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  • डॉ. अनिल भदोरिया

लाटरी लग गई!


भास्कर देव ऊपर चढ़ आये, तो आँखें मलते मैंने आँख खोलीं.

“हे प्रभु, फिर नया दिन, मर मर के जीना पड़ेगा, अधम है जीवन,” कहते मैंने रिमोट से ए.सी. बंद किया और हवाई चप्पल तलाशते नित्यकर्म को अग्रसर हो गया. स्नानग्रह में भी विचार-शुन्य न हो पाया की वित्त पोषण कैसे करूँ, बाजार से ऋण लूँ या बैंक में घर गिरवी रखूं या कुछ नहीं तो लाटरी के टिकिट ही खरीद लूँ, कभी भाग्योदय हो गया तो बिना तनाव जीवन सुखमय हो जाये, सोचते-सोचते कब तैयार हो गया पता ही न चला.

कार चलाते-चलाते चौराहे-चौराहे लाटरी टिकट विक्रेता आते रहे. गुहार लगते रहे मन में - करता के विचार, फिर ना करता के विचार आपस में कबड्डी खेलते रहे. उहापोह में कम्पनी ऑफिस पहुँच गए. वहाँ भी मन जैसा हाल पाया - शिथिल, बुझा-बुझा, बिना प्रकाश की मद्धिम रौशनी और मलिन माहौल. दिन समाप्त और लौटने की दौड़. फिर वही लाटरी के टिकट, रंग-बिरंगे कागज़ के नोट की भांति, नेत्र पटल के सामने लहराते, ललचाते और भरमाते. इस शनिवार दस लाख का बम्पर ड्रा और महीने की ३० तारीख को एक करोड़ का जैकपोट की पुकार लगाते. एक-तरफ़ा संवाद और लालच की लहरों का सैलाब! उहापोह का ज्वर-भाटा - लूँ टिकट या कि न लूँ, इस टिकट को लेने के भाव का आरोह अवरोह.

माँ की शिक्षा बचपन से आँखों के समक्ष तैरती, “बेटा ऋण न लेना, बेटा जुआ न खेलना, बेटा बुरी संगत न करना, बेटा लाटरी का टिकट न लेना, बेटा थोडा में सब्र करना, भड़भड़ा के दीवार में सिर न मार लेना.”

वाहन तैरते रहे, स्ट्रीट सैलर्स, प्लास्टिक की बोतल की भांति आते जाते रहे, घर आ गया. रात नींद न आई, एक करोड की लाटरी के पुरस्कार के पोस्टर बैनर लहराते रहे. भोर हो गयी और नहाकर मंदिर में फिल्म दीवार के अमिताभ बच्चन की भांति खड़ा हो गया. सोचा क्या बोलूं? मैं तो मूर्ति पूजक हूँ नहीं फिर भी बोल दिया, “प्रभु जी आज तो खुश होगे बहुत तुम, जो व्यक्ति तुम्हारे दर पर एक बार हाथ जोड़ने नहीं आया, घर में मंदिर होने के बाद भी, वह आज घुटने टेके बैठा है.

“हे भगवन, आज लाटरी का टिकट ऐसा खरीदवा दे की जैकपाट लग जाये.” कोई देख न ले कि घर का मालिक आज मंदिर में भिखारी बन कर खड़ा है, तुरंत बाहर हो गया. शाम को चमचमाता एक हजार रुपए का 777 के अंक वाला लाटरी टिकट मेरे हाथ में था. सीधे मंदिर गया, भगवन को समर्पित किया, “गुहार लगा दे. भगवन कभी माँगा नहीं आपसे, आज बल्ली कृपा की लगा ही देना.”

दिल धडकते रहता है, पता नहीं चलता है अब एक करोड़ मिलने की आस में धडाधड ब्लड प्रेशर बढ़ाये जाये है. एक हजार के लाटरी के टिकट के खेल में करोड़ का खेला है, इसलिए भगवन को भी साथ में रिश्वत सहित धकेला है - के विचार भी उत्पन्न होते रहे.

लोभ, ईर्ष्या, वासना का ज्वर बुद्धिमान और संस्कारवान को भी बुद्धि के सही और सामान्य प्रयोग से विमुख कर देता है. शनिवार आया और गया. इस बार शुभ दिन को 9 के अंक वाला टिकट ले लिया परन्तु फल निष्फल.

एक सुबह मंदिर के सामने ही माँ मिल गयीं, “क्यों रे, तेरी तो लाटरी लगी है?”

“क्या क्या, माँ? क्या बोली.” जुबान लडखडा गयी मेरी.

“हाँ, लाटरी तो खुली हुई है तेरी.” मां बोली.

“जल्दी बता माँ, क्या हुआ? मैं बैचेन हुआ जा रहा हूँ!” मैं संभला थोडा.

“अच्छा बताती हूँ, पहले ये बता की, समस्या क्या है तेरी?”

“माँ, धंधे में कमी, घाटे पर घाटा, रुका पैसा, बढ़ता खर्च, आमद कम होने से वित्त संकट है.” बोल ही दिया मैं.

“तो मार्केटिंग बाधा! अब क्या व्यवसाय के गुण मुझसे सीखेगा, तेरे पिता इतना बड़ा काम छोड़कर गए, उसमें मेहनत कर.”

“करता हूँ माँ मेहनत.” मेरी जुबान सूख रही थी.

“तो झुक. लाभ का प्रतिशत कम कर, क्वालिटी का प्रतिशत बढ़ा, अनावश्यक खर्चा कम कर, मीठा बोल, नए सम्बन्ध बना, वैल्यू एडिसन कर, पैकिंग अच्छी बना, स्कीम ला, जल्दी पेमेंट करने वाले को डिस्काउंट दे, १०० किलो खरीदने वाले को १०५ किलो दे.

“अब क्या देख रहा है टुकुर टुकुर. माँ तो अनपढ़ है कैसे जानती है ये सब. पेराडायम शिफ्ट है ये तो माँ का, यही सोच रहा है.”

मैं अवाक्.!

“बेटा व्यवसाय मार्केटिंग से, विज्ञापन से, पहचान के स्तर से स्थापित होता है, लुभावने आकर्षण और वैल्यू एडिसन से बढ़ता है क्वालिटी और आफ्टर सेल्स सर्विसेज से बाजार में पैर जमता है और व्यावसायिक सम्बन्ध से लाभ, ब्रांड प्रतिस्पर्धा के स्तर पर स्थापित करता है.”

मैं अवाक्, मुंह बाए निःशब्द

“बता, क्या-क्या नहीं कर रहा है इनमें से?”

मौन!

“तेरी तो लाटरी लगी ही हुई है बेटा, बस तू इजी-मनी के भ्रमजाल में उलझ गया है. अच्छा बता, घर है?”

“है माँ.” मैं बोला .

“तो लाटरी है.”

“परिवार अच्छा है?”

“है माँ.”

“तो लाटरी लगी ही है. भोजन, पानी, बच्चों की पढाई, फोन, बिजली, काम काज है?”

“है माँ.”

“तो लाटरी लगी है! अब बता ये इतनी सारी लाटरी लागू हुई है तो टिकट क्यों खरीदना! इसी जीवनशैली को थोड़ा सा पोलिश कर, ताम्बे का घड़ा जैसा चमकने लगेगा तेरा धंधा और फिर खरीदना लाटरी का टिकट!”

“अरे नहीं माँ, आज मेरे नेत्र खुल गए हैं. जो मिला है वो क्या लाटरी भूल गया था, कस्तूरी मृग की भांति भटक गया था. अब आज से ही तनाव कम, मेहनत ज्यादा, खुले मस्तिष्क से धंधे को ही लाटरी बना दूंगा.”

मैंने मंदिर में खड़ी माँ के पांव छुए और लाटरी बनाने निकल गया.

पीछे माँ की पोतो से होने वाली बात कान में पड़ रही थी.

“से नौ टु लाइज़. से नौ टु लोन्ज़, से नौ टु लिटरिंग, से यैस टु लौयल्टी.”

आत्मा विभोर नयी ऊर्जा से ओत प्रोत मैं आगे बढ़ता जा रहा था.

 

डॉ अनिल भदौरिया

मेडिकल ऑफिसर,

श्रम विभाग,

कर्मचारी राज्य बीमा सेवाएं,

देवास, मध्यप्रदेश में सेवारत।

शिक्षा- एम जी एम मेडिकल कॉलेज, इंदौर 1990

एम बी ए, पॉन्डिचेरी यूनिवर्सिटी

★ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, नेशनल हेड क्वार्टर, दिल्ली के ए. पी. शुक्ल अवार्ड (2018) से सम्मानित।

★ सेक्स एजुकेशन (अंग्रेजी) के शीर्षक से स्कूल व कॉलेज के छात्रों के लिए यौन शिक्षा की पुस्तक प्रकाशित।

प्रकाशक -

PEACOCK BOOKS

ISBN- 9788124801659

★ साप्ताहिक पत्रिका, सेहत, दैनिक नई दुनिया (जागरण समूह का प्रकाशन), में स्वास्थ्य संबंधी आलेख नियमित रूप से प्रकाशित होते हैं. स्वास्थ्य के विषय जैसे कैंसर की पहचान स्वयं करें, हाथों की सफाई रखने से बीमारी से बचेंगे, शुद्ध जल के फायदे, मधुमेह से बचने के उपाय, 80 का नियम, पैदल चलने के फायदे, घुटने कैसे बचाना है, मोटापे का कंट्रोल संभव है....प्रकाशित हो चुके हैं।

★ 25000 फ़ीट की ऊंचाई पर लखनऊ - हैदराबाद इंडिगो उड़ान दिनांक 16 अक्टूबर 2018 को 75 वर्षीया महिला के आकस्मिक हृदय गति रुकने पर तुरंत सी पी आर देकर जीवन रक्षा की थी।

★ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की इंदौर शाखा के सचिव, राज्य शाखा मध्यप्रदेश के सह सचिव रह चुका हूं।

akbhadoria@yahoo.com

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