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हमारी नई कहानी

महावीर राजी की 

"एक पल ठहरा हुआ" 

पूरी कहानी यहाँ पढ़ें

Public Transportation

दोपहर का वक्त था। प्लेटफॉर्म पर भीड़ कम थी। यत्रियों की भनभनाहट, इंजिनों की फुफकारों एवमं वेंडरों की हुंकारों  का लयवद्ध संगीत पूरे वातावरण में किसी रसायन की तरह फैला हुआ था।

 बर्दवान लोकल ! डिब्बे के भीतरी हिस्से में खिड़की से लंब बनाती आमने सामने वाली बर्थों पर बैठे थे वे लोग। सबसे पहले नेताजी की नजरें उस ओर उठीं और उठीं ही थीं कि सनाका खा गयीं। एक युवती सीट तलाशती उसी ओर बढ़ी आ रही थी। सांचे में ढला बदन , धूसर गेहुआँ रंग, हाथ मे फ़ाइल ! उसकी चाल में आत्मविश्वास की तासीर तो थी पर शहरी लड़कियों का बिंदासपन नहीं था। एक किस्म का मर्यादित संकोच झलक रहा था चेहरे से। ...

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