ता गोरी मटियाने को,

बन जुनून सर चढ़ जाने को, भारत भर में छा जाने को .

देखो देखो वह आया है, क्रांति भगत सिंह ले आया है .

सच्चा सपूत अब आया है, क्षितिज शौर्य फिर फहराया है .

ध्वनित हुए फिर राग प्रभाती, जन-जन में थी आशा जागी .

सुप्त राष्ट्र में प्राण भर गये, इंकलाब के गीत बस गये .

बन आँधी ललकार लगाई, अंग्रेज़ों की नींद उड़ाई .

हर सपूत में ज्योत जलाई, भारत माँ को आश जगाई .

बही हवा वो आँधी की जब, धधकी ज्वाला नगर नगर तब .

चिनगारी बन तरुण हृदय हर, क्रांति ज्योति की फैली घर-घर .

मिली ज्योत से ज्योत अनेकों, आँधी बन गई तूफाँ देखो .

गाँवों, नगरों, देहातों में, विजय पताका सब हाथों में .

साइमन कमीशन जब आया, विरोध सभी ने था जताया .

लाठी चार्ज जम कर कराई, लाला जी ने जान गवाई .

ठान लिया था बदला लेना, अधीक्षक सांडर्स को उड़ाना .

क्रांतिकारियों के संग मिलकर, मारा उसे गोली चलाकर .

यौवन को अंगार बना कर, मुकुट अभिमान देश सजाकर,

क्रांति में नई जान फूँक दी, अखिल राष्ट्र टंकार छोड़ दी .

धुन के पक्के मतवाले जब, चलते हैं तो फिर रुकते कब ?

पथ में काँटे, पग में छाले, विजय प्राप्ति तक चलने वाले .

गठन ’नौजवान भारत सभा’, भर राष्ट्र प्राण आलोक प्रभा .

नस-नस में ज्वाला भभक रही, ले अभय जवानी धधक रही .

विष जो सत्ता ने बोया था, सिंह जहर उगलने आया था .

जो दारुण दर्द दबाया था, वह दर्द मिटाने आया था .

बाँध कफन को निकला घर से, सत्ता सहम गई थी डर से .

तैरा तूफाँ पर मरदाना, चला सुनामी पर दीवाना.

नियति ने की थी घड़ी जो नियत, कण कण जिसके लिये था सतत .

निशि दिन देखते कब से राह, अरुण उदय होता नित ले चाह .

चंद्र किरण फिर, लगे चमकने, नभ में तारे, लगें दमकने .

महक कब भरेगी फिर से पवन ? आँचल फिर कब खिलेंगे चमन ?

उस क्षण को था बेचैन सागर, उस पल को था बेताब अंबर .

सुरभि मंजरी फिर से चाहे, कल कल सरिता बहना चाहे .

भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त ने, पूर्ण विश्व को जागृत करने .

सत्ता को झकझोर डालने, सुप्त प्राणों में जान डालने .

युग युग का संदेश सुनाने, जन जन को विश्वास दिलाने .

सूखे दीपों में घृत डालने, हृदयों में अंगार बाँटने .

देश - भक्ति की धार बहाने, नयी विभा की चमक जगाने .

जड़ता में चेतनता लाने, किरणों को आलोक दिलाने .

नस नस में लावा दौड़ाने, रोम रोम ज्वाला भड़काने .

अवनत भाल अभिमान दिलाने, झुके गगन का शीश उठाने .

सेंट्रल असेंबली सभागार, दो बम फोड़े लगातार .

मकसद तीनों काल हिलाना, नहीं किसी की जान को लेना .

इंकलाब के नारे लगाये, बिना अपनी पहचान छुपाये .

डटे रहे वह उसी जगह पर, खुश थे अपनी गिरफ्तारी पर .

भारत भू ने किया अभिसार, अंबर को फिर मिला विस्तार .

विभा गर्व से झूम रही थी, दबी आग फिर मचल उठी थी .

जन जन में विश्वास था लौटा, अभी अंत सत्ता का होगा .

सृष्टि कर रही अमर श्रृंगार अखिल विश्व का बना सुकुमार .

भारत माँ का सच्चा सपूत, हर माँ का वह बन गया पूत .

संदेश सुनाने ईश - दूत, आया था बन कर वीर पूत .

सबकी आँखों का तारा था, देश - भक्ति का वह नारा था .

जन जन के दिल को प्यारा था, छटने लगा अब अंधियारा था .

गूँज उठा घर घर भगत सिंह, राष्ट्र भक्ति प्रतीक भगत सिंह .

सागर का गर्जन भगत सिंह, सृष्टि का श्रृंगार भगत सिंह .

जनता का विश्वास भगत सिंह, वीरों का उल्लास भगत सिंह .

प्रलय का आधार भगत सिंह, कण-कण में साकार भगत सिंह .

मूकों की चिंघाड़ भगत सिंह, युग-युग की हुंकार भगत सिंह .

रुदन का प्रतिकार भगत सिंह, शक्ति का अवतार भगत सिंह .

अरुण का आलोक भगत सिंह, किरणों का प्रकाश भगत सिंह .

अंगारों का ताप भगत सिंह, भारत का सरताज भगत सिंह .

युवकों का आदर्श भगत सिंह, हृदयों का सम्राट भगत सिंह .

हर कोख की चाहत भगत सिंह, शहादत की मिसाल भगत सिंह .

मुकदमें की जब चली कहानी, खुद अपनी पैरवी की ठानी .

इंकलाब को देने रवानी, जन-जन क्रांति धूम मचानी .

सोच समझ कर चाल चली थी, अंग्रेजों को खूब खली थी .

नवज्योति की ज्वाला जली थी, घर-घर में वह फैल चली थी .

भारत भू का कण कण दीपित, पूर्ण राष्ट्र में क्रांति प्रज्ज्वलित .

भयभीत तिमिर था भाग रहा, भाग्य भारती का जाग रहा .

अवसर आया सब कहने का, अपनी बातें दोहराने का .

सकल विश्व को बात सुनाई, अंग्रेज़ों की नींद उड़ाई .

भारत में चेतनता लायी, ज्वालामुखी ने ली अंगड़ाई .

सकल विश्व को किया अचंभित, सृष्टि देखती थी स्तंभित .

ले हथेली शीश था आया, नेजे पर वह प्राण था लाया .

अभिमानी था, झुका नही था, दृढ़ निश्चय था, रुका नही था .

लाहौर जेल में कैदी थे, क्रांतिकारी कई बंदी थे .

जेल की हालत बद बेहाल, सुविधायें खाना बुरा हाल .

जेल में ठानी भूख हड़ताल, बने सत्ता का जी जंजाल .

ऐतिहासिक वह भूख हड़ताल, सबसे लंबी भूख हड़ताल .

चौंसठ दिन का वह अनशन था, सरकार को झुकना पड़ा था .

अनशन में साथी को खोया, जतिनदास पर जग था रोया .

पुण्य धरा पर अर्ध्य चढ़ाकर, कुरबानी का रक्त चढ़ाकर .

अखण्ड रोष का नाद सुनाकर, यौवन को भूचाल बनाकर .

देश भक्ति का रंग लगाकर, प्रेम बीज से पेड़ उगाकर .

निज यौवन को लपट बनाकर, जीवन को संग्राम बनाकर .

स्वतंत्र भू का स्वप्न सजाकर, प्रचण्ड अग्नि तन मन लगाकर,

माटी खुशबू श्वास बसाकर, प्राणों को रथ प्रलय बनाकर .

पीड़ा को आघात बना कर, क्रूर काल को ग्रास बनाकर,

पराधीनता चिता सजाकर, विजय पताका भू लहराकर .

घर-घर में सिंह भगत समाया, हर जुबां पर नाम वह आया .

सत्ता सहम गई थी डर से, शासन उखड़ गया था जड़ से .

नाम भगत सिंह जब जब आता, रोम - रोम संचार वीरता .

सत्ता थर - थर थी थर्राई, भगत सिंह से थी घबराई .

भगत भाई कुलबीर सिंह थे, भगत सिंह जब जेल बंद थे,

कुलबीर ने दिखाये रंगे थे, गतिविधियां देख सभी दंग थे .

’नौजवान भारत सभा’ भार, अपने कंधों पर लिया भार .

खूब निभाई जिम्मेदारी, लोहा लेने की थी बारी .

गोरों का इक समारोह था, किंग जार्ज पर उत्सव था .

पूरे शहर की बिजली काटी, समारोह को जगमग बाँटी .

कुलबीर का आक्रोश भड़का, वह भाई भगत की राह चला .

उत्सव की बिजली को रोका, दस वर्ष की जेल को भोगा .

चले मुकदमें भगत सिंह पर, और अनेक क्रांतिवीरों पर .

सत्ता ने फाँसी ठानी थी, मुकदमों को दी रवानी थी .

भगत सिंह का आक्रोश रोष, क्रांतिवीर का जयनाद जोश .

इंकलाब जिंदाबाद घोष, आज़ादी का बना उदघोष .

इतिहास दिवस लो आया था, निर्णय कोर्ट का लाया था .

जिस दिन की थे बाट जोहते, दिन-दिन गिन कर राह देखते .

घड़ी सुहानी वह आई थी, बासंती में रंग लाई थी .

सहमी सत्ता ने दी पुकार, फाँसी की थी उसे दरकार .

कोर्ट फैसला तय था फाँसी, चौबीस मार्च दे दो फाँसी .

सन एकतीस की यह थी बात जग रहा भाग्य भारत प्रभात .

क्रांति गतिविधियों में लिप्त थे, आभा से मुख शौर्य दीप्त थे .

’राजगुरू’, ’सुखदेव’, ’भगत सिंह’, फांसी लेंगे यह भारत सिंह .

गीत मिलन के तीनों गाते, हँस हँस कर थे मौत बुलाते .

चोले को बासंती रंग माँ, देख पुकार रही भारत माँ .

भारत जकड़ा जंजीरों में, कूद पड़े तब हवन कुण्ड में .

आन बचाने यह भारत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, भगत सिंह .

सभी जुबाँ पर एक कहानी, क्रांति वीरता भरी जवानी .

फैला जन-जन क्रांति ज्वार था, स्वतंत्रता का ही विचार था .

अभीष्ट पूरा हुआ भगत सिंह, गर्जन थी अब हर भारत सिंह .

पैदा कर दी हर दिल चाहत, बिन आज़ादी मन है आहत .

मात पिता को जेल बुलाया, बेटे ने संदेश सुनाया .

भगत देश पर होगा शहीद, पूरी होगी मेरी मुरीद .

दुख का आँसू आँख न लाना, समय है मेरा मुझको जाना .

पूत आपका हो बलिदानी, अपने खूँ से लिखे कहानी .

जन्म दिया माँ तुमने मुझको, शीश नवाऊँ शत शत तुमको .

माता-धरती, पिता-आकाश, उनके चरणों स्वर्ग का वास .

माँ तेरा उपकार बड़ा है, किंतु देश का फ़र्ज़ पड़ा है .

भारत माँ का कर्ज़ बड़ा है, राष्ट्र बेड़ियों में जकड़ा है .

मचल रहे अरमाँ कुरबानी, झड़ी लगा दे अपनी जबानी,

दे दे कर आशीष अनेकों, घड़ी शहादत आयी देखो .

देख देख जग विस्मृत होगा, पढ़ इतिहास चमत्कृत होगा .

मुझको इतिहास बदलना है, अब यह साम्राज्य निगलना है .

मोल नहीं कुछ मान मुकुट का, मोल नहीं कुछ सिंहासन का .

जीवन अर्पित करने आया, माटी कर्ज़ चुकाने आया .

याचक बन कर मांग रहा हूँ, तेरा दुख पहचान रहा हूँ .

लाल जो खेला तेरी गोदी, डाल दे भारत माँ की गोदी .

तेरा तो घर द्वार क्रांति का, तू जननी है स्रोत क्रांति का .

कोख पे अपनी कर अभिमान, पाऊँ शहादत, दे वरदान .

एक पूत का गम मत करना, सब तरुणों को पूत समझना .

जग में तेरा सदा सम्मान, युगों युगों तक रहेगा मान .

खानदान की रीत निभाई, राह क्रांति की मैने पाई .

दादा, चाचा, पिता कदम पर, खून खौलता दीन दमन पर .

माता कर दो अब विदा विदा, हो जाऊँ वतन पर फ़िदा फ़िदा .

रहे अभागे जो सदा सदा, खुशियाँ हों उनको अदा अदा .

हर तरफ ध्वनित आवाज हुई, स्वर भगत कण्ठ हर साज हुई .

भगत सिंह घर-घर में छाया, ब्रिटिश राज भी था घबराया .

वायसराय से माफी मांगें, भगत लिखित में माफी मांगें .

कमी सजा में हो सकती है, उनको फाँसी रुक सकती है .

देश प्रेम में मर मिट जाना, स्वीकार नही, क्षमा माँगना .

हमें मृत्यु भय नही दिखाना, उसको तो है गले लगाना .

हर सपूत में चाह जगाना, मर मिटने की राह दिखाना .

जब्ती को है तोड़ गिराना, चिता साम्राज्यवाद जलाना .

जितने दिन भी जेल रहे थे, जीत मृत्यु को खेल रहे थे .

पूरे जग को प्रेरित करते, आज़ादी में जीवन भरते .

आज़ादी के वह दीवाने, देश हेतु मर मिटने वाले .

नहीं किसी से डरने वाले, अंगारों पर चलने वाले .

काल-चक्र पहचान लिया था, दाम मौत का जान लिया था .

हँस-हँस जीवन वार दिया था, आज़ादी विश्वास दिया था .

अंतिम इच्छा जब पूछी थी, अनुरति भगत की बस यही थी .

’जन्म यहीं पर फिर हो मेरा, सेवा - देश धर्म हो मेरा .’

’दिल से न निकलेगी कभी भी, वतन की उल्फत मर कर भी .

मेरी मिट्टी से आयेगी, सदा खुशबू-ए-वतन आयेगी .’

क्रांतिवीर से राज्य डरा था, युग युग चेतन प्राण भरा था .

आंदोलन का खौफ़ भरा था, पतन मार्ग पर अधो गिरा था .

चौबीस को जो तय थी फाँसी, तेईस मार्च दे दी फाँसी .

संध्या साढ़े सात समय था, बलिदानों का अमर समय था .

पुण्य पर्व बलिदान मनाया, हँसते - हँसते ताल मिलाया .

झूम रहे थे वह मस्ताने, संघर्ष क्रांति के परवाने .

बारूद बना कर यौवन को, अर्पित कर के भारत भू को .

फांसी फंदा गले लगाया, शोलों को घर-घर पहुँचाया .

क्रांति की वेदी पर तर्पण, यौवन फूलों सा कर अर्पण .

हँसते-हँसते न्यौछावर थे, जय इंकलाब के नारे थे .

भारत माँ ने कर आलिंगन, भाल सजाया रक्तिम चंदन .

कण-कण में वह व्याप्त हो गया, भारत उसका ऋणी हो गया .

गीत सोहले संध्या गाये, मिलन गीत चंदा ने गाये .

तारे भर ले आये घड़ोली, सजी चांदनी की रंगोली .

देव उठा कर लाये डोली, बिखरा सुरभित चंदन रोली .

पुण्यात्मा का कर कर वंदन, लोप परम सत्ता अभिनंदन .

प्रकृति चकित कर रही थी नाज़, आकाश मगन बना हमराज .

भूला पवन था करना शोर, सिंधु भी भूल गया था रोर .

लहरों में आज नहीं हिलोर, गम में सूरज, नहीं है भोर .

देव नमन को भू पर आये, आँधी तूफाँ शीश झुकाये .

अंग्रेज़ों का मन डोल रहा था, सर चढ़ कर डर बोल रहा था .

मृत शरीर के कर के टुकड़े, उसी समय बोरों में भरके,

ले फिरोज़पुर वहाँ जलाया, कुछ लोगों को वहाँ जो पाया,

टुकड़े अधजले सतलज फेंक, नौ दो ग्यारह हुए अंग्रेज़ .

देखा पास नज़ारा आकर, हैरानी थी टुकड़े पाकर .

ग्रामीणों ने किया सत्कार, विधिवत किया अंतिम संस्कार .

वीर भगत तुम हममें जिंदा, वीर भगत तुम सबमें जिंदा .

हर देश भक्त में तुम रहोगे, जिंदा हो ! जिंदा रहोगे !

स्वतंत्रता संग्राम इतिहास, नाम भगत सिंह ध्रुव आकाश .

नाम अमर है, अमिट रहेगा, स्वातंत्र्य वीर अक्षुण्ण रहेगा .

आविर्भाव भारत - उत्थान, आलोकित राष्ट्र-भक्ति विहान .

भगत सिंह शाश्वत योगदान, भास्कर शौर्य बलिदान महान .

(अनुसाल=पीड़ा, मनसिज = मदन, गरल = विष, नेजे = भाला, अनुरति = चाहत, सोहले : शादी पर गाये जाने वाले गीत, घड़ोली : सरोवर यां कुएं से घड़े में पानी लाकर महिलाएं दूल्हे को शादी से पहले स्नान कराती हैं)

 

डॉ. कुलवंत सिंह

रचनाएं : प्रकाशित

1. निकुंज (काव्य संग्रह) 2. परमाणु एवं विकास (विज्ञान पुस्तक का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद) 3. विज्ञान प्रश्न मंच (कक्षा 10 के छात्रों के लिये)

4. चिरंतन (काव्य संग्रह)

5. इंद्र-धनुष (बाल गीत संग्रह)

6. कज़ा (गज़ल संग्रह)

7. शहीद-ए-आज़म भगत सिंह

8. कण-क्षेपण (विज्ञान पुस्तक हिंदी में प्रकाशनाधीन)

साहित्यिक पत्रिकाओं, परमाणु ऊर्जा विभाग, राजभाषा विभाग, केंद्र सरकार की विभिन्न गृह पत्रिकाओं, वैज्ञानिक, आविष्कार में साहित्यिक एवं वैज्ञानिक रचनाएं

पुरुस्कार:

विभिन्न संस्थाओं द्वारा साहित्य सृजन के लिए

परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा राजभाषा गौरव पुरुस्कार- हिंदी में विज्ञान सेवाओं के लिये

सेवाएं :

‘हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद’ में 20 वर्षों से समर्पित व्यवस्थापक ‘वैज्ञानिक’ त्रैमासिक हिंदी विज्ञान पत्रिका 2002-2010 (8 वर्षों तक)

वार्षिक ’अखिल भारत हिंदी विज्ञान लेख प्रतियोगिता’ आयोजक 2002-2010

विज्ञान प्रश्न मंचों का आयोजन 2002-2010 (8 वर्षों तक)

परमाणु ऊर्जा विभाग के सभी 30 स्कूलों में विज्ञान प्रश्न मंच का विस्तार

क्विज मास्टर

संपादक, ’वैज्ञानिक’ (हिंदी त्रैमासिक पत्रिका) सचिव, ‘हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद’

संप्रति :

निवास:

वैज्ञानिक अधिकारी H, पदार्थ विज्ञान प्रभाग, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई

13A, धवलगिरि बिल्डिंग, अणुशक्तिनगर, मुंबई - 400094

ईमेल :

Kavi.kulwant@gmail.com

फोन :

022-25595378 (O) / 09819173477 (R)

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