top of page
  • सुषमा मुनीन्द्र

आदर्श

शंकर रोज की तरह उत्तेजित हाव-भाव दिखाता अचानक आया और पुताई कर रहे ओम और सोम को कदम ताल सी करते हुए फटकारने लगा -

‘‘ओम, इधर का दीवार पर ब्रस कब फेरेगा? शाम तक कमरा फाइनल करना है. फाइनल कर, फिर एक दफा और फाइनल कर. इतवार तक काम फाइनल करो. केसरवानी जी के बॅंगले में काम पकड़ना है.’’

फटकार पर ओम शालीन बना रहा. सोम ने मजाकिया नजर से शंकर को देखा. शंकर का कोप बढ़ गया -

‘‘सोम मुझे न देख. काम कर.’’

सोम ने सफाई दी ‘‘काम ही कर रहे हैं मामा. रात से देह पिरा रही है, तब भी कर रहे हैं.’’

शंकर तुष्ट नहीं हुआ ‘‘सोम, तेरी देह बहुत पिराती है. ओम की नहीं पिराती.’’

‘‘अपनी-अपनी देह है मामा.’’

‘‘बकवास नहीं. ओम, सोम बेगैरत ठहरा. साम तक कमरा फाइनल करना तेरा जुम्मादारी ...

वाक्य पूरा करते-करते शंकर की नजर हलचल सुन कर वहाँ आ पहुँची जागृति पर पड़ गई. वह तीखे लहजे में नम्रता ले आया -

‘‘बहिन जी, लड़के ठीक काम कर रहे हैं न? मैं चाहता हूँ काम ऐसा फाइनल हो कि आपको शिकायत न रहे.’’

‘‘शंकर, लड़के अच्छा काम कर रहे हैं. रोज एक कमरा तैयार कर देते हैं.’’

शंकर ने गौरव में भरकर जागृति को देखा, फिर हिकारत से लड़कों को देखा ‘‘हुनर दिखाओ. फाइनल करो. फटाफट.’’

शंकर प्रत्येक कोट को फाइनल कहता है. पहला कोट हो, दूसरा या अंतिम. वह जिस तेजी से आया था लड़कों को फटकार कर उसी तेजी से चला गया. इधर सोम, ओम को देख कर हॅंसा -

‘‘भाई, यह तूफान मेल कब आयेगा, कब जायेगा, नहीं मालूम.’’

ओम गम्भीर बना रहा ‘‘सोम, हॅंस मत. काम कर.’’

‘‘ठीक कहते हो भाई. साम को मामा फिर राउण्ड लेने आयेगा और कहेगा सुरिज (सूर्य) अस्त हो गया लेकिन काम फाइनल नहीं हुआ. मामा नींद में भी फाइनल, फाइनल करता होगा. चाहे जै बार फाइनल करो, ये खुश नहीं होता.’’

जागृति लड़कों की बातचीत सुन रही थी - ये दोनों शायद शंकर की दुत्कार के आदी हैं. इसीलिये दुत्कार को दिल से नहीं लगाते.

***

शंकर, जागृति के घर का स्थायी पुतइया है. कुछ साल हुये जागृति के पति कौशिक जी ने चिरहुला ट्रेडर्स (रंग-रोगन की दुकान) में कहा था पेन्टर चाहिये. काम पाने की उम्मीद में पुतइया उस दुकान से सम्पर्क बनाये रखते हैं. एक सुबह शंकर फुर्तीली गति से पैदल आया था (अब उसकी हैसियत में सेल फोन और साइकिल जुड़ गई है.). आते ही तेज आवाज में बोलने लगा था -

‘‘नमस्ते साब. मैं संकर. चिरहुला ट्रेडर्स में आप बोले थे पेंटर चाहिये. काम कब से सुरू कर दूँ? आप दुकान में पता कर लो शंकर कैसा ईमानदार और मेहनती है.’’

कौशिक जी ने जानकारी ली ‘‘पर डे क्या लेते हो?’’

अब शंकर पाँच सौ रुपिया प्रतिदिन लेता है, तब रेट कम था.

‘‘डेढ़ सौ रुपिया पर डे. काम फाइनल करके दूँगा. एक दिन में एक कमरा फाइनल. सामान निकालना, साफ-सफाई, फिर सामान जमाना, सब मेरा जुम्मा. कहेंगे तो पेंट का सामान भी ले आऊॅंगा. बाद में आप चिरहुला ट्रेडर्स में इकट्ठा पेमेंट कर देना.’’

‘‘मेहनताना अधिक बता रहे हो.’’

‘‘काम देखिये फिर दाम दीजिये.’’

‘‘देखें तुम्हारा काम.’’

दूसरे दिन शंकर ओम को साथ लेकर आ गया. कौशिक जी ने ओम को लेकर प्रश्न किया -

‘‘ये लड़का भी काम करेगा?’’

‘‘हॉं, साब.’’

‘‘इसे भी मजदूरी देनी है?’’

‘‘काम का दाम लेंगे साब.’’

‘‘मुझे लगा तुम अकेले एक दिन में एक कमरा तैयार करोगे.’’

‘‘अकेले कैसे होगा? इतना बड़ा-बड़ा सामान अकेले कैसे उठा लूँगा? आप कितना रुपिया बड़ी-बड़ी दुकानों में फालतू दे आते होंगे. दुकानदार ठगता है लेकिन आपको पता नहीं होता. हम तो काम का दाम लेते हैं.’’

‘‘चलो, शुरू करो.’’

शंकर ने फुर्ती दिखाई ‘‘ओम, कमरे का सामान फटाफट निकलवा. जाले उतार. रूम आज ही फाइनल करना है. साब, आप बेफिकिर रहें. मैं ओम को बड़ा ट्रेंड किया हूँ. आप देखेंगे यह अच्छा काम करता है.’’

दोनों ने मिलकर साँझ होने तक कमरा तैयार कर दिया. बड़े हुनर से दीवारों पर ब्रश चलाया गया था. कमरे में सचमुच निखार आ गया था. जागृति ने सराहना की थी -

‘‘शंकर, काम अच्छा है.’’

***

शंकर का काला चेहरा थोड़ा चमचमाने लगा ‘‘ बहिनजी, ऐसा फाइनल काम किया हॅूं कि तीन साल तक पेन्ट कराने का जरूरत न होगा.’’

साफ-सफाई में काफी कबाड़ निकला. ओम चकित होकर कबाड़ देख रहा था ‘‘मामा, यह देखो रस्सी. लल्ली रस्सी कूदेगी. फुटबाल की मरम्मत करा देना. गोप खेलेगा. इस बोतल में सरसों का तेल, इस डिब्बे में किरासिन लायेंगे ... ओ रे. सलमान खान का फोटू ... मैं सामने के दरवाजे पर चिपकाऊॅंगा. यह टोपी ...’’ ओम की खुशी देख जागृति को कौतुक हुआ था. मामूली चीजों को लेकर यह कितना उत्सुक है. सम्पन्न वर्ग के लिये जो निरर्थक हो गया है, इस वर्ग के लिये सार्थक है. चीजें इसी तरह अपना वजूद बनाये रखती हैं. शंकर को लगा लालच दिखा कर ओम बेवकूफी कर रहा है.

‘‘ओम, कबाड़ बोरे में भर और चल.’’ ओम को फटकार कर शंकर, जागृति से बोला ‘‘बहिन जी, जब भी पुताई करानी हो चिरहुला ट्रेडर्स में खबर करेंगी. मैं हाजिर हो जाऊॅंगा.’’

‘‘ठीक है शंकर.’’

फिर तो वह दीपावली पर हर साल पूछने चला आता. काम न हो तो अगले साल आने का आश्वासन देकर लौट जाता -

‘‘बहिन जी, काम मैं ही करूँगा. आप दूसरे को काम न देना. जमाना खराब है. हर किसी पर भरोसा करना ठीक नहीं.’’

‘‘ठीक कहते हो.’’

और इस बार भी शंकर, जागृति के घर में रंग-रोगन कर रहा है. दो दिन उसने और ओम ने काम किया. तीसरे दिन सोम को ले आया ‘‘बहिन जी, एक सेठ के यहाँ दो-चार दिन का काम है. कर दूँ. सेठ को किसी और का काम पसंद नहीं है. मैं, ओम की तरह सोम को भी ट्रेंड किया हूँ. आपका काम फाइनल होगा यह मेरा जुम्मा है. आपको इनका काम अच्छा न लगे तो मैं फाइनल करूँगा. वैसे एक-दो राउण्ड रोज आऊॅंगा.’’

जागृति को आश्वस्त कर उसने ओम और सोम को चेतावनी दी ‘‘शिकायत मिलेगी तो पानी में भिगो-भिगो कर जूता मारूँगा. चोट लगेगी और आवाज न होगी. मैं इज्जतदार आदमी हूँ. बड़े-बड़े बॅंगले में काम करता हूँ. समझे.’’

ओम समझ गया, सोम को नहीं समझना था इसलिये नहीं समझा. शंकर के जाते ही ओम से बोला -

‘‘भाई, मामा नहीं सुधरेगा.’’

‘‘सोम, काम कर. बकवास न कर.’’

‘‘मैं बकवास करता हूँ. मामा के मुँह से फूल झड़ते हैं.’’

‘‘सोम, मामा हमको काम देता है. तू नहीं जानता काम मिलना कितना मुसकिल है. काम मिले तो सही दाम नहीं मिलता. मामा के कारण हमको काम और सही दाम मिलता है.’’

***

‘‘अभी काम दे रहा है. किसी दिन हमारी जान ले लेगा.’’

बातें जागृति को हैरान करती थी. ओम, शंकर की प्रताड़ना कैसे सह लेता है ? क्यों चाहता है सोम भी सहे ? पता नहीं इनके सामाजिक मूल्य क्या हैं ? संस्कृति क्या है ? आर्थिक कठिनाइयों से ये लोग कैसे जूझते होंगे ? लड़कों से शंकर के तेज व्यवहार को लेकर पूछना चाहती थी पर उनका व्यक्तिगत मामला मान कर नहीं पूछती थी. लेकिन आज जब साँझ होने लगी और शंकर एक बार भी काम देखने नहीं आया तो वह अपनी जिज्ञासा को न रोक सकी -

‘‘शंकर एक-दो बार आता है. आज नहीं आया. शंकर का उल्लेख सुन सोम हँसने लगा ‘‘नहीं आये तभी शांति से काम हुआ.’’

‘‘कहीं बाहर गया है?’’

सोम की हँसी बढ़ गई ‘‘नहीं बहिन जी. मामा रात में खूब खा लिये होंगे, पेट में दरद हो गया होगा. पड़े होंगे घर में.’’

‘‘खूब खा लिये होंगे. मतलब ?’’

‘‘बड़े-बड़े बंगले में पुताई करते हैं. कभी-कभार कोई साहब गृह प्रवेश पर इन्हें बुला लेते हैं. ये तीस-चालीस पूड़ी डकार लेते हैं. कहते हैं मुफ्त का जहर मिले तो वह भी खा लेना चाहिये.’’

‘‘अजीब आदमी है.’’

‘‘बहुतय अजीब. घर में कोई बीमार हो जाये तो उसका बचा हुआ टानिक मामा एक साँस में पूरा पी जाते हैं कि फायदा करता है.’’

‘‘उसे फायदा करता है, जिसे जरूरत है.’’

‘‘मामा को कौन समझाये. वे खुद से हुसियार किसी को नहीं मानते. हम दोनों भाईयों को सूली पर टाँगे रहते हैं. हमारे छोटे भाई गोप को जरूर मानते हैं.’’

‘‘तुम लोग शंकर के साथ रहते हो?’’

सोम की बकवास को रोकने के उद्देश्य से उत्तर ओम ने दिया ‘‘हाँ. वे हमारे सगे मामा हैं.’’

‘‘बहुत गुस्सैल हैं.’’

ओम ने खंडन किया ‘‘गुस्सैल हैं पर दिल के नरम हैं. बहिन जी उन्होंने ही हम चार भाई-बहिन को जिंदा रखा. हम छोटे थे तब घर की कलह के कारण हमारी अम्मा आग लगा कर मर गई. बाप शराबी-जुआड़ी. नाना हम लोगों को अपने गाँव सिजहटा ले आये. उधर बाप ने दूसरी शादी कर ली. बोला हम लोगों को कबूल नहीं करेगा. दोनों बड़े मामा और मामियों ने हंगामा किया. नाना से बोले इन बिलौटों (बिल्ली के बच्चे) को उठा लाये हो, कौन खिलायेगा ? शंकर मामा ने हमारी जुम्मादारी ली. शादी नहीं की कि आने वाली हम लोगों को रखे, न रखे.’’

सोम हँसा ‘‘शादी करते, यदि होती. कजहा (शादी का प्रस्ताव लेकर आने वाले) हम भाई-बहिन को देख कर भाग जाते थे.’’

***

ओम, शंकर का वफादार सिपाही है ‘‘ओम, हम पर मामा का एहसान है.’’

‘‘का एहसान है? रात में बोतल चढ़ा कर गरियाता है तुम लोगों के कारण मैंने घर न बसाया.’’

‘‘ठीक कहते हैं. हमारे कारण उनका घर नहीं बस पाया. बहिन जी, मामा हमारी बहिन लल्ली की शादी किये. शादी में जो करजा लिया, मामा आज भी चुका रहे हैं. गोप पढ़ाई में अच्छा है. उसे पढ़ा रहे हैं. हम लोगों के लिये चार कमरे का मकान बनवा दिये हैं. मामा दिन भर मेहनत करते हैं. रात में दारू पीने से उनका कलेजा ठंडाता है तो बुरा नहीं है. आदमी को कुछ खुशी तो चाहिये.’’

सोम यूँ हँसा जैसे हँसना उसकी फितरत है ‘‘भाई, तुम्हारी शादी होने वाली है. भाभी, मामा को दारू पीकर बर्राते देखेगी तो क्या सोचेगी ?’’

‘‘बता दूँगा, मामा का हम पर एहसान है.’’

‘‘ऐसा फटकारते हैं. एहसान मिट्टी हो जाता है.’’

तो यह है यथार्थ.

जागृति को कल्पना नहीं थी मामूली लोग भी आदर्श रच सकते हैं.

अगले दिन आया शंकर चीख रहा था ‘‘बस, एतनय काम हुआ ? सोते हो, खाते हो, खीस निपोरते हो, क्या करते हो ? जल्दी हाथ चलाओ. शाम तक काम फाइनल चाहिये.’’

सोम ने आनंद लिया ‘‘मामा, काम तो रोज फाइनल हो जाता है.’’

जागृति को लगा शंकर का गुस्सा, ओम की वफादारी, सोम का हँसना नियमित क्रियायें हैं जो इनकी पहचान बन गई हैं.

शंकर भड़क गया ‘‘सोम मुझे बातों में न लपेट. काम कर.’’

जागृति ने हस्तक्षेप किया ‘‘शंकर, लड़के अच्छा काम कर रहे हैं.’’

शंकर के मुख पर गौरव झलक आया ‘‘मैंने ट्रेंड किया है बहिन जी. काम तो अच्छा करेंगे ही.’’

‘‘लड़कों ने बताया तुमने इन्हें पाला-पोसा है.’’

‘‘इनका कर्जा खाया था जो .................’’ इतना कह कर शंकर के लहजे में एकाएक नरमी आ गई ‘‘लड़कों ने राम कहानी बता दी ? बुरा समय था बहिन जी. मेरी बहिन को ससुराल में दुःख था. जल गई, जलाई गई क्या मालूम. मैं जीजा को कोरट-कचहरी में घसीटता पर मेरे पिता जी डरपोक थे. मेरी भौजाइयाँ अलग जल्लाद. बोली बिलौंटों को रोटी कौन देगा ? मैंने कहा मैं दूँगा. रंगाई-पुताई करना हमारा पेसा है. दूसरा बिजनिस (काम) नहीं जानते. सिजहटा में इतना बिजनिस नहीं था कि चार बच्चों को पाल लूँ. शहर चला आया. काम नहीं मिल रहा था. अब इतना काम है कि सम्भाल नहीं पाता हूँ. पक्का मकान बनवा लिया हूँ. लड़कों को पेन्ट-पुताई सिखा दिया हूँ कि मेरे बाद इन्हें दिक्कत न हो. डपटता रहता हूँ कि काम करने, मेहनत करने की आदत डालें. काम अच्छा करेंगे, तभी लोग काम देंगे. काम न करने वाले की बरक्कत नहीं होती.’’

***

जागृति, शंकर को स्थिर नजर से देखती रह गई. शंकर के चेहरे में इस वक्त क्रोध के नहीं संतोष के भाव हैं. सचमुच. बनाया है, इसने आदर्श. क्या हुआ जो इसके आदर्श की किसी को खबर नहीं हुई.

यह कभी किसी अखबार की सुर्खी नहीं बना. पुरस्कृत-सम्मानित नहीं हुआ. इसके पास कुछ भी उल्लेखनीय नहीं है लेकिन जो है इसकी अपेक्षा और कल्पना से अधिक है. इस ब्रम्हाण्ड का बहुत छोटा सा हिस्सा ही सही पर इसने कड़ी मेहनत से अपनी बहन के बच्चों के लिये सुरक्षित कर दिया है. अनंत आकाश का एक टुकड़ा इनका भी है. अनंत काल के कुछ क्षण इनके भी हैं. एक विषम बिंदु से लाकर इसने बच्चों को जिस पड़ाव पर खड़ा किया है, प्रतिस्पर्धा के इस दौर में वह पड़ाव छूट न जाये ऐसे किसी डर से यह लड़कों पर दबाव बनाये रखना चाहता है. अनुशासित करना चाहता है. शायद यही इसकी पहली और आखिरी चिंता है.

‘‘अच्छा बहिन जी चलता हॅूं.’’

जागृति, जाते हुये शंकर को देखती रही. लगा वायु मण्डल में उसकी तेज आवाज ठहर सी गई है ... चल फाइनल कर ...

 

सुषमा मुनीन्द्र

email - sushmamunindra@gmail.com

द्वारा श्री एम. के. मिश्र

एडवोकेट

लक्ष्मी मार्केट

रीवा रोड, सतना(म.प्र.)-485001

26 दृश्य

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें

कुत्ता

भूख

मौन

आपके पत्र-विवेचना-संदेश
 

bottom of page