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कवि तुम वो लिखना !

  • - नितिन चौरसिया
  • 10 जुल॰ 2017
  • 1 मिनट पठन

जब अनुनय - विनय - चीत्कार सुने न जाते हों ,

जब रह रह कर असहायों की लाशें आती हों ,

जब देश - राज्य में अशान्ति - सी छायी हो,

तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -

कवि तुम वो लिखना !

जब चहुँओर वीभत्स नज़ारा दिखता हो ,

जब उन्नति का कोई मार्ग नज़र न आता हो ,

जब जुगनू भी अन्धकार में खो - सा जाए ,

तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -

कवि तुम वो लिखना !

जब भाई से भाई का दुश्मनी नाता हो ,

जब अग्रज - अनुज का अंतर समझ न आता हो ,

जब कलह महासमर - सी तीखी हो जाए ,

तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -

कवि तुम वो लिखना !

जब मन अंतर्द्वंदो में उलझा जाता हो ,

जब अनुचित - उचित कहीं न देखा जाता हो ,

जब चिन्गारी इक विभीषिका - सी हो जाए ,

तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -

कवि तुम वो लिखना !

जब क्लेशों के मेघ उमड़ते जाते हों ,

जब शर - सम - शब्द नुकीले होते जाते हों ,

जब कलम बगावत करने पर आ जाए ,

तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -

कवि तुम वो लिखना !

- नितिन चौरसिया

शोध छात्र

लखनऊ विश्वविद्यालय

मेरा नाम नितिन चौरसिया है और मैं चित्रकूट जनपद जो कि उत्तर प्रदेश में है का निवासी हूँ । स्नातक स्तर की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से करने के उपरान्त उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय से प्रबंधन स्नातक हूँ । शिक्षण और लेखन में मेरी विशेष रूचि है । वर्तमान समय में लखनऊ विश्वविद्यालय में शोध छात्र के रूप में अध्ययनरत हूँ ।

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