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  • कुसुम वीर

दीपों की माला सजे द्वार सबके


रोशन करो तुम इस जग को इतना

कोई दर तिमिर से ढका रह न पाए

दीपों की माला सजे द्वार सबके

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

स्नेह से पूरित हो जीवन की बाती

द्वेषों की आँधी बुझाने न पाए

सुरीली हो सरगम सुप्रीत इतनी

वितृष्णा के स्वर इसमें मिलने न पाएं

निर्मल हो यह मन नदिया के जैसे

सागर सा ख़ारा यह होने न पाए

सरसे सुधा रस इतना ज़मीं पर

कि प्यासा कोई फ़िर कहीं रह न जाए

कोठी, ये बँगले, बहुत हैं सजाए

निर्धन की बस्ती भी जगमग बनाएँ

तृप्ति से पूरित हो हर जन हमेशा

विकल मन किसी का कहीं रह न पाए

हो स्वच्छ और समृद्ध भारत हमारा

धरती यह शोषित होने न पाए

संचित करें जल की हर बूँद को अब

कि प्यासा धरा पर कोई रह न जाए

खुशियों की आभा बिखेरें जगत में

कहीं ग़म की रेखा उभरने न पाए

दीपों की माला सजे द्वार सबके

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

 

कुसुम वीर

kusumvir@gmail.com

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