top of page
  • धीरज कुमार श्रीवास्तव

अहसास

आज अपने अन्तर्मन में

कुछ टूटा-सा

कुछ बिखरा-सा

कुछ अँधेरा-सा

आँखों के समक्ष

ह्दय के पास कहीं

कुछ सूना-सूना-सा

महसूस करता हूँ।

अँधेरे में डोलती

जानी-पहचानी परछाइयाँ

आँखों के समक्ष

महसूस करता हूँ।

टूट चुका है ह्दय

इस दुनिया को देखकर

इक आँसू-सा बहता

महसूस करता हूँ।

फैली है आग दुनिया में

चिल्लाते हैं लोग कितने

अपने अन्दर बस एक

कोलाहल-सा महसूस करता हूँ।

बैचेनी भरे माहौल में

लोगों के बीच बैठा हुआ

अपने मन के अन्दर कहीं

एक चीख-सा महसूस करता हूँ।

बंजा़रों की तरह

आवारों की तरह

घूमता-फिरता हूँ इधर-उधर

आज एक घर को

महसूस करता हूँ।

उदास हूँ ज़िन्दगी से

आँसू बहाता राहों में

एक बाँह को

महसूस करता हूँ।

18 दृश्य

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें

नया समय

आपके पत्र-विवेचना-संदेश
 

bottom of page