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  • वंदना पुणतांबेकर

खिड़की


रिमझिम बारिश की फुहारों ने मौसम को खुशनुमा बना दिया था.बीना इस खुशनुमा मौसम को देख सुखद अनुभूति महसूस कर रही थीं.तभी बीना की नजर खिड़की पर पड़ी. खिड़की से आती बारिश की फ़ुहारों को देख बीना खिड़की बंद करने लगी.तभी बीना की नजर सामने से आती 70 साल की बुजुर्ग महिला पर पड़ी.वह अकेली ही चली आ रही थी.भीगी हुई कांपते हाथों से धीरे-धीरे आना उनके जीर्ण होते शरीर की दास्तां बयां कर रहा था.बीना के अंदर की खुशी की लहर दो मिनट में काफूर हो गई.बीना उस महिला की मदद के लिए भागकर बाहर पहुंची.तब उस महिला ने अपना सामान भरा थैला एक तरफ रखते हुए अपना परिचय देते हुए कहा-, "कि मै तीसरी मंजिल पर रहती हू,मेरे दो बेटे हैं,एक बेटा अपनी पत्नी बच्चो के साथ विदेश में है,और दूसरा भी बाहर जाने की तैयारी कर रहा है,पति का स्वर्गवास हुए यही कोई 15 साल हो गए हैं.कुछ जरूरत का सामान लेने जाना पड़ता है.तभी बीना पूछ बैठी.. .,"आप अपने छोटे बेटे को क्यो नही कहते की वह बाजार से सामान लाकर दे.वह बोली,"इसकी भी कल ही जॉब लगी हैं!अब यह भी बाहर चला जायेगा.आखिर मुझे ही तो अकेले रहकर सारे काम करने हैं.उसी की प्रेक्टिस कर रही हूं.उसकी बात सुनकर बीना का मन व्यथित हो गया।बीना ने देखा तो लाइट चली गई थी। बीना उन्हें चाय पीने का आग्रह कर उन्हें अपनत्व से बैठाकर गर्म-गर्म चाय पिलाई.अपनत्व से बनी चाय की गर्माहट उन्हे अपने भीगे तन और मन पर बहुत ही सुकून का अहसास महसूस करा रही थीं.बीना उन्हें लाइट आने पर लिफ्ट से उनके घर छोड़ आई.बीना का अपनापन पाकर वह फफककर रो पड़ी.उनकी व्यथा को देख बीना को महसूस हुआ. कि वह कितनी अकेली हैं,बेटो के रहते हुए भी इस उम्र में इतना हौसला बनाये हुये हैं.इन दो पलों की बात में बीना को एक प्यारी सी सहेली और दोस्त रूपी मां मिल गई.अब बीना उनकी हर समस्या का समाधान समयानुसार निकलने में उनकी मदद करने लगी.बीना अपनी खिड़की का शुक्रिया अदा करने लगी.कि उसे एक अच्छी दोस्त मिल गई.बीना को यह महसूस हुआ कि दोस्ती किसी उम्र की मोहताज नहीं होती.अब बीना उनकी भावनाओ को बखूबी समझने लगी.और हमेशा उनकी मददकर एक अनोखी ख़ुशी महसूस कर मन ही मन खिडक़ी का शुक्रिया अदाकर मुस्कुरा उठी.

 
vandanapuntambekar250@gmail.com
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