मत कर खुद पर इतना गुमाँ ऐ ‘ज़िन्दगी’,
तेरा कहीं ना कोई निशाँ रह जाएगा..
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा,
ज़मीन का कुछ टुकड़ा, या शेष बस राख रह जाएगा ..
नजाने किस वक़्त, ये वक़्त थम जाए,
और वह वक़्त, हमें कुछ सिखला जाएगा..
हस्ते मुस्कुराते जी लेते कुछ पल,
इस्के इलावा कमबख्त, कुछ ना हासिल हो पायेगा ..
'ज़िन्दगी' किसी एक पल, वो भी मुकाम आएगा,
जब तू सिर्फ और सिर्फ, याद बनके रह जाएगा ..
ना कुछ तेरा, ना कुछ मेरा,
ज़मीन का कुछ टुकड़ा, या शेष बस राख रह जाएगा ....
अमितांशु चौधरी
इंजीनियरिंग के स्नातक
टाटा ट्रस्ट की ग्रामीण योजनाओं में कार्यरत
सम्पर्क
8806984216 / 7028027068
amitanshu03ximb@gmail.com