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  • महेन्द्र देवांगन माटी

मोर


घोर घटा जब नभ में छाये , अंधकार छा जाता है । बादल गरजे बिजली कड़के , मोर नाचने आता है ।। जंगल में यह दृश्य देखकर , मन मयूर खिल जाता है । खुश हो जाते जीव जंतु सब , भौरा गाने गाता है ।। पंखो को फैलाये ऐसे , जैसे चाँद सितारे हों । आसमान पर फैले जैसे , टिम टिम करते तारें हों ।।

 

रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com

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