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  • अमितांशु चौधरी

महामारी के दिनों में ... अमितांशु चौधरी की कविता 2. "कशमकश"


चलते चलते रुक गया मैं,

रास्ते के पिछले मोड़ पर कुछ आहट सी आ रही थी शायद..

दिन के सन्नाटे में वह मील का पत्थर कुछ कह रहा था,

उसने कई दिनों से कोई हलचल नहीं सुनी थी..

ना कोई गाड़ियों की थरथराहट,

नाही किसी सूखे पत्ते की चरचराहट,

ना कोई बच्चो की टोली,

नाही कोई पंछी की बोली,

ना सामने के खेत में कोई किसान,

ना कोई बरात या कोई इंसान..

कई दिनों के अकेलेपन ने तनहा कर दिया था उसे ..

उसके सिरहाने बैठ मन में आई एक बात,

कहीं मेरे दिल के ही तो ये नहीं हालात?

यही सोच उठ खड़ा हुआ मैं,

चलते चलते फिरसे एक बार रुक गया मैं ....

 

अमितांशु चौधरी

इंजीनियरिंग के स्नातक

टाटा ट्रस्ट की ग्रामीण योजनाओं में कार्यरत

सम्पर्क

8806984216 / 7028027068

amitanshu03ximb@gmail.com

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