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  • मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

उमस


पसीना झर रहा झरने की तरह

जिस्म तर, कपड़े हैं तर

दिन को मक्खियां

और रात को मच्छर

कैसे सहें इस उमस का कहर ?

अमीरों ने लगाईं एसियां घरों में

लेते मजे गर्मी में सर्दी का

पूछो रामू से, श्यामू से

कैसे गुजरती हैं रातें उमस भरीं ?

खड़ा था धनुआ मालिक के पास

आ रही थी जिस्म के मैल की बू

मालिक गुर्राया, दूर खड़े होने का आदेश सुनाया

धनुआ दोनों हाथ जोड़ गिड़गिड़ाया |

ये उमस भरे दिन

गरीबों के लिए बड़ी आफत भरे दिन होते हैं

न दिन को सुकून, न रात को चैन

रोज जीते हैं और रोज मरते हैं

डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया से लड़ते हैं |

 

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर,

फतेहाबाद, आगरा, 283111

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